देश में गिरते जलस्तर को लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट में हो जल्द अमल

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नई दिल्ली: नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में चिंता जाहिर की है कि देश में इस समय तकरीबन साठ करोड़ आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है। देश के तीन-चौथाई घरों में पीने का साफ पानी तक नहीं है। आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ेंगे।

देश में मानसून बेहतर रहने के बावजूद यह स्थिति आ सकती है इसका अहसास कभी नहीं किया गया। आज देश दुनिया में जल गुणवत्ता के मामले में 122 देशों में 120वें नंबर पर है। पानी के मामले में यह हमारी बदहाली का सबूत है।

मानसून के बावजूद यह समस्या विकराल हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण कारगर नीति के अभाव में जल संचय, संरक्षण व प्रबंधन में नाकामी है। इसी का खामियाजा देश कहीं जल संकट तो कहीं भीषण बाढ़ के रूप में भुगत रहा है। एक अध्ययन में कहा गया है कि पानी की मांग और आपूर्ति में अंतर के कारण 2020 तक भारत जल संकट वाला देश बन जायेगा।

नीति आयोग के अनुसार भूजल का 80 फीसद अधिकाधिक उपयोग कृषि क्षेत्र द्वारा होता है। इसे बढ़ाने में सरकार द्वारा बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी जिम्मेदार है। आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि यह सब्सिडी कम की जाए। विश्व बैंक की मानें तो भूजल का सर्वाधिक 92 फीसद और सतही जल का 89 फीसद उपयोग कृषि में होता है। पांच फीसद भूजल व दो फीसद सतही जल उद्योग में, तीन फीसद भूजल व नौ फीसद सतही जल घरेलू उपयोग में लाया जाता है।

वर्षाजल संरक्षण और उसका उचित प्रबंधन ही एकमात्र रास्ता है। यह तभी संभव है जबकि जोहड़ों, तालाबों के निर्माण की ओर ध्यान दिया जाए। पुराने तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए। सिंचाई हेतु खेतों में पक्की नाली बनाई जाए। बोरिंग- ट्यूबवैल पर भारी कर लगाया जाए ताकि पानी की बरबादी रोकी जा सके। आम जन की जागरुकता- सहभागिता से ही इस संदर्भ में देशव्यापी अभियान चलाया जाना आवश्यक है ताकि भूजल का समुचित विकास व नियमन सुचारू रूप से हो सके।

वर्ष 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट ने वर्षा जल संचय को जरूरी बताते हुए इससे संबंधित कानून को चुनौती देने वाली एक याचिका खारिज करते हुए कहा था कि मकान हो या सोसाइटी, सभी के लिए वर्षा जल संचय उपकरण लगाना अनिवार्य होगा। ऐसा नहीं करने वालों से पानी की अधिक कीमत वसूली जाएगी। हाई कोर्ट ने कहा था कि 500 वर्गमीटर या इससे अधिक बड़े प्लाटों पर बने मकानों पर वर्षा जल संचय उपकरण लगाना जरूरी होगा। दिल्ली हाइ कोर्ट का निर्णय इस दिशा में मील का पत्थर कहा जाएगा। लेकिन खेद है कि क्या ऐसा हुआ।

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