गांधी परिवार को परास्त करने(अमेठी और रायबरेली )के लिए भाजपा की किलेबंदी /

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अनामी शरण बबल


बनारस से हार्दिक पटेल को उतारने की तैयारी नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री उर्फ प्रधान सेवक उर्फ चौकीदार की साफ स्वच्छ ईमानदार निर्मल इमेज भले ही हो,मगर राफेल मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है का जुमला आम लोगों के कंठस्थ करा दिया है।  संसद में चर्चा बहस का बाजार गरम है। प्रधानमंत्री मोदी को घेरने वाले राहुल को अमेठी में और उनकी मां और पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी को रायबरेली सीट की किलेबंदी शुरू हो गयी है। भाजपा पूरे दम-खम के साथ कांग्रेस से इन सीटों को छीनना चाहती है।  गांधी परिवार को पराजित करने के लिए प्रधानमंत्री अमेठी रायबरेली की एक एक जनसभा कर चुके प्रधानमंत्री दो एक दौरा करके चुनावी तस्वीर बदलने के फिराक में है। उधर बसपा सपा समेत पूरा विपक्ष भी इस बार बनारस  में किसी अचंभित प्रत्याशी को प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मैदान में उतारा जा सकता है। कांग्रेस का पिछले लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन रहा। पूरे देश में कांग्रेस को केवल 44 सीटें ही मिली थी। एनडीए के खिलाफ इस बार यूपी में चुनावी समीकरण अलग सा है। केवल यूपी में बसपा और सपा के तालमेल से एनडीए का गणित गड़बड़ा सकता है, मगर कांग्रेस के गणित को गड़बड़झाला करने के लिए भाजपा राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पराजित करने के मंसूबे पाल रही है। हालांकि सपा – बसपा गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली सीट बिना शर्त समर्थन देने के लिए छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं। अलबत्ता सपा बसपा के इस समर्थन को कांग्रेस पचा नहीं पा रही है। संभव है कि कांग्रेस यूपी में अलग अकेले अधिकांश या सभी सीटों पर भी चुनाव लड सकती है। भले ही कांग्रेस को सीटों का लाभ  इससे हो या न हो पर वोटकटवा की तरह सबों को नुक्सान पहुंचाने का माद्दा रहेगा। खासकर  भाजपा को भी हर सीट पर 10-15 हजार मतों के खोने का खतरा संभव है। इसके बावजूदगांधी परिवार के पराजय को लेकर भाजपा काफी गंभीर है ताकि इस पराजय को विपक्षी एकता की हार की तरह देखा जाए। पिछले काफी समय से बीमार चल रही सोनिया गांधी की जगह प्रियंका गांधी को बार बार रायबरेली से उतारने की कोशिश की जा रही है,मगर प्रियंका गांधी के नाम आगे आते ही इनके पति राबर्ट वाड्रा के ढेरों मुकदमे की फाईलें खुलने लगती है। वाड्रा के बहाने गांधी परिवार  पर हमला से आशंकित है। उधर गुजराती पटेलों के आरक्षण के मुद्दे पर नौजवानों के नायक बनकर उभरे हार्दिक पटेल को बनारस से मैदान में उतारने का यत्न हो रहा है, जो अभी अभी चुनाव लडने की उम्र पूरी की है।  यानी चुनावी बिसात बिछाई जाने के पहले ही राजनीति का असली खेल की राजनीति का आरंभ हो चुका है।

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