पश्चिमी यूपी के चुनाव में खाप पंचायतों के मूड पर बदलता रहता है चुनावी समीकरण

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अनामी शरण बबल

मिशन 2019: ऐन वक्त पर चुनाव का रुख पलट देता है खाप पंचायतों का इशारा, ये रहा इतिहास*
दिल्ली / मुज्जफरनगर ।   सियासत दांव-पेंच से दूर रहने का दावा करने वाली पश्चिमी यूपी के खाप पंचायतों की ताकत धमक और पलभर में समीकरणों को बदलने के खेल को लखनऊ और दिल्ली तक देखी सुनी और महसूस की जाती रही है। 
हालांकि सीधे तौर पर भले ही खाप पंचायतें चुप हों। मगर इनकी खामोशी में अंदरुनी बौखलाहट और खीझ की मुखरता को आसानी से समझा जा सकता है। सीधे तौर खाप मुखिया भी किसी का समर्थन नहीं करने की बात करते रहे हैं, लेकिन ऐन वक्त पर इनका एक इशारा ही काफी है। किसी भी पक्ष के प्रति अपने लगाव की घोषणा सरल नहीं है। बाकायदा अपने समाज खाप इलाके के विकास में योगदान को लेकर पंचायतों में  समीक्षा की जाती है तब देखा जाता है कि कौन कितना उपयोगी हो सकता है।  खापों की अंदरुनी राजनीति और बहुमत को देखते हुए ही अंतिम समय में चुनाव का रुख पलट जाता है। ऐसा कई बार पहले हो चुका है। यही कारण है कि हर प्रत्याशी खाप चौधरियों की चौखट दस्तक देता रहा है, और पर्याप्त भरोसा के बाद ही वह संतुष्ट होता है।  कैराना, मुजफ्फरनगर और बागपत में इन खापों का रुख काफी महत्वपूर्ण होता है।
उल्लेखनीय है कि सामाजिक सुधार और न्याय व्यवस्था के संचालन के लिए खाप पंचायतों का निर्माण किया गया था। खाप पंचायतों से मदद के लिए 1857 के गदर में मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने भी पत्र लिखकर सहायता मांगी थी। मुजफ्फरनगर के गांव सौरम की चौपाल से 1857 की लोक क्रांति का बिगुल बजा। 
आजादी के बाद  समाज की हवा और मिजाज बदलता गया। खाप पंचायतों के फैसले भी सुर्खियों में आते रहे हैं। कई बार इनपर सवाल भी खड़े हुए। इन पंचायतों को लेकर कई फिल्में भी बनीं, जिसमे इन खापों की छवि बर्बर और निर्मम तरीके से संगठित होकर समाज-विरोधी बालिका विरोधी छवि बनती गयी। जिसमे आंशिक सच्चाई और प्रचार ज्यादा है।  चुनावी मौसम में बालियान खाप के गांव भौरा खुर्द के पंकज सिंह ने कहा कि  खाप चौधरी से बात करने के बाद ही मतदान किया जाएगा। जैसा वह कहेंगे, पूरा क्षेत्र तो उनके पीछे खड़ा है। मुजफ्फरनगर ही नहीं, बल्कि पूरी किसान बिरादरी भी उनका सम्मान करती है। बड़ौत के डॉ सुधीर तोमर का कहना है कि चौधरी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से  निभा रहे हैं, और समुदाय का उनपर पूरा भरोसा है। खाप के जिम्मेदार लोग अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाते रहे हैं । मतदान से पहले उनके रूख को भी जानने की कोशिश पूरा समुदाय करताहै। बालियान खाप में भी परिवारवाद की प्रथा चला, जब किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश टिकैत ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में शिरकत की थी। नरेश टिकैत के चाचा भोपाल टिकैत का भी  चुनावी परिणाम विफलता के रहे तो पंचायती स्तर पर परिवारवाद परवान नहीं चढ़ सका। दिवंगत प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह और इनके बेटे जयंत चौधरी भी इस बार मैदान में हैं। अपने बाप और दादा का वास्ता देकर उनके नाम पर वोट मांग रहे हैं। खाप पंचायतों की अहमियत को जानकर इस बार अजीत सिंह एंड संस बागपत बड़ौत शामली के बतीसा खाप गठवालाखाप कैराना के कलस्यान खाप  समेत मुज्जफर नगर सहारनपुर मेरठ शामली आदि के गांव पंचायतों खापों का महत्त्व काफी परवान पर है। अब देखना है कि चोर और चौकीदार को लेकर जारी जंग में किसानी बदहाली बेकारी पर क्या का राष्ट्रवाद हावी रहेगा?

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