पद्मविभूषण पंडित जसराज का महाप्रयाण …

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*कुमार राकेश : भारतीय शास्त्रीय संगीत के मुलाधारो में से एक पंडित जसराज ,,चले गए ..देश के थे ,हैं और रहेंगे ,
पर उनके लिए ईश्वर ने रास्ता चुना अमेरिका से ..अब तो अंतिम दर्शन भी…पर उन्हें नमन…..शत शत नमन..,
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ……
2015-16 में राष्ट्रपति भवन के एक अनुपम कार्यक्रम में हमारी मुलाकात,मेरी पत्नी भी साथ थी अच्छी मुलाकात.लम्बी मुलाकात.सार्थक बातचीत.ज्ञानवर्धक.उत्साह वर्धक,ऊर्ज़ा वर्धक. उनको सुना भी ,देखा भी ,उसके पहले भी भी,बाद भी . कई बार सुनने का अवसर मिला था .कई यादें ,कई मुलाकातें ,कई संस्मरण ….
एक अनुपम संगीत साधक ,सुर साधक ,नाद ब्रह्म के उपासक .माँ शारदे के योग्य सन्तान .अपूरणीय क्षति .भारत के लिए .विश्व के लिए ,इस ब्रहमांड के लिए इस जिंदगी के लिए… इस वतन के लिए आपके लिए ,हमारे लिए ,सबके लिए .
जनसता के संस्थापक सम्पादक प्रभाष जी जोशी उनके बड़े मुरीद थे तो भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी भी .अब सबकी महफ़िल एक साथ जमेगी.इस पृथ्वी पर मुरीद थे सब एक दुसरे के .अब स्वर्ग में भी साथ होंगे .आनंद ही आनंद…सब अब आनंदं में ,परम आनंद में होंगे .यहाँ भी आनंद ,वहां भी आनंद . चिरंतन यात्रा का परम आनंद ..सत-चित-आनंद में लीन .
इस विश्व को,ज़िन्दगी को 90 साल देना,कम नहीं होता है ,पर कम है ..28 जनवरी 1930 को जन्मे पंडित जसराज 17 अगस्त 2020 को हम सबको छोड़ कर चले गए ..
पंडित जसराज का जन्म हिसार में हुआ था.पण्डितजी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं.
1962 में जसराज ने फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से विवाह किया, जिनसे उनकी पहली मुलाकात 1960 में मुंबई में हुई थी
पंडित जसराज को उनके पिता पंडित मोतीराम ने मुखर संगीत में दीक्षा दी और बाद में उनके बड़े भाई पंडित प्रताप नारायण ने उन्हे तबला संगतकार में प्रशिक्षित किया.वह अपने सबसे बड़े भाई, पंडित मनीराम के साथ अपने एकल गायन प्रदर्शन में अक्सर शामिल होते थे.कहते हैं बेगम अख्तर द्वारा प्रेरित होकर उन्होने शास्त्रीय संगीत को अपनाया.
जसराज ने 14 साल की उम्र में एक गायक के रूप में प्रशिक्षण शुरू किया, इससे पहले तक वे तबला वादक ही थे.जब उन्होने तबला त्यागा तो उस समय संगतकारों द्वारा सही व्यवहार नहीं किया गया. उन्होंने 22 साल की उम्र में गायक के रूप में अपना पहला स्टेज शो किया.मंच कलाकार बनने से पहले, जसराज ने कई वर्षों तक रेडियो पर एक ‘प्रदर्शन कलाकार’ के रूप में भी काम किया.
हालाँकि जसराज मेवाती घराने से ताल्लुक रखते हैं, जो संगीत का एक स्कूल है और ‘ख़याल’ के पारंपरिक प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है। जसराज ने ख़याल गायन में कुछ लचीलेपन के साथ ठुमरी, हल्की शैलियों के तत्वों को जोड़ा है.जसराज के करियर के शुरुआती दौर में उन्हें संगीत के अन्य विद्यालयों या घरानों के तत्वों को अपनी गायकी में शामिल किए जाने पर उनकी आलोचना की गई थी.हालांकि, संगीत समीक्षक एस॰ कालिदास ने कहा कि घरानों में तत्वों की यह उधारी अब आम तौर पर स्वीकार कर ली गई है.
जसराज ने जुगलबंदी का एक उपन्यास रूप तैयार किया, जिसे ‘जसरंगी’ कहा जाता है, जिसे ‘मूर्छना’ की प्राचीन प्रणाली की शैली में किया गया है जिसमें एक पुरुष और एक महिला गायक होते हैं जो एक समय पर अलग-अलग राग गाते है.उन्हें कई प्रकार के दुर्लभ रागों को प्रस्तुत करने के लिए भी जाना जाता है जिनमें अबिरी टोडी और पाटदीपाकी शामिल हैं.
शास्त्रीय संगीत के प्रदर्शन के अलावा, जसराज ने अर्ध-शास्त्रीय संगीत शैलियों को लोकप्रिय बनाने के लिए भी काम किया है, जैसे हवेली संगीत, जिसमें मंदिरों में अर्ध-शास्त्रीय प्रदर्शन शामिल हैं.
शायद ही वो कमी पूरी हो .पर विधाता का विधान ,कौन उनसे जीत सका है.क्या कोई जीत सकता है क्या ?
सभी शोक में,देश भी ,विदेश भी .राष्ट्रपति श्री कोविंद भी.प्रधानमंत्री श्री मोदी भी ,आप भी ,हम भी ,पूरा हिंदुस्तान,सारा जहाँ ..
*कुमार राकेश

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