फैशन के पर्दे के पीछे छिपा युद्ध: अब ज़रूरत है कपड़ों से पहले देश को चुनने की !

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पूनम शर्मा 

युद्ध अब सिर्फ सीमा पर नहीं लड़े जा रहे—वे सुपरमार्केट की गलियों, ऐप्स की शॉपिंग कार्ट्स, और ब्रांडेड दुकानों में लड़े जा रहे हैं। भारत और यूरोप में फैले भारतीय मूल के लोग एक नई लड़ाई का बिगुल फूंक चुके हैं। निशाने पर हैं—ZARA, MANGO और H&M जैसे ग्लोबल ब्रांड्स।

इन ब्रांड्स ने भारत में अपनी मौजूदगी तो मजबूत की, लेकिन इनके माल की सिलाई होती है तुर्की और बांग्लादेश जैसे देशों में—जिनकी सरकारें या फौजी ताकतें भारत-विरोधी रुख अपना रही हैं।

लेबल से परे: फैशन नहीं, विचारधारा है

किसी ब्रांड स्टोर में जाइए और कपड़े का टैग देखिए—“Made in Turkey” या “Made in Bangladesh”। पहली नजर में ये ग्लोबल सप्लाई चेन लगती है, लेकिन गहराई में जाकर देखें तो ये सीधे-सीधे राजनीतिक और सामरिक गठजोड़ का समर्थन है।

तुर्की: पाकिस्तान का सामरिक  सहयोगी

तुर्की ने हाल के वर्षों में पाकिस्तान को लगभग 300–400 सैन्य ड्रोन सप्लाई किए हैं, जो अब भारतीय सीमा पर प्रॉक्सी वॉरफेयर में इस्तेमाल हो सकते हैं। साथ ही, दोनों देशों की नौसेनाएं मिलकर युद्धाभ्यास कर रही हैं।

क्या भारत के उपभोक्ता तुर्की के रक्षा उद्योग को अनजाने में पैसा दे रहे हैं? जवाब चिंताजनक है।

बांग्लादेश: दोस्त से दुश्मन की ओर?

बांग्लादेश ने वर्षों तक भारत का मित्र राष्ट्र होने का दावा किया, लेकिन हाल ही में इसके कुछ रणनीतिक हलकों से यह विचार सामने आया है कि अगर भारत-पाक युद्ध होता है, तो वे भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर कब्जा करने की सोच सकते हैं।

क्या भारत ऐसे देश से बने कपड़े पहनने को तैयार है, जो उसकी अखंडता पर नज़र रखता है?

ज़ारा और अन्य ब्रांड्स की दोहरी चाल

आंकड़े बताते हैं कि ZARA इंडिया की लगभग 37–42% इन्वेंट्री तुर्की और बांग्लादेश से आती है। ये महज़ व्यापार नहीं, एक रणनीतिक चूक है।
यह पैसा अंततः उन सरकारों और संस्थानों तक पहुंचता है जो या तो भारत विरोधी ताकतों से हाथ मिला चुके हैं, या भारत के खिलाफ विचार रखते हैं।

भारतीय आवाज़ें, यूरोप की गलियों में

लंदन, बर्लिन और पेरिस में बसे भारतीय मूल के नागरिक इन ब्रांड्स के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। डिजिटल कैम्पेन, हैशटैग्स, और बॉयकॉट मूवमेंट तेज़ हो रहे हैं।

“भारत बनाम पाकिस्तान नहीं—यह भारत बनाम आतंकवाद है। और जो उसका समर्थन करेगा, वह हमारा विरोधी है।”

ब्रांड से पहले भारत: उपभोक्ता का सवाल

क्या ब्रांड के प्रति लगाव, राष्ट्र के प्रति कर्तव्य से बड़ा हो सकता है?

हर भारतीय उपभोक्ता को यह सोचना होगा:
क्या मेरा पैसा ऐसे देशों की जेब में जा रहा है, जो मेरे देश के सैनिकों के खिलाफ खड़े हैं?

ZARA, MANGO और H&M के लिए चेतावनी

भारत के लोग अब जागरूक हैं। उपभोक्ता अब खामोश नहीं है। अगर ये ब्रांड तुर्की और बांग्लादेश से माल मंगाना जारी रखते हैं, तो इन्हें भारतीय बाजार से हाथ धोना पड़ सकता है—सरकार नहीं, जनता की ओर से।

“अगर तुम उन्हें हटाओगे नहीं, तो हम तुम्हें हटा देंगे।”

बहिष्कार घृणा नहीं—रणनीति है

आज का युद्ध केवल बंदूक से नहीं, बल्कि बटुए, बुद्धि, और भावना से लड़ा जाता है।
हर खरीद एक वोट है। हर टैग एक नीतिगत फैसला।

निष्कर्ष: भारत पहले, ब्रांड बाद में

देशभक्ति सिर्फ नारे लगाने से नहीं आती—वह रोज़मर्रा के फैसलों से आती है।

अगर हम चीनी ऐप्स को बॉयकॉट कर सकते हैं, तो उन ब्रांड्स को भी मना कर सकते हैं जो परोक्ष रूप से भारत विरोधी एजेंडे को बढ़ावा देते हैं।

अब वक्त है—जागरूकता से वार करने का।

बहिष्कार नफ़रत नहीं है।
बहिष्कार रणनीतिक जवाब है।
बहिष्कार नई-युग की  देशभक्ति है।

अब बटुआ भी हथियार है। चलो वार वहीं करें, जहां सबसे ज़्यादा चोट पहुंचे—उनकी कमाई पर।

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