छतीसगढ़ में दूसरे चरण का मतदान चालू
कांग्रेस और भाजपा के अलावा छतीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बसपा की मुखिया मायावती आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस को छोड़कर जनता कांग्रेस छतीसगढ़ (जे) के लिए भी यह राज्य भविष्य की परिभाषा लिखेगा। आप के अरविंद केजरीवाल ने सबसे ज्यादा 66 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। छतीसगढ़ के पहले और अब तक के इकलौते कांग्रेसी मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 46 उम्मीदवारों को मैदान में खड़े किए हैं। जबकि अजीत जोगी के साथ गठबंधन करके मायावती यहां पर अपने 25 प्रत्याशी को चुनावी समर में उतारा है। भाजपा और कांग्रेस यहां की सभी 90-90 सीटों पर से चुनावी समर में है। कांग्रेस के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी पार्टी से अलग होकर अपनी नयी पार्टी गठित की है। भाजपा खेमे में अच्छी पकड़ होने के कारण अजीत जोगी की पार्टी को भाजपा की बी टीम भी कहा जाता है। ===== छतीसगढ़ में बसपा और आप की इंट्री के बाद सूबे के चुनावी परिणाम को लेकर अब रोमांच आ गया है। यहां पर अभी तक दो-एक प्रतिशत मतदान के अंतर से ही परिणाम सामने आते रहते हैं। चूंकि भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे सीधे टक्कर होती रही थी। इस कारण दो एक प्रतिशत मतों के अंत के बावजूद डॉक्टर रमण सिंह पिछले 15 साल से मुख्यमंत्री बने हुए हैं मगर इसबार बहुकोणीय संघर्ष के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अंधाधुंध रैलियों के बाद भी कमल छाप संकट में है। आदिवासी समाज पर अजीत जोगी की पकड़ है। दलित वोटरों पर बसपा की सेंध लगनी भी तय है। तो नौजवानों और सभी दलों के नाराज नेताओं के लिए आप हाजिर है आप के पंजाब गोवा हरियाणा और दिल्ली के प्रदर्शन से पूरे देश में एक खास पहचान और जनमानस में एक छाप और आकर्षण भी है। मोटे तौर पर इन तीनों दलों का यदि खाता भी खुल गया तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती है। पहले चरण में नक्सली प्रभावित इलाकों के 18 सीटों के लिए मतदान हुआ था। पर आज 72 विधानसभा सीटों के लिए मतदान जारी है। मैदान में कुल 1079 प्रत्याशियों के बीच चुनावी महाभारत है। सता विरोधी लहर के साथ जनता को नोटबंदी और जीएसटी के अलावा स्थानीय मुद्दों पर भी अपना जनमत देना है। विकास डीजिटल युग स्किल मैनेजमेंट और तमाम आसमानी दावेदारी के बीच किसी पार्टी ने लोकल समस्याओं बेकारी बेरोजगारी किसान की समसामयिक समस्याओं कुछ भी नहीं भरोसा दिया। कृषि मुद्दा भी इस तरह लोप रहा कि धान का कटोरा के रूप में विख्यात छतीसगढ़ की हालत पर किसी ने भी हाथ नहीं रखा। चोर चौकीदार और पप्पू के आपसी आरोपों के भीतर ही पूरा जनप्रचार समाप्त हो गया। आज मतदाताओं को यह फैसला करने की बेला है कि उनके लिए उनकी समस्याओं के लिए कौन बेहतर हो सकता है? संकट में कमल भी है तो पंजे की ताकत पर भी सबको यकीन नहीं हो पाया है। आप के झाडू और बसपा के हाथी के दम को देखना दिलचस्प होगा कि कि आज शाम शाम तक किसके किस्मत की जनता क्या परिभाषा लिखना मंजूर करती है। इसी जनादेश से केंद्र के जननायक का भी भविष्य निर्भर है। मगर जो हो सता विरोधी लहर के बीच कमल का निष्कंटक पार हो जाना कठिन है क्योंकि अपने दो दशकीय जीवनकाल में 36गढ़ चुनाव के सबसे कठिन दौर के बीच अधर में है।
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