जामा मस्जिद दिल्ली ने खो दिया है समर्थन और फतवे का रूतबा

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शाही इमाम बुखारी का ऐलान लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी का नहीं करेंगे समर्थन । ।।
नयी दिल्ली।  मध्य भारत में  मुस्लिम  मतदाताओं को रिझाने पटाने और समर्थन पाने के लिए फतवे की राजनीति का बाजार लगातार ठंडा होता जा रहा है। एक समय था कि जामा मस्जिद के बड़े इमाम से फतवा करवाकर समर्थन पाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी विश्वनाथ प्रताप सिंह से लेकर लालू प्रसाद यादव मुलायम सिंह यादव आदि दर्जनों नेता जामा मस्जिद के बड़े इमाम के यहां चुनाव में चक्कर काटते हुए नजर आते हैं। बड़े इमाम के फतवे के बदले मान सम्मान मिलता। मुस्लिम समाज में आज़ भी सहारनपुर देवबंद का बड़ा और नेशनल महत्व है। देवबंद इमाम का अलग मान भी है, जिसको मुस्लिम समाज गंभीरता से सुनता है। मगर अधिक चमक दमक रखने के बाबजूद बड़े शाही इमाम के इंतकाल के बाद जामा मस्जिद के चुनावी रूतवे पर असर पड़ने लगा। 
  जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने इस चुनाव के दौरान ऐलान किया है कि वे 2019 के संसदीय चुनाव में किसी भी राजनीतिक पार्टी को सपोर्ट नहीं करेंगे। विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनावों में मुसलमानों को अपने मन और हवा के रुख को देखकर तय करने वाले इमाम बुखारी इस बार मतदाताओं को किसी भी प्रकार का कोई सियासी पैगाम नहीं देंगे। उन्होंने सोमवार को आधिकारिक रुप इस बात की घोषणा कर दी है।
इस मौके पर उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को सावधान किया है।  उन्होंने कहा कि  आवाम को यह ध्यान  रखना होगा कि सभी राजनीतिक पार्टियों ने उन्हें अभी तक निराश और उनकी उपेक्षा की है। उनकी वादों बयानों और घोषणाओं का जमीनी स्तर पर कोई पालन नहीं किया गया है। मुस्लिमों के साथ राजनीतिक भेदभाव अन्याय और उपेक्षा की कहानी बेहद लंबी है।
शाही इमाम ने भरे मन से समाज में फैल रही नफरत और धर्म के नाम पर समाज एक उन्मादी आधारभूत मूल्यों और परंपराओं से  कुचला जा रहा है। इस तरह की हालात एक सभ्य समाज के लिए काफी खतरनाक है। उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर आज बारुद के ढेर पर है । और कश्मीरी जनता को मुख्यधारा में लाने में सरकार की कोई भी स्पष्ट नीति है। देश की स्वर्णिम नीतियों को अपनाना छोड़ कर देश में सांप्रदायिकता का जहर चारों तरफ फैलाया जा रहा है। देश एक अशांत धार्मिक उग्रता की चपेट में हैं।

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