बिहार में नई आफ़त: मां के दूध में मिला कैंसर वाला ज़हर
नेचर जर्नल में छपी स्टडी में पता चला—भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा की हर स्तनपान कराने वाली महिला के दूध में यूरेनियम मिला
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बिहार के छह जिलों की सभी 40 महिलाओं के दूध के नमूनों में यूरेनियम पाया गया
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खगड़िया में सबसे अधिक औसत स्तर, नालंदा में सबसे कम
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लगभग 70% नवजात ऐसे स्तर के संपर्क में आए जो गंभीर गैर-कैंसरजन्य जोखिम पैदा कर सकते हैं
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वैज्ञानिकों ने कहा—खतरे के बावजूद स्तनपान न रोकें, मां का दूध अभी भी आवश्यक
समग्र समाचार सेवा
पटना, 23 नवंबर: बिहार में एक भयावह सच्चाई सामने आई है। प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल “नेचर” में छपी एक स्टडी ने खुलासा किया है कि राज्य के छह जिलों—भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा—में हर स्तनपान कराने वाली महिला के दूध में यूरेनियम पाया गया है। यह वही दूध है जिसे नवजात शिशुओं के जीवन की सबसे पहली और सबसे सुरक्षित पोषण की बूंद माना जाता है, लेकिन अब उसमें कैंसरकारी ज़हर घुला हुआ मिल रहा है।
यह अध्ययन पटना के महावीर कैंसर संस्थान के डॉक्टर अरुण कुमार, प्रोफेसर अशोक घोष और नई दिल्ली एम्स के डॉक्टर अशोक शर्मा की टीम ने अक्टूबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच किया। इसके तहत 17 से 35 वर्ष आयु वर्ग की 40 महिलाओं के दूध के नमूने जाँचे गए। चौंकाने वाली बात यह रही कि सभी नमूनों में यूरेनियम (U238) मौजूद था।
रिपोर्ट बताती है कि खगड़िया जिले में सबसे अधिक औसत प्रदूषण दर्ज किया गया, जबकि नालंदा में सबसे कम। कटिहार के एक नमूने में सबसे अधिक स्तर पाया गया। अध्ययन के अनुसार लगभग 70% नवजात ऐसे स्तर के संपर्क में आए जो गंभीर गैर-कैंसरजन्य स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नवजात बच्चों के अंग अभी विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए उनका शरीर भारी धातुओं को ज़्यादा अवशोषित करता है। कम वजन वाले बच्चों के लिए यह खतरा और गहरा हो जाता है।
स्टडी के सह-लेखक एम्स दिल्ली के डॉक्टर अशोक शर्मा ने कहा कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यूरेनियम भूजल में पहुंचा कहां से। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इस स्रोत की जाँच कर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यूरेनियम का भोजन शृंखला में प्रवेश करना, बच्चों की वृद्धि, तंत्रिका तंत्र और कैंसर जैसे खतरों से सीधा जुड़ा मामला है, जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है।
हालांकि, विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया कि इन खतरों के बावजूद माताओं को बच्चे को दूध पिलाना बंद नहीं करना चाहिए। मां का दूध बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता और विकास के लिए अब भी अपरिहार्य है। इसे केवल डॉक्टर की सलाह पर ही रोका जाना चाहिए।