ढपोर शंख और कांग्रेस

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प्रस्तुति .कुमार राकेश
बहुत प्राचीन काल की बात है। एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। अब प्राचीन काल था, ब्राह्मण थे, तो जाहिर सी बात है गरीबी ही होंगे। ब्राम्हण देवता भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते थे। ब्राह्मण देवता का एक नियम था कि वह सिर्फ 7 घरों में ही भिक्षा के लिए दरवाजा खटखटाते थे। अगर भिक्षा नहीं मिली, तो वह वापस खाली हाथ घर आ जाते थे।

एक बार की बात है, ब्राम्हण देवता घर से बाहर भिक्षा मांगने के लिए निकले और दुर्भाग्य से सात के सात घरों से उन्हें खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। घर वापस आए और एक दिन पहले का बचा हुआ खाना खाकर दंपत्ति प्रेम पूर्वक सो गए। अगले दिन ब्राम्हण देवता फिर से भिक्षा के लिए निकले और यह दिन भी पिछले दिन जैसा ही गुजरा, कहीं से भी भिक्षा नहीं मिली। उस रात दंपत्ति को भूखे पेट ही सोना पड़ा।

तीसरा दिन भी निराशा में गुजरा। ब्राह्मण देवता जब शाम को खाली हाथ घर पहुंचे तो पत्नी खूब लड़ी, बोली कि क्या कसम खा रखी है कि सात घर ही भिक्षा मांगनी हैं? अगर नहीं मिली थी तो और घरों में प्रयास करते। ब्राह्मण देवता पत्नी के ताने सुनकर भी वह अपने प्रतिज्ञा तोड़ना नहीं चाहते थे, अतः अगले दिन घर से निकलते हुए उन्होंने पत्नी से कहा कि यदि आज कहीं भिक्षा नहीं मिली तो मैं घर जीवित नहीं लौटूंगा।

ब्राह्मण देवता इस बार रास्ते में पड़ने वाले कई गांवों को छोड़कर एक दूसरे राज्य के गांव में पहुंचे, लेकिन नतीजा यहां भी वही रहा। ब्राह्मण देवता को आज भी किसी घर से भिक्षा नहीं मिली। निराश ब्राह्मण देवता नदी के पुल पर आत्महत्या करने के इरादे से पहुंचे। वह नदी में कूदने ही वाले थे कि एक साधु ने उनका हाथ पकड़ लिया और उनसे आत्महत्या की वजह पूछी।

वजह जानने के बाद साधु ने ब्राम्हण देवता को एक शँख दिया और उनसे कहा कि यह ‘इच्छापूर्ति शँख’ है। गाय के गोबर से भूमि को लीपने के पश्चात इस शँख को प्रणाम करना और तब जो भी वरदान मांगोगे, इस शँख से वह तुम्हें मिलेगा। ब्राह्मण देवता खुशी-खुशी घर की ओर लौटने लगे। रास्ते में रात्रि होने पर उन्होंने एक गांव में एक कपटी व्यक्ति के घर में शरण ली।

कपटी व्यक्ति ने ब्राह्मण देवता से कहा,”प्रभु आपका इस गरीब के घर में स्वागत है। मैं बहुत गरीब हूं इसलिए भूसी की रोटी और उड़द की दाल ही खाता हूं और वही आपको भी खिला सकता हूं।” ब्राह्मण देवता ने कहा कि तुम चिंता मत करो, बस थोड़ा सा गाय का गोबर ला दो। कपटी व्यक्ति गाय का गोबर लेकर आया। ब्राह्मण देवता ने उससे भूमि को लीपा और शंख रखकर उससे 56 प्रकार के व्यंजनों की इच्छा जाहिर की।

वरदान तुरंत ही फलीभूत हुआ और उनके चारों तरफ व्यंजनों का ढेर लग गया। दोनों ने ही प्रेम पूर्वक भोजन किया और सो गए। ऐसा चमत्कारी शंख देखकर कपटी की नीयत डोल गई। जब ब्राह्मण देवता गहरी नींद में थे तो कपटी ने अपने घर का शँख ब्राह्मण देवता के शँख से बदल लिया। अगली सुबह ब्राह्मण देवता अपने घर पहुंचे और पत्नी को बुलाकर जल्दी से गाय का गोबर मंगवा कर, पूजन करने के बाद शँख से भोजन की इच्छा प्रकट की, लेकिन वह नकली शंख कहां से इच्छापूर्ति करता?

यह देख ब्राम्हण देवता फिर से निराश हो गए और उसी साधु की तलाश में उसी नदी के तट पर जा पहुंचे। उन्होंने साधु को अपने सफर का पूरा वृतांत कह सुनाया। यह सुनकर साधु ने ब्राम्हण देवता को एक दूसरा शँख दिया और कहा कि यह ढपोर शँख है। इसकी खासियत यह है कि इससे जो भी मांगोगे यह उसका दोगुना देता है। साधु ने ब्राह्मण देवता से कहा कि रास्ते में कहीं भी इस शँख का प्रयोग मत करना और यदि देर हो जाए तो उसी कपटी के घर पर रुक जाना।

ब्राह्मण देवता खुशी-खुशी फिर से एक बार घर की ओर चल दिए और रात्रि होने पर उसी कपटी के घर पर रुके। कपटी ने पूछा प्रभु इतनी जल्दी फिर से वापस? ब्राह्मण देवता ने उसे बताया कि वह जो शँख मेरे पास था, वह अपवित्र हो गया था, इसलिए मैं उसको बदलने गया था। अभी जो शंख मेरे पास है यह मांगने पर दोगुना देता है। फ़िर दोनों ही भोजन करने के पश्चात सो गए। एक बार फिर से कपटी के मन में लालच घर कर गया और ब्राम्हण देवता के सोने के पश्चात उसने पहले चुराए हुए इच्छापूर्ति शँख को ढपोर शँख से बदल लिया।

अगली सुबह ब्राम्हण देवता कपटी को प्रणाम कर अपने घर की ओर चल दिए। उनके जाते ही कपटी व्यक्ति जल्दी से गाय का गोबर लेकर आया और कर्मकांड करने के पश्चात ढपोर शँख को प्रणाम करते हुए बोला, “भगवन! मुझे सोने की सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दो।” ढपोर शँख से आवाज आई, ” सौ क्यों बेटा दो सौ स्वर्ण मुद्राएं ले लो।” कपटी ने कहा, “ठीक है प्रभु ! मुझे दो सौ स्वर्ण मुद्राएं ही दे दीजिए।”

ढपोर शँख से फिर आवाज आई, “दो सौ क्यों बेटा, चार सौ स्वर्ण मुद्राएं ले लो।” कपटी प्रसन्न होता हुआ बोला, “ठीक है भगवान, चार सौ स्वर्ण मुद्राएं ही दे दीजिए।” ढपोर शँख से फिर आवाज आई, “चार सौ क्यों बेटा, आठ सौ स्वर्ण मुद्राएं ले लो। कपटी को अब क्रोध आने लगा। क्रोधित होकर उसने कहा, “ठीक है, आठ सौ ही दे दो। ढपोर शँख से फिर आवाज आई, “आठ सौ क्यों बेटा, सोलह सौ स्वर्ण मुद्राएं ले लो।”

अब कपटी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने कहा इतनी देर से मुझे उल्लू बना रहे हो। दो सौ ले लो, चार सौ ले लो, आठ सौ ले लो मगर दे नहीं रहे हो। ढपोर शंख ने हंसते हुए कहा, “अरे मूर्ख मैं कोई इच्छापूर्ति शँख थोड़े ही ना हूं। मैं तो ढपोर शँख हूँ, सिर्फ कहता हूं, देता नहीं हूं। आजकल के चुनावी वादे ही देख लो, “साल का एक लाख ले लो, कर्ज माफ़ी ले लो, पेंशन ले लो, खटाखट ले लो, सटासट ले लो, पटापट ले लो। भारत कहानियों का देश है इसलिए भारत की जनता अच्छे से जानती है कि यह वादे ढपोर शँख है सिर्फ कहता है देता नहीं है।

इच्छापूर्ति शँख तो विश्वनीय व्यक्ति का चयन ही है।

*कुमार राकेश

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