राजस्थान कांग्रेस के सियासी जंग पर विराम या फिर नए युद्ध की आशंका ?

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कुमार राकेश : राजस्थान में कांग्रेस को एक जुट किये जाने व विश्वास मत मिलने के  बाद क्या पार्टी के अंदरूनी सियासी जंग पर विराम लग गया है या फिर से एक नए  युद्ध की आशंका है ?क्या प्रदेश में अब सब कुछ सामान्य और पूर्ववत हो जायेगा.ये एक बड़ा सवाल है .अब उस सवाल के परिपेक्ष्य में 14 अगस्त को राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने अपना जो दर्द बयान किया,उससे तो यही लगता है कि सचिन पायलट तो सुधर गए,परन्तु मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ठान लिया है कि वो नहीं सुधरेंगे.सचिन को विधान सभा में उनकी सीट आगे से बदलकर सबसे पीछे कर दी गयी थी.जो उनके दर्द का एक बड़ा कारण था.

सचिन के साथ पहले भी ऐसा ही बहुत कुछ हुआ था,लगता है,अब आगे भी कुछ ऐसा ही होने वाला है .गहलोत का 19 विधायको के बगैर भी सदन में बहुमत साबित कर देने वाला बयान उनके अंदरूनी दर्द व हार को भी दर्शाता है.पर करे तो क्या करे? कोई रास्ता नहीं,कोई चारा नहीं.आलाकमान के आगे गहलोत को झुकना पड़ा. युवा-युवा एक साथ हो गए और बुजुर्ग अलग रास्ते .देखना अब आगे आगे क्या होता है ? जो भी होगा पहले से ज्यादा रोचक व रोमांचक होगा.इससे नए जंग की आशंका प्रबल हो गयी है .

इस पूरे प्रकरण के परिपेक्ष्य में देखा जाये तो सचिन का कद व शक्ति अशोक गहलोत की तुलना में पहले से ज्यादा बढ़ा है.ये बात भी सत्य हैं कि सचिन पायलट व उनकी टीम के अथक संघर्ष की वजह से ही राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता मिली थी .नए परिपेक्ष्य में सचिन ने ये भी साबित कर दिया है कि उन्हें राजनीति में संघर्ष व भाषा की मर्यादा का पालन करना बखूबी आता हैं.

सर्वविदित है कि प्रदेश चुनाव के  वक़्त अशोक गहलोत,राहुल गाँधी के साथ गुजरात चुनाव में ज्यादा व्यस्त रहे थे.इसीलिए उस वक़्त कहा जा रहा था कि प्रदेश के अगले सीएम् सचिन पायलट ही होंगे ,लेकिन ये मेरे आकलन के साथ भविष्यवाणी भी थी कि कुछ भी हो ,सीएम् अशोक गहलोत ही होंगे.इस बात पर दिल्ली के एक वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार आज भी गवाह है.वे बेचारे मेरे से शर्त भी हार गए थे.क्योकि उनकी खबर थी,विश्वास था कि सीएम् सचिन पायलट ही बनेगे.लेकिन वो नहीं बने.

लगता है, इस सत्ता के इस नए सियासी जंग  में सुपर चाणक्य कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद को हारा हुआ मान रहे हैं.परन्तु क्यों ? उन्होंने ने हर तरह की शक्ति, सूत्रों व षडयंत्रों  को अपनाकर सचिन पायलट के लिए कांग्रेसी दरवाजे तो सदा के लिए बंद करने का पूरा इंतजाम कर दिया था,परन्तु ऐन मौके पर बाज़ी पलट गयी,ऐसा क्यों हुआ? ये भी एक बड़ा सवाल है .जिसका जवाब अब अशोक गहलोत  को ही  देना पड़ेगा.क्यों हुआ,कैसे हुआ,किसलिए हुआ उनके व सबके राजस्थान में? ये भी एक बड़ा सवाल है ? देश के लिए भी,राजस्थान के लिए भी ? मेरे विचार से इस स्वाभिमान की लड़ाई में न कोई जीता,न कोई हारा,हारी तो राजस्थान की भोली भाली प्यारी जनता.राजस्थान की जनता वाकई में प्यारी है .नमन योग्य है ,स्तुति योग्य है.जो अपने  मिजाज़ से प्रदेश में सरकार चुनती है.जरुरत पड़ने पर उन्हें सत्ता से अलग भी कर देती है. राजस्थान में पिछले 11 जुलाई 2020 से चले इस बड़े राजनीतिक ड्रामा का 11 अगस्त 2020  को पटाक्षेप कैसे हो गया.ये भी एक बड़ी कहानी है.क्यों हुआ ? यदि ऐसा ही होना था तो सचिन को एक महीने तक भला बुरा क्यों कहा गया ? क्या इस परिणति के बारे में किसी को भी अंदेशा था? इस प्रकरण में केन्द्रीय भाजपा की कोई भूमिका थी?यदि इसके जड़ में देखा जाये तो सिर्फ अशोक गहलोत के कथित अहंकार व एक क्षत्र राज करने की ललक  की वजह से ऐसा हुआ.मामला कांग्रेस के अंदरूनी लड़ाई का था,परन्तु गहलोत अपने  जादू से उसका खलनायक भाजपा को बनाने की असफल कोशिशे की.सो उस जाल में अब गहलोत खुद ही उलझ गए लगते हैं.

इस पूरे अप्रत्याशित प्रकरण में अशोक गहलोत व  सचिन पायलट के बीच हम तुलना करे तो इस प्रकरण में सचिन पायलट अशोक गहलोत की तुलना में ज्यादा परिपक्व नज़र आये.सचिन बेहद ,शांत और सौम्य भूमिका में रहे,जबकि अशोक गहलोत ने सचिन को नकारा ,निकम्मा ,टाइम पास,सिर्फ अच्छी अंग्रेजी बोलने व अच्छे कपडे से कोई नेता नहीं बन जाता आदि विशेषणों से विभूषित किया, परन्तु सचिन ने अपना धैर्य,संयम व भाषा पर नियंत्रण नहीं खोया.अपने परिपक्वता व धैर्यवान होने का सबूत दिया.वापसी के वक़्त सचिन ने सिर्फ इतना ही कहा कि उनके खिलाफ कही बातों से वह बहुत आहत हैं,परन्तु अशोक गहलोत के प्रति उनकी न कोई दुर्भावना थी,न कभी होगी.

इस पूरे प्रकरण में एक नयी कहानी भी बताई जा रही है.जिसकी नायिका प्रदेश की एक वरिष्ठ  भाजपा नेता है.विश्वास तो नहीं होता,परन्तु विश्वास करना मजबूरी जैसी है.सब मान रहे हैं है,बता रहे हैं.इसलिए मै भी मान लेता हूँ.खबर है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जिद ने मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कुर्सी बचा दी.परन्तु क्यों ?क्योकि भाजपा के नये तथाकथित समीकरण में वसुंधरा को मुखिया नहीं बनाया जा रहा था.शायद इसीलिए  भाजपा को मुंह की खानी पड़ी.भाजपा हारी.वसुंधरा जीती.शायद भाजपा में ये पहली बार हुआ है .ऐसी खबर है कि अब वसुंधरा राजे की पार्टी में अंदरूनी  मुश्किलें बढ़ सकती हैं. बताया जा रहा है कि वसुंधरा ने सचिन को किनारा करके एक साथ कई कार्य किये. भविष्य के लिए अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित कर ली.अशोक गहलोत को भी खुश कर दिया.इससे वसुंधरा को त्त्ताकालिक लाभ तो मिल गया,लेकिन दूरगामी परिणाम वसुंधरा के हक में नहीं दिख रहा .

ये भी बड़ा सवाल है कि बदली परिस्थितियों में अशोक गहलोत के उन सभी अस्त्रों  का क्या होगा.जिसके तहत सचिन पायलट व अपने विधायको को सहित केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को क़ानूनी नोटिस दिए गए थे.पुलिसिया कार्यवाही भी किये गए थे.ये भी तथ्य है कि श्री शेखावत ने उस ऑडियो टेप अपनी आवाज़ होने की बात एक सिरे से खारिज कर दिया था.तो क्या अब गजेन्द्र शेखावत अशोक गहलोत के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करेगे? सचिन ने तो शुरू में कह दिया था  कि वे भाजपा में नही जा रहे हैं,जबकि अशोक गहलोत व उनके प्रवक्ता बार बार कहे रहे थे कि सचिन के साथ उनके गुट के प्रत्येक  विधायक को भाजपा में जाने के लिए 25-30 करोड़ रूपये का लालच दिया गया था.उनका दावा था कि कई लोगो को वो पैसे मिल भी गए .तो अब क्या अशोक गहलोत उन सबो के खिलाफ उन दिए गए पैसो के लिए नयी जांच करवाएंगे ? ये भी एक तथ्य है कि भंवरलाल शर्मा व विश्वेन्द्र सिंह के कांग्रेस से निलंबन खारिज कर दिया गया है. पर आज भी वो एक सवाल है कि सचिन व अशोक  समर्थक विधायको के उन होटलों के बिल कौन देगा,किसने दिया ? ये सवाल भी अशोक गहलोत ने ही पायलट के खिलाफ उठाया था.क्या अब प्रदेश भाजपा व केंद्र सरकार गहलोत सरकार के खिलाफ एक नया अवमानना अभियान की शुरुआत करेंगे?

इस पूरे प्रकरण को देखे तो लगता है जनता के अरमानो के लिए संघर्षरत सचिन पायलट राजस्थान के नए हीरो के तौर पर उभरे हैं.दूसरी तरफ अशोक गहलोत को भी अपने  रोल की पुनःसमीक्षा करने की जरुरत है.क्योकि अब ऐसा लगता है यदि समय रहते गहलोत नहीं सुधरे तो आने वाले दिनों में सचिन पायलट ही कांग्रेस व भारतीय राजनीति के नए हीरो होंगे.

अशोक गहलोत के समर्थक कई विधायकों ने सचिन पायलट व उनके गुट को अगले 6 महीने के लिए कोई भी पद देने का विरोध किया है.बताया जा रहा है कि ये अशोक भाई की ही सुनियोजित साज़िश है.शायद इसलिए 14 अगस्त को राजस्थान विधान सभा में सचिन पायलट को एक जोर का झटका धीरे से दिया गया .वो भी सचिन की सीट को आगे से हटाकर सबसे पीछे रखकर.ये बात अलग है कि सचिन ने उसे बुरा नही माना और कहा सरहद पर मज़बूत सिपाही को ही भेजा जाता है. इसे ही कहते हैं तुम डाल-डाल,हम पात-पात.

कहते है जिंदगी है तो  गलतियाँ होगी.परन्तु उन गलतियों  से जो इंसान सुधर कर निकलता है, वही असली हीरो है.शायद सचिन अगले चुनाव तक सच में एक बड़ा हीरो व सफल योद्धा बनकर उभर जाये.जिसकी पटकथा लिखी जा चुकी है.

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