भाजपा की बी टीम के रुप में राजा भैया की है जनसत्ता पार्टी
उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा के चर्चित और लोकप्रिय बाहुबली और हमेशा निर्दलीय विधायक रहे राजा भैया ने आज अपनी नयी राजनीतिक जनसता पार्टी के आगाज की घोषणा कर दी। यह पार्टी मूलत: स्वर्ण जातियों की आवाज बनेगी। राजपरिवार घराने से आनेवाले राजा भैया यूपी की राजनीति में काफी दबंग छवि रखते हैं। यूपी में बसपा की मायावती को छोड़कर पिछले दो दशक से सूबे के लगभग हर मुख्यमंत्री के नाक के बाल रहे राजा भैया मुलायम सिंह यादव सरकार में मंत्री भी रहे हैं। नयी पार्टी की घोषणा के साथ ही अब तक निर्दलीय राजनीति करने वाले राजा भैया की निर्दलीय राजनीति का भी आज अंत हो गया। गौरतलब है कि राजा भैया की यह जनसता पार्टी मूलत: बीजेपी की सहायक बी टीम है। पार्टी की घोषणा भले ही आज की गयी है, मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने करीब एक माह पहले ही राजा भैया को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का वीवीआईपी कोठी निर्दलीय विधायक राजा भैया को आवंटित कर दिया। राजा भैया को यह सरकारी कोठी जनसता पार्टी के नाम पर आवंटित किया गया। ठीक उसी समय समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से बगावत करके सपा से बाहर निकले शिवपाल यादव को भी मुख्यमंत्री योगी ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का सरकारी बंगला देकर अपना मौन सेवक बना लिया। योगी ने यादव वोटरों और राजा भैया के समर्थक उंची जातियों को नाथने की कोशिश की थी जो सरकारी कोठी और मान सम्मान के बूते लोकसभा चुनाव में काफी काम आएगी। ==== लखनऊ में अपनी नयी जनसता पार्टी की घोषणा करते हुए राजा भैया ने भी सरकारी भेदभाव को प्रकट करते हुए इस असमानता को खत्म करने की मांग की उन्होंने कहा कि किसी दलित महिला या लडकीइ के साथ रेप यदि अत्याचार होता है तो सरकार की तरफ से आठ लाख रूपये दिए जाते हैं। कोई दलित मा पिछड़ी जातियों की लडकी को घूरता है तो सरकार उस लड़की को एक लाख रूपये का सांत्वना राशि देती है। राजा भैया ने कहा कि मुझे इस रकम से कोई आपत्ति नहीं है, पर कोई अपराधी कभी जाति पूछकर कभी अत्याचार नहीं करता है। यहां पर सरकार को भेदभाव खत्म करके सभी उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को सरकारी लाभ देने की व्यवस्था करनी होगी। इस मौके पर भैय्या ने जनसता पार्टी को पूरे यूपी में विस्तार करने की रणनीति पर बल दिया। अब यूपी के लोकसभा चुनाव में यही देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के खिलाफ बन रही महा गठबंधन के साकार होने के इस चुनाव कितना मनोरंजक या बहुकोणीय सा होगा। या अपनी साख के लिए पार्टी गठित करने वाले शिवपाल और राजा भैया को योगी और भाजपा के चादर से बाहर निकल कर खड़ा होने की जोरदार कोशिश करना ही ज्यादा दूरगामी और लाभप्रद होगी? इव सबका जवाब लोकसभा चुनाव में ही संभव है ताकि यूपी में पोलिटिकल की नयी परिभाषा को चरितार्थ किया जा सके।