मप्र में भगोरिया पर्व शुरू, 176 जगह भरेंगे भगोरिया हाट, एक सप्ताह तक उठा सकते हैं लुत्फ

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समग्र समाचार सेवा

भोपाल, 13 मार्च। मध्य प्रदेश के पश्चिम क्षेत्र में आदिवासियों के उल्लास और उमंग के पर्व भगोरिया का आगाज 11 मार्च से हो गया है। एक सप्ताह तक चलने वाला यह भगोरिया होलिका दहन के साथ 17 मार्च को खत्म होगा। भगोरिया दरअसल एक हाट बाजार होता है। जो होली के सात दिन पहले से लगता है। अलग-अलग इलाकों में लगने वाले बाजार में आदिवासी पारंपरिक अंदाज में सज-धजकर आते हैं।

धार जिले में सर्वाधिक 59 स्थानों पर भगोरिया हाट लगेंगे

यह पर्व आदिवासियों के लिए ये किसी त्योहार जैसा ही होता है। इंदौर संभाग के 5 आदिवासी बहुल जिलों के 176 गांव व कस्बों में भगोरिया हाट की धूम रहेगी। धार जिले में 59 स्थानों पर, झाबुआ जिले में 36 स्थानों पर, अलीराजपुर जिले में 24 स्थानों पर, बड़वानी जिले में 45 स्थानों पर व खरगोन जिले में 12 स्थानों पर आदिवासियों के लोकप्रिय सांस्कृतिक पर्व भगोरिया का आयोजन शुरू हो गया है। मप्र के धार जिले में सर्वाधिक 59 स्थानों पर भगोरिया हाट लगेंगे।

भगोरिया है क्या, जानें

होली के पहले हफ्ते में पड़ने वाले साप्ताहिक बाजार को ही भगोरिया हाट कहा जाता है। जब पूरा आदिवासी समाज फसलें काटकर खेती-बाड़ी के कामों से निवृत्त हो जाता है। इसके बाद वो अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर उत्साह के साथ पूरे परिवार, दोस्तों के साथ इन हाट में जाते हैं। इस दौरान ढोल-मांदल गूंजते हैं। आदिवासी पारंपरिक लोकनृत्य करते हैं। सातों दिन अलग-अलग जगह इसका आयोजन होता है। आदिवासी बड़ी संख्या में वहां पहुंचते हैं। मेले जैसा नजारा हो जाता है। आदिवासियों की परंपरा के बीच अलग ही उत्साह नजर आता है। अब तो आसपास के शहरों से भी लोग यहां पहुंचने लगे हैं।

पहले ये धारणा भी थी

पहले ये धारणा भी थी कि भगोरिया आदिवासियों का वैलेंटाइन डे होता है। यहां आदिवासी युवतियों को पान खिलाकर शादी के लिए प्रपोज किया जाता था। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। यहां आदिवासी अपनी धुन में रहते हैं, टोलियों में आते हैं, मस्ती करते हैं, बाजार करते हैं और लौट जाते हैं। पुराने लोगों का कहना है कि कई सालों पहले पहाड़ों-जंगलों में बसे आदिवासी क्षेत्रों में संचार तथा यातायात के साधन उपलब्ध नहीं थे। दूर-दूर रहने वाले परिवार, दोस्त से नहीं मिल पाते थे। ऐसी स्थिति में भगोरिया हाट के माध्यम से आपस में एक-दूसरे से मिलकर खुश हो जाते हैं। इस विशेष हाट में सभी आदिवासी सज-धजकर आते हैं।

दिन भर मांदल की थापबांसुरी की धुन पर आदिवासी लोकनृत्य करते हैं

बहुत अधिक संख्या होने से मेला जैसे भर जाता है। मेले रूपी हाट को उत्सव के रूप मे मनाते हैं और दिन भर मांदल की थाप, बांसुरी की धुन पर आदिवासी लोकनृत्य करके खुशियां मनाते हैं। इस दौरान ताड़ी (देशी कच्ची शराब) का भी भरपूर दोहन होता है।

धार जिले में सबसे ज्यादा हाट  

इस बार मस्तीभरे भगोरिया पर्व की शुरुआत 11 मार्च शुक्रवार से धार जिले के डही क्षेत्र के ग्राम धरमराय व पड़ियाल तथा धामनोद, मनावर, जौलाना से हुई। इस बार जिले का सबसे बड़ा डही का भगोरिया सबसे आखिर में 17 मार्च को आयोजित होगा। बता दें कि होलिका दहन के रोज पड़ने वाला अंतिम भगोरिया खूब भरता है। जिले में केवल डही विकासखंड ही ऐसा है, जहां पूरे सात दिन तक भगोरिया की धूम रहेगी।

बाजार में रौनक दिखाई देने लगी

इधर भगोरिया शुरू होते ही आदिवासी बंधु अपनों को बुलावा भेजने लगे हैं, वहीं बाजार में रौनक दिखाई देने लगी है। पलायन पर गए ग्रामीण भी लौटने लगे हैं। व्यापारी वर्ग ने भी भगोरिया के चलते अपनी तैयारियां लगभग पूर्ण कर ली हैं। कुछ व्यवसायियों ने तो आदिवासियों की खास मिठाई माजम बनाकर रख ली है।

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