भगवान भरोसे चल रहे है देशभर के सैकड़ों पुलिस थाने, लाखों पुलिसकर्मियों की किल्लत

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अनामी शरण बबल

नयी दिल्ली। जमाना डिजिटलीकरण का है। स्किल इंडिया डिजिटल इंडिया के नारों की हकीकत का चेहरा ज्यादातर काला है।  संसाधनों के लिए जुझते भारत को देखना कभी अजीब सा लगता है। खासकर पुलिस के पास यदि बुनियादी संसाधनों की भी व्यवस्था नहीं है तो इसे किसका दोष माना जाएगा। पर्याप्त संसाधनों और आधुनिक हथियारों की कमी से जूझती पुलिस ढेरों मामले में अपराधियों से टक्कर नहीं ले पाती। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि एक साल बीत जाने पर भी सरकारी आंकड़ों में पुलिस की मजबूरी और संसाधनों की कमी में कोई सुधार नहीं हो पाया।राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर राज्यसभा को भारतीय पुलिस के साजे सामान और तैयारियों का खाका पेश कर रहे थे। श्री अहीर ने बताया कि देशभर में 863 थाने किराये के मकानों में संचालित हो रहे हैं।  देश के 267 थानों में टेलीफोन जैसी सूचना पाने और देने का सबसे सरल साधन टेलीफोन कर की सुविधा नहीं है। और तो और 129 थानों में वायरलेस का प्रबंधन नही है। वायरलेस सेट के अभाव में उन थानो के पुलिसकर्मियों के आपसी तालमेल और संवादहीनता की कठिनाईयों को आसानी से समझा जा सकता है।  संसाधनों की कमी की कड़ी में 273 थाने ऐसे भी हैं, जिनके पास अपना वाहन के नाम पर जिप्सी जीप या वैन तक नही है। इन थानों में तैनात पुलिसकर्मियों की सक्रियता दौरों पेट्रोलिंग इलाके का चक्कर लगाने या सूचना मिलने पर कहीं आने जाने में होने वाली दिक्कतों को समझा जा सकता है।  इन असुविधाओं की जानकारी देते हुए श्री अहीर ने बताया कि देशभर में कुल  थानों के अनुसार 19 लाख 89 हजार 275 पद स्वीकृत हैं,मगर इस समय करीब साढे चार लाख से अधिक पदों को भरा नहीं जा सका है और ये पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। राज्यसभा में दी गयी जानकारी से भारतीय पुलिस का केवल इतना ही चेहरा प्रकट होता है। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर बता रहे थे।: इसके विपरीत इन्हीं आंकड़ों का विस्तार करते हुए विश्लेषण करें तो संसाधनों की तस्वीर काफी हैरान करती है। मोटे तौर पर एक थाने के अंतर्गत क्षेत्रफल के अनुपात में पांच से लेकर आठ- दस तक पुलिस चौकियां होती हैं। इन चौकियों को एक निश्चित इलाका होता है। हालांकि इसका कोई आंकड़ा नहीं दिया गया है मगर मोटे तौर पर 80% चौकियां किराये के मकानों में मंदिरों में किसी स्कूल के दो एक कमरे में टूटे मकान या किसी किले या टेंट में संचालित हो रहे हैं। देशभर में हजारों चौकियां ऐसी होंगी जिनके पास टेलीफोन वायरलेस वाहनों की कमी कोई ख़बर ही नहीं है। ढेरों चौकी ऐसे भी हो सकते हैं जहां पर बिजली की भी व्यवस्था नहीं हो तो हैरानी की बात नहीं है।  पेश आंकड़ों में मोटे तौर पर साढ़े चार लाख पुलिसकर्मियों की कमी का तो उल्लेख किया गया। मगर यह आंकड़ा ताजा ना होकर एक साल पहले प्रस्तुत आंकड़ों का दोहराव भर है। इसमें मंत्री अहीर ने यह नहीं बताया कि हर माह कितने पुलिसकर्मियों की सेवाएं समाप्त हो जाती है। रिटायरमेंट संख्या और प्रति माह  नियुक्ति के आंकड़ों को भी बताया नहीं गया है, जिससे पुलिसकर्मियों की खाली संख्या का भी कोई सही जानकारी नहीं मिल पाता है।  किन किन राज्यों में पुलिसकर्मियों की किल्लत और थानों की हालात का उल्लेख नहीं है। पुलिस बल के पास किराये के कितने वाहनों का परिचालन हो रहा है और इसके लिए सरकार को हर महीने कितने खर्च करने पड़ते हैं, इसका भी कोई जिक्र नहीं है। मंत्री ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की वित्तीय सहायता से मकान उपकरणों हथियारों की जांच-पड़ताल और खरीद बिक्री रखरखाव की जाती है। प्रशिक्षण का दायित्व भी मंत्रालय के दिशानिर्देश पर तय किया जाता है।: यानी आम नागरिकों द्वारा अपराध की बढ़ोतरी के मामले में पुलिस पर फौरन दोषारोपण कर दिया जाता है, नगर वे किस विषम और संसाधनों की कमी के बीच काम करते हैं, इसकी जानकारी आम नागरिकों को नही होता। कि इनके लिए ड्रेश जूते स्वेटर  बुलेटप्रुफ जैकेट कितनी दिक्कतों से सबों को सुलभ भी नही हो पाता। सचमुच स्किल इंडिया डिजिटल इंडिया स्मार्ट इंडिया को साकार करने के लिए इन सबसे जरुरी विभागों को मॉडर्न बनाने की जरूरत है। इनके उपकरणों और बंदूकों गोली बारुदों को आधुनिक करने की जरुरत है ताकि बेखौफ होकर पुलिसकर्मियों की जांबाजी से अपराधियों में खौफ पैदा हो सके। तभी समाज में अमन चैन कायम हो सकता है।।
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