गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: अपनी ही बनाई व्यवस्था में फेल हुए मनोहर लाल खट्टर

मनोहर लाल की विदाई पर हमारे जागरूक पाठक राजीव वत्स का आंकलन l

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गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल l अपनी ही बनाई व्यवस्था में फेल हुए मनोहर लाल खट्टर!

मनोहर लाल की विदाई पर हमारे जागरूक पाठक राजीव वत्स का आंकलन l 

5 सितंबर, 2016 को ठीक यही लाइन खट्टर साहब के कलेजे के टुकड़े जवाहर यादव ने मेरे लिए हरियाणा के सभी हिंदी के अखबारों में पहले पन्ने पर छपवाई थी। कल के सभी अखबार खट्टर साहब की विदाई की खबरों से रंगे होंगे लेकिन, हरियाणा का दुर्भाग्य ये है कि भाजपा ने उनका जो विकल्प प्रदेश को दिया है वो तो उनसे भी गया बीता है।

राजनीति से दूर, खट्टर साहब के कार्यकाल का एक निष्पक्ष आकलन तो बनता है।

मैं खट्टर साहब को उस समय से जानता हूँ जब वह रोहतक के संघ कार्यालय में बाजू वाली बनियान और सफेद पाजामे (जिसमे से उनका पट्टे का कच्छा भी नुमाया होता रहता था) में घूमते रहते थे।

अगर मैं ये कहूँ कि ‘खट्टर साहब एक बेईमान सरकार के स्वयम्भू ईमानदार मुख्यमंत्री थे’ तो गलत नही होगा।

वह RSS के प्रचारक थे। यही उनकी योग्यता का पैमाना था, यही उनकी मैरिट थी और यही उनकी सोच थी। इसके अलावा उनके पास ना कोई अनुभव था, ना कोई विजन था और ना ही कोई प्रशासनिक अनुभव और योग्यता।

खट्टर साहब का साढ़े नौ साल का कार्यकाल उत्सवों, प्रचार, आत्ममुग्धता, portalization of governance, political arrogance, कर्फ्यू, धारा 144 और bureaucratic governance का एक परफेक्ट उदाहरण है।

खट्टर साहब जब 2014 में मुख्यमंत्री बने तो उनको ZERO अनुभव था और वो इस बात को स्वीकार भी करते थे लेकिन, उनसे सबसे बड़ी गलती हुई उस टीम के चुनाव में जिसको उन्होंने OSD, Advisor, Media Coordinator…बनाकर अपने चारों तरफ इकट्ठा कर लिया। इस टीम में से कुछ का मानसिक स्तर तो जेबकतरों से भी गया बीता था। ये टीम खट्टर साहब की अनुभवशून्यता और अकुशलता का फायदा उठाकर खुद तो मालामाल होती गई और खट्टर साहब उनके रक्षक बने रहे। ये तो गनीमत है कि पिछले साढ़े नौ साल में कभी विपक्ष ने आक्रामक होकर सरकार से सवाल नही किए अन्यथा खट्टर साहब की सरकार और उनकी मंडली पर सवाल बहुत गम्भीर हैं?

कायदे से तो खट्टर साहब को फरवरी 2016 में उसी समय चलता कर दिया जाना चाहिए था जब 15 दिन तक हरियाणा जलता रहा और वो तमाशा देखते रहे। प्रशासनिक नाकामी का इससे बड़ा उदाहरण हरियाणा में ना हुआ और ना ही होगा। लेकिन, इस भीषण हिंसा के बाद का प्रदेश का जातीय ध्रुवीकरण खट्टर साहब को बड़ा रास आया और उनकी रहें आसान होती गई। खट्टर साहब को कभी कोई चुनौती आई भी तो उसको मोदी जी ने संभाल लिया। आखिर संभालते भी क्यों नही? कल ही तो बताकर गए हैं कि वो खट्टर साहब के साथ एक ही दरी पर सोते थे और एक ही बाइक पर घूमते थे। खट्टर साहब ने अपने सलाहकारों की सहायता से पार्टी में अपने प्रतिद्वंद्वियों- रामबिलास शर्मा, ओमप्रकाश धनखड़, प्रो गणेशी लाल, कैप्टन अभिमन्यु जैसे लोगों को एक-एक करके ठिकाने लगा दिया।
खट्टर सरकार का दूसरा कार्यकाल पूरी तरह से खट्टर, खुल्लर, जवाहर, दुष्यंत और दफतौर का कार्यकाल था। सीएम की अनुमति के बिना के चपड़ासी का तबादला भी नही हो सकता था।

खट्टर साहब जब सत्ता में आए तो भर्तियों में पारदर्शिता के लिए मन से गम्भीर थे।
उन्होंने शुरू में कुछ गम्भीर प्रयास भी किए लेकिन, उनकी सलाहकार मंडली ने ही उनके प्रयासों को पलीता लगा दिया।

खट्टर साहब की एक बात के लिए मैं बड़ाई करूंगा कि उन्होंने ना अपने विधायकों-मंत्रियों को कभी भर्तियों की पर्चियां पकड़ने की छूट दी और ना कभी किसी भर्ती के लिए खुद कोई लिस्ट भेजी लेकिन, दीक्षा देकर आए भर्ती आयोगों के सदस्यों, उनके चेहेते नवरत्नों और संघ के चैनल से पेपर कंडक्ट करवाने का ठेका लिए बैठी एजेंसियों ने उनको इस क्षेत्र में भी असफल कर दिया लेकिन, हरेक पेपर लीक और अटैची कांड के बहुत से ऐसे युवाओं को बिना सिफारिश अच्छी नौकरियां भी मिली। जीरो मैरिट वाले इस हरियाणा में 10-20% मेरिट का चलन शुरू करने का श्रेय तो खट्टर साहब को बनता ही है।
भर्तियों में पारदर्शिता के क्षेत्र में खट्टर साहब का बहुत बड़ा नाम हो सकता था यदि उन्होंने भर्ती घोटालों और पेपर लीक की घटनाओं पर क्लीन चिट जारी करने की बजाय राजधर्म निभाते हुए अपने करीबियों पर कार्रवाई की होती।
भर्ती आयोग ही नही, यूनिवर्सिटीज की भर्तियों को भी संघ वालों के आशीर्वाद से एक ही लॉबी के लोग जीम गए।

इसके अलावा खट्टर साहब हर मोर्चे पर असफलताओं और नकारापन की पटकथा लिखकर गए हैं। उनके नेतृत्व में हरियाणा में बेरोजगारों की अथाह फौज खड़ी हो गई और वो झूठे दावे करते रहे।

खट्टर साहब की सरकार में प्रदेश ने तीन बार भयावह हिंसा देखी, किसानों पर पुलिस की बर्बरता देखी, प्रदेश को नशे का गढ़ बनते देखा और कानून व्यवस्था का दिवाला पिटते देखा।

प्रदेश में अफसरशाही और पुलिस बेलगाम हैं। खट्टर साहब के नेतृत्व में हरियाणा ‘ब्यूरोक्रेटिक गवर्नेंस’ का एक परफेक्ट उदाहरण बना लेकिन इसके बावजूद भी प्रशासनिक व्यवस्था और कानून व्यवस्था का दिवाला पिट गया। प्रशासन ‘पोर्टल्स’ पर चल रहा है और पोर्टल ठप्प पड़े हैं।
कानून व्यवस्था के मामले में आज हरियाणा देश के सर्वाधिक अपराध दर वाले राज्यों में शुमार है। हर गली-कूचे में ड्रग्स का दानव बैठा है। लूट, डकैती, हत्याओं के मामले में प्रदेश की हालत बेहद खराब है। अंतरराज्यीय गैंग्स हरियाणा को अपना गढ़ बना चुकी हैं।

जब खट्टर साहब सत्ता में आए तो यह प्रदेश इस देश के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक था। पूरी दुनिया के उद्योगपति यहां निवेश के लिए लालायित थे लेकिन, खट्टर सरकार के साढ़े नौ वर्ष के शासन में जो उद्योग पहले से लगे हुए थे वो भी गुजरात पलायन कर रहे हैं नए निवेश की तो बात ही छोड़िए। पिछले साढ़े नौ साल में सरकारी स्कूलों पर ताले लग गए, 2 लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं, कोई नई यूनिवर्सिटी बनकर तैयार नही हुई, एक भी सरकारी मेडिकल कॉलेज नही बना, कोई बड़ी सरकारी परियोजना शुरू नही हुई इसके बावजूद प्रदेश पर कर्ज 65000 करोड़ से बढ़कर 360000 करोड़ पहुंच गया।
ये पैसा कहां गया कोई हिसाब नही।

खट्टर साहब को तो फरवरी 2016 की हिंसा के बाद ही चला जाना चाहिए था। उनको तो 8 साल का राज, वो भी बिना जवाबदेही वाला, फ्री में मिल गया। अब उनको कोई मलाल नही रहना चाहिए। हो सकता है लोकसभा चुनावों के उपरांत उन्हें नड्डा जी के स्थान पर राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना दिया जाए लेकिन, उन्होंने और उनकी चमचा मंडली ने प्रदेश का जो भट्ठा बैठाया है उसकी भरपाई सम्भव नही होगी।

दुख का विषय सिर्फ ये नही है कि खट्टर साहब भट्ठा बैठा गए, चिंता का विषय ये भी है कि नायब सैनी के रूप में उनका विकल्प उनसे भी गया बीता है।

खट्टर साहब की तरह ही नायब सैनी भी बिना मैरिट का चुनाव हैं जो विधानसभा चुनाव तक ‘नाइट वाचमैन’ के रूप में शुद्ध रूप से जातिय ध्रुवीकरण के उद्देश्य से चुने गए हैं।

प्रदेश भाजपा के सभी स्थापित नेताओं को नकारकर नायब सैनी का चूना जाना सिर्फ और सिर्फ जातिय गोलबंदी का खेल है। नायब सैनी जी की एकमात्र योग्यता उनकी जाति है। खट्टर सरकार के साढ़े नौ साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी ‘मार्कशीट’ ये है कि आज के दिन हरियाणा में भाजपा को ‘मोदी मैजिक’ पर विश्वास है ना खट्टर के ‘ बिना पर्ची, बिना खर्ची’ पर। भाजपा प्रदेश में विशुद्ध जातिय ध्रुवीकरण के भरोसे खड़ी है और इनका ये दांव भी फेल होने जा रहा है।

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