सुदेश गौड़।
अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में ट्रंप ने अब तक गौरवशाली रहे राष्ट्रपति पद पर जो कालिख पोती है, उसे साफ करने में अमेरिका को बहुत लंबा समय लगेगा।
अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस 4 जुलाई 1776 से अब तक के 244 साल की गौरवशाली लोकतांत्रिक परंपरा पर 6 जनवरी 2021 को जो कुठाराघात हुआ है, उसकी तुलना ज्ञात इतिहास की किसी भी घटना से नहीं की जा सकती है। सभ्य, शिष्ट व अनुशासित अमेरिकी समाज कैपिटल हिल (अमेरिकी संसद भवन) में सुचारू सत्ता हस्तांतरण बाधित करने के लिए अपने ही अमेरिकी भाइयों की अराजकता को देखकर हतप्रभ है। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में हारा हुआ राष्ट्रपति यदि सत्ता हस्तांतरण में बाधा पहुंचाए तो इसे उसका मानसिक दिवालियापन ही माना जाना चाहिए। इस घटना ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का वो क्रूर, कुटिल व सनकी चेहरा भी उजागर कर दिया है जो वह पिछले कई वर्षों से लोकतंत्र के मुखौटे के पीछे छिपाए रखे थे। ट्रंप ने जाते-जाते अपने अक्खड़पन से जिस तरह से अपनी दुर्गति कराई है वह हम सबको यह सोचने पर मजबूर करती है। जीवन भर समझदारी से बिज़नेस में ऊंचा मुकाम हासिल करने वाले भी इतने सनकी, मूर्ख व अदूरदर्शी हो सकते हैं।
पिछले साल नवंबर में हुए 46 वें राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन की जीत के बाद तो ट्रंप जैसे पागलों की तरह बौराए हुए घूम रहे थे। अपनी हार को पचा ही नहीं पाए और इसके लिए हर तरह के हथकंडे भी अपनाए। मनगढ़न्त, उकसाने वाले व झूठे आरोप लगाकर अपने मानसिक दिवालिएपन का भरपूर सबूत दे दिया है। ट्रंप ने 6 जनवरी को जिस तरीके से अपने समर्थकों को संसद भवन यानी कैपिटल हिल पर धावा बोलने व दंगा करने के लिए उकसाया और उसके बाद उनके समर्थकों ने जिस तरीके से अराजकता की वह कम से कम अमेरिका में तो अकल्पनीय था। पहली बार फ़ेसबुक, ट्विटर व इंस्टाग्राम ने इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद डोनाल्ड ट्रंप के सोशल मीडिया अकाउंट निलंबित कर दिए। साथ ही चेताया कि अगर उन्होंने विवादास्पद व भड़काऊ सामग्री नहीं हटाई तो उनके ख़िलाफ़ और भी कड़ी कार्रवाई की जा सकती है यानी उनका अकाउंट पूरी तरह ब्लॉक किया जा सकता है।
ट्रंप की इस हरकत के बाद अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में उनकी आलोचना हुई। चुनाव हारने के बाद सत्ता हस्तांतरण में बाधा उत्पन्न करना किसी भी सभ्य समाज में अस्वीकार्य ही होता है। उनकी इस हरकत को अमेरिकी मीडिया ने एक स्वार्थी व्यक्ति अहंकारी मानसिकता करार दिया।
वैसे देखा जाए तो ट्रंप ने अब तक जो भी काम किए हैं या नीतियां बनाईं हैं उनमें उसने अमेरिका को हमेशा आगे रखा। लोग उसके काम से तो खुश थे पर काम करने के तरीके से बेहद नाखुश हैं। ट्रंप के उकसावे पर जिस तरीके से उसके समर्थकों ने संसद भवन पर हमला किया, तोड़फोड़ की उसका विरोध उसकी अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी में भी हो रहा है। चुनाव हारने के बाद ट्रंप तो यह भी कह चुका है कि 20 जनवरी को वह राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस खाली नहीं करेगा। तब लोग उसकी बातों को हलके में ले रहे थे पर अब उसने अमेरिका को ऐसी अराजक स्थिति में डाल कर के साबित कर दिया है कि वह अपनी हार से कितना ज़्यादा बौखलाया हुआ है। इस पूरे घटनाक्रम में उपराष्ट्रपति माइक पेंस की भूमिका पूरी तरह सभ्य, संतुलित व विधि सम्मत रही वरना अमेरिका में बड़ा संवैधानिक संकट उत्पन्न हो सकता था। इस ओछी सोच व हरकत के बाद ट्रंप का 2024 में एक बार फिर राष्ट्रपति बनने का सपना भी धूल धूसरित हो गया पर पेंस के नंबर जरूर बढ़ गए और डेमोक्रेटिक पार्टी अब 2024 के लिए ट्रंप की जगह पेंस को आगे करने का मन बनाए तो किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में ट्रंप ने अब तक गौरवशाली रहे राष्ट्रपति पद पर जो कालिख पोती है, उसे साफ करने में अमेरिका को बहुत लंबा समय लगेगा।
न्यूयार्क से सुदेश गौड़