श्रीराम मन्दिर का निर्माण – अब रामराज्य की ओर

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27जनवरी। 22 जनवरी 2024 (पौष शुक्ल द्वादशी, संवत् 2080) विश्व के इतिहास में एक स्वर्णिम तिथि बन गयी है। इस दिन 496 वर्षों के संघर्ष की गौरवमयी, सफल, सुखद परिणिति की अनुभूति सम्पूर्ण विश्व को हुई। रामलला के साथ उनकी मर्यादाओं व हिन्दू संस्कृति की भी पुनर्प्राणप्रतिष्ठा हुई। इस दिन यह सिद्ध हो गया कि राम ही राष्ट्र हैं और राष्ट्र ही राम हैं। समस्त विघटनकारी व राष्ट्र विरोधी षड़यंत्र धूमिल हो गये। सम्पूर्ण विश्व भी इस दिन आह्लादित था क्योंकि उन्हें लगा कि एक नये भविष्य की रचना की जा रही है। हिन्दू समाज ने जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण के लिए विश्व का सबसे लम्बा संघर्ष किया। 76 बार हुए भीषण युद्धों में सम्पूर्ण देश के रामभक्तों ने सहभागिता की, इनके बिना यह पावन दिवस सम्भव नहीं था। इन संघर्षों में बलिदान हुए लाखों बलिदानियों को प्रन्यासी मण्डल नमन् करता है।

पूज्य सन्तों और महापुरुषों के संकल्प, दूरदृष्टी और बलिदानों के बिना यह गौरवशाली पल नहीं आ सकता था। उन सभी ज्ञात-अज्ञात संतों-महापुरुषों को वंदन है। पूज्य शिवरामाचार्य जी महाराज, पू0 महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज, पू0 महंत रामचन्द्र परमहंस दास जी महाराज, पू0 महंत अभिराम दास जी महाराज, पू0 महंत अवेद्यनाथ जी महाराज, पूज्य वामदेव जी महाराज, पू0 महंत नृत्यगोपाल दास जी महाराज, पूज्य देवरहा बाबा, पू0 पेजावर स्वामी विश्वेशतीर्थ जी महाराज, श्रद्धेय श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, मा0 मोरोपंत जी पिंगले, मा0 अशोक जी सिंहल, युग पुरुष परमानन्द गिरि जी महाराज, दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा जी आदि स्वनाम धन्य संतों-महापुरुषों का हिन्दू समाज सदैव आभारी रहेगा।

पूज्य संतों के आशीर्वाद से विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में 1984 से प्रारम्भ हुआ श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन विश्व का सबसे बड़ा आन्दोलन बन गया। आन्दोलन के विभिन्न चरणों में करोड़ों रामभक्तों की सक्रिय भूमिका और सम्पूर्ण देश की सहभागिता से यह एक हिन्दू पुनरुत्थान का महाअभियान बन गया। सैकड़ों कारसेवकों के बलिदान ने मंदिर निर्माण के लिए दृढ़ राष्ट्रीय संकल्प को प्रखर रूप से प्रकट किया। यह विश्व का सबसे लम्बा न्यायिक संघर्ष भी था जो 134 वर्षों तक निरन्तर चला। न्यायिक संघर्ष में विजय प्राप्त कर हिन्दू समाज ने इस अद्भुत रूप में संकल्प को साकार कराया। यह विश्व का एक विलक्षण घटनाक्रम रहा। भारत के वरिष्ठतम न्यायविद् के. पाराशरन जी और वैद्यनाथन जी के कुशल नेतृत्व में समर्पित अधिवक्ताओं का सतत् परिश्रम व योगदान अविस्मरणीय रहेगा। स्वतन्त्रता के 77 वर्षों के पश्चात् इस संघर्ष की ऐसी गौरवशाली परिणिति के लिए वर्तमान भारत सरकार व वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार की कुशलता और समर्पण भी अभिनन्दनीय है।

22 जनवरी 2024 के पश्चात् एक नए युग का आरंभ हो गया है। अब राम मंदिर से रामराज्य की यात्रा आरम्भ हो गई है। यह एक सभ्यता का संघर्ष है जिसमें हिन्दू सभ्यता के सांस्कृतिक जीवन मूल्य स्थापित हो रहे हैं। इस नये युग के निर्माण का उत्तरदायित्व हिन्दू समाज को स्वीकार करना होगा और स्वयं को उसके लिए तैयार करना होगा।

वर्तमान कालखण्ड भारत के लिए गौरवशाली तथा सकारात्मक परिवर्तन का कालखण्ड है। सम्पूर्ण विश्व भारतीय संस्कृति की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि समस्त वैश्विक समस्याओं का समाधान हिन्दू संस्कृति और जीवन मूल्यों से ही मिल सकता है। आने वाला समय भारत का समय है। श्रीराम मन्दिर इस परिवर्तन का आधार बन रहा है। श्रीराम मन्दिर अनन्तकाल तक सम्पूर्ण मानवता को प्रेरणा का संदेश देता रहेगा।

विश्व हिन्दू परिषद का केन्द्रीय प्रन्यासी मण्डल हिन्दू समाज से आह्वान करता है कि वह अनुशासित, संस्कारित, मर्यादित, कर्तव्यनिष्ठ और धर्माधारित जीवन जीने वाला समाज निर्माण करे। समरस, समृद्ध, सशक्त, सुरक्षित व संगठित समाज निर्माण में सभी अपनी सक्रिय भूमिका निभायें। महिलाओं की गरिमा और सहभागिता सुनिश्चित करने वाला, पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण करने वाला, समस्त विघटनकारी राष्ट्र विरोधी शक्तियों को पराजित करने वाला, सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना करने वाला समाज निर्माण रामजी की कृपा से हम सभी कर सकेंगे, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है।

केन्द्रीय प्रन्यासी मण्डल आह्वान करता है कि रामलला की प्राणप्रतिष्ठा के बाद अब प्रत्येक हिन्दू अपने जीवन में रामलला के आदर्शों की प्राणप्रतिष्ठा करें। अपने जीवन को उनकी मर्यादाओं का दर्पण बनाना है, तभी हम इस महान कार्यक्रम को और अधिक सार्थक बना पायेंगे।

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