*कुमार राकेश
भारत का विपक्ष भी गज़ब हैं..उन्हें साधना, ध्यान, पूजा से इतना नफरत क्यों? भारतीय हिन्दू धर्म और संस्कृति के खिलाफआलोचना क्यों? यदि कोई व्यक्ति चर्च जाता या मस्जिद जाता तो इन विपक्षी दलों के नेताओ के मुंह में ताला लग जाता…उन नेताओ की मोहब्बत देखते ही बनती…
जी हाँ,ये जबरदस्ती थोपे गए सेक्युलर शब्द वाले देश का सच व त्रासदी हैं. विपक्ष को लेकर “हाथी के दांत खाने के और,दिखाने के और” वाली कहावत सटीक बैठती हैं. इस मंडली में कांग्रेस, राजद, सपा, द्रमुक जैसी सनातन हिन्दू विरोधी पार्टियाँ हैं. इन सभी दलों के इतिहास व जड़ में एकरूपता है वह हैं-सनातन हिंदुत्व का विरोध..
जहाँ तक सनातन हिंदुत्व संस्कृति के तहत साधना और ध्यान की बात है. उससे किसी को किसी का विरोध नहीं होना चाहिए. लेकिन मुद्दाविहीन विपक्ष के पास मुद्दों का घोर अभाव हैं. क्योकि उनके सत्ता का मतलब साधना नहीं साधन हैं. एक ऐसा साधन, जिससे निहित स्वार्थों के तहत संबंधित दलों व नेताओ के घरों व परिवारों को समृद्ध किया जा सके.लेकिन अब और नहीं. नए भारत के परिपेक्ष्य में साधना और पूजा जरुरी है. उस क्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी आलोचना के केंद्र बिंदु बन गए हैं. यानी साधना और पूजा जैसे भारत में अपराधं हो गए हो .
30 मई को लोक सभा 2024 चुनाव के अंतिम चरण का प्रचार कार्य समाप्त हो गया. प्रधानमंत्री मोदी ने तय किया कि वह कन्याकुमारी के स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक के ध्यान मंडपम में 30 मई से 1 जून के शाम तक करीब 45 घंटों का ध्यान करेंगे. ये एक ऐतिहासिक स्थल है. स्वामी विवेकानंद ने 1892 में इसी शिला पर 3 दिनों तक ध्यान किया था. उसके बाद ही वह अमेरिका गए थे.उसके बाद ही 11 सितंबर 1893 को शिकागो में उनका विश्व विजयी भाषण हुआ था. उसके बाद स्वामी विवेकानंद विश्व पटल पर छा गए थे. आज 130 वर्षो बाद फिर एक बार उनके अनन्य भक्त व साधक नरेन्द्र उसी विश्व प्रणेता का अनुसरण करते हुए भारत के समग्र कल्याण व विश्व शांति के लिए ध्यान कर रहे हैं.
उल्लेखनीय हैं कि स्वामी विवेकानंद का प्रथम नाम नरेंद्र ही था. कन्याकुमारी की यात्रा करने वाले नरेन्द्र भाई मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने वहां की यात्रा की. कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का कार्यक्रम बना था, लेकिन कई कारणों से वह वहां नहीं जा सकी थी.
2024 चुनाव के पहले 2019 में भी प्रधानमंत्री मोदी चुनाव के अंतिम चरण के प्रचार समाप्ति के बाद केदारनाथ में ध्यान करने गए थे.वह ध्यान भी विपक्ष के लिए आलोचना का विषय था.उसके पूर्व 2014 में शिवाजी महाराज के प्रतापगढ़ में ध्यान किया था.
प्रधानमंत्री मोदी 30 मई की शाम कन्याकुमारी पहुँच गए और भगवती देवी माता अम्मन देवी से आशीर्वाद लिया. शक्तिरूपा माता अम्मन देवी का पीठ51 शक्तिपीठों में से एक बताया जाता हैं.उसके बाद वह ध्यान आसन पर बैठ गए.कन्याकुमारी में माता अम्मन देवी का शक्ति पीठ हैं तो स्वामी विवेकानंद का ध्यान स्थल भी है.
ध्यान का मतलब आत्म शक्ति के विकास के साथ समग्र शांति से हैं.परन्तु विपक्षी दलों को शांति और प्रगति की भाषा समझ में नहीं आती.जरा सोचिये, मोदी की ध्यान शैली को लेकर विपक्ष की टिपण्णी की वजह-सिर्फ अशांति..क्या हम मुगलों और अंग्रेजो का राज में जी रहे हैं.क्या कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल मुग़ल काल में हैं?
कांग्रेस अध्यक्ष श्री खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी के ध्यान साधना को नाटक बताया।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पीएम मोदी के कन्याकुमारी में ध्यान लगाने को लेकर कहा कि प्रधानमंत्री की कुर्सी बहुत मूल्यवान है और इसकी संवैधानिक जिम्मेदारियां हैं, लेकिन मोदी को इसकी परवाह नहीं है। ममता ने आरोप लगाया कि हर चुनाव में अंतिम चरण के मतदान से 48 घंटे पहले मोदी प्रचार पाने के लिए कहीं ध्यान पर बैठ जाते हैं। ममता ने कहा कि वह ध्यान कर सकते हैं, लेकिन कैमरों की मौजूदगी में क्यों?
शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि ध्यान साधना के लिए नहीं बल्कि मीडिया अटेंशन के लिए कन्याकुमारी गए हैं पीएम मोदी”..
राजद प्रवक्ता मनोज झा प्रधानमंत्री मोदी की साधना पर अनर्गल टिपण्णी कर रहे हैं. कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने इस साधना-पूजा को चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन बताया हैं .राजद के तेजस्वी यादव का कहना हैं पूजा-अर्चना में कैमरे की क्या जरुरत हैं ,
तो वहीं जेपी नड्डा से साक्षात्कार में कहा, ‘मोदीजी को जब भी मौका मिलता है साधना करते हैं.. जो ध्यान करते हैं, उन्हें ही पता है, जो सनातन विरोधी हैं उन्हे क्या पता. जनता मोदीजी को अत्यंत प्रेम करती है, उनके नेतृत्व में देश चले यही चाहता है. उत्तर भारत छोड़ें केरल, तमिलनाडु में लोगों को पीएम के लिए प्यार है.. मूड ऑफ नेशन मोदीजी के लिए है.’
भाजपा के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी कन्याकुमारी उर्जा लेने गए है। उस उर्जा से देश के विकास में तेजी आएगी।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी एक साधक हैं. कोई साधक ही उनकी भावना को समझ सकता हैं।
गिरीराज सिंह ने पीएम मोदी की तुलना श्री कृष्ण से की और प्रधानमंत्री मोदी को उन्होंने वर्तमान समय का श्रीकृष्ण बताया। श्री सिंह ने गीता के श्लोक ” यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ को दोहराते हुए कहा कि जब जब देश में धर्म की हानि होगी तब तब मै अवतार लुंगा।
इन सबसे विपरीत लोक जन शक्ति के पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान का कहना है -वे प्रधानमंत्री हैं . पीएम जहाँ जायेगे, खबर तो बनेगी ही. साधन और भक्ति में क्या बुराई हैं. जबकि कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत ने कहा कि ये गलत हैं. सपा नेता अखिलेश यादव ने भी व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि कन्या कुमारी देश का अंतिम छोर हैं, मोदी जी ध्यान अवस्था में कही वहां से आगे न निकल जाये.
मेरा मानना हैं कि विपक्ष दलों के सनातन हिंद्त्व विरोधी नेता चाहे कुछ भी बोले, लेकिन 4 जून के बाद उन सबकी हवा निकल जाएगी.प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेगे.जो अपने आप में कई नया रिकॉर्ड बनाएगा.फिर देश देखेंगा कि मुगलों व अंग्रेजो के वंशजो का अब इस नए भारत में क्या हाल होगा.समय समय की बात हैं .
भारतीय सनातन संस्कृति में कोई भी ध्यान और पूजा व्यर्थ नहीं होता.उससे हमें असीम शक्ति और आनंद की प्राप्ति होती हैं.शायद इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव परिणाम 4 जून के पहले ये ध्यान -पूजा का कार्यक्रम तय किया. वैसे 1 जून को लोक सभा 2024 चुनाव का अंतिम चरण हैं. 4 जून को चुनाव परिणाम हैं. शायद 4 जून को प्रधानमंत्री मोदी देश को एक बार फिर नयी ऊर्जा से रूबरू करवाने वाले हैं. पूरा देश 4 जून का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हैं . हम भी कर रहे है. क्योकि सब कह रहे हैं-आयेंगे तो मोदी ही !!!
कुमार राकेश,वरिष्ठ पत्रकार व लेखक,भारत व विश्व के कई देशो के लिए पिछले 34 वर्षो से लेखन व पत्रकारिता में सक्रिय,सम्प्रति GlobalGovernanceNews समूह और समग्र भारत मीडिया समूह के सम्पादकीय अध्यक्ष हैं .