पूनम शर्मा
भारत के इतिहास में जब भी विज्ञान, गणित या दर्शन की बात आती है, तब आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त और वराहमिहिर जैसे नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं, परंतु इन्हीं के बीच एक ऐसा नाम भी है जो समय की धूल में कहीं दब गया— ‘लीलावती’। आश्चर्य की बात यह है कि गणितज्ञ लीलावती का नाम हम में से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है, जबकि वे भारतीय गणित के स्वर्णयुग की एक अद्भुत प्रतिभा थीं।
कहा जाता है कि लीलावती इतनी विलक्षण बुद्धि की थीं कि वे पेड़ के पत्तों तक की गणना कर सकती थीं। उनकी गिनती और तर्क क्षमता इतनी तीव्र थी कि उनके पिता भास्कराचार्य—जो भारत के महानतम गणितज्ञों में से एक माने जाते हैं—भी उनकी प्रतिभा से प्रभावित रहते थे। यही कारण था कि उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ “लीलावती” का नाम अपनी पुत्री के नाम पर रखा।
लीलावती का गणितीय योगदान
भास्कराचार्य का ग्रंथ “लीलावती” गणित का ऐसा अद्वितीय ग्रंथ है, जिसमें अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति और मापन विज्ञान के जटिल सूत्रों को अत्यंत सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। किंवदंती है कि यह पुस्तक लीलावती की जिज्ञासाओं और प्रश्नों से प्रेरित होकर लिखी गई थी।
यह कहा जाता है कि बाल्यावस्था में लीलावती को गणना का अत्यधिक शौक था। वह हर वस्तु की गिनती करती थीं—चाहे वह फूल हों, मोती हों या तारों की संख्या। उनके प्रश्न इतने सूक्ष्म और तार्किक होते थे कि भास्कराचार्य को स्वयं उनके उत्तरों को सूत्रबद्ध करना पड़ता था। यही सूत्र बाद में “लीलावती” नामक ग्रंथ का आधार बने।
लीलावती और उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण
लीलावती केवल गणना की कला तक सीमित नहीं थीं। वे प्रकृति के हर रूप में गणित को खोजने का प्रयास करती थीं। उनके विचार में, “संख्या संसार की आत्मा है”—अर्थात हर वस्तु का एक गणितीय स्वरूप होता है। उनका दृष्टिकोण आज के आधुनिक गणितीय दर्शन से मेल खाता है।
कहा जाता है कि वे जल में उठते बुलबुलों की गति, पक्षियों के झुंड की रचना या चंद्रमा की कलाओं में भी गणितीय अनुपात खोज लिया करती थीं। यह उनकी गहरी निरीक्षण शक्ति और तर्क क्षमता का प्रमाण था।
लीलावती की कहानी: किंवदंती या सत्य?
भास्कराचार्य और लीलावती की कथा एक भावनात्मक रूप में भारतीय लोककथाओं में मिलती है. बताया जाता है कि लीलावती के विवाह के मुहूर्त को नापने के लिए भास्कराचार्य जी ने एक खास यंत्र बनाया था. अब दुर्भाग्यवश, विवाह के क्षण में वह यंत्र गड़बड़ा गया और समय निकल गया विवाह टल गया, और लीलावती ने आजीवन अविवाहित रहकर अपना जीवन गणित को समर्पित कर दिया.
लीलावती: भारतीय नारी का ज्ञान प्रतीक
लीलावती जैसी स्त्री का गणितज्ञ के रूप में उभरना मध्यकालीन भारत में किसी क्रांति से कम नहीं था, जब महिलाओं के लिए शिक्षा और विशेषकर गणित जैसे विषयों का अध्ययन असामान्य माना जाता था।
लीलावती की प्रासंगिकता, आधुनिक भारत में
आज जब हम “STEM education” में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात करते हैं, तब लीलावती की स्मृति और अधिक प्रेरणादायक लगती है। उनकी प्रतिभा यह संदेश देती है कि गणित सिर्फ सूत्रों का खेल नहीं है, बल्कि वह एक कला है-एक दृष्टिकोण है जिससे हम दुनिया को समझ सकते हैं। भारत सरकार ने भी, अभी हाल के दिनों में ‘लीलावती पुरस्कार’ की शुरुआत की है, जो विज्ञान और गणित के प्रसार में महिलाओं की भूमिका को सम्मानित करता है। यह पुरस्कार लीलावती के नाम को फिर से जीवित कर रहा है, ताकि नई पीढ़ी यह समझ सके कि भारतीय सभ्यता में महिला वैज्ञानिकता की जड़ें कितनी गहरी हैं। निष्कर्ष गणितज्ञ लीलावती का नाम शायद इतिहास की मोटी किताबों में ज्यादा न मिले, परंतु उनकी छवि भारतीय बौद्धिक परंपरा में एक अमिट प्रेरणा के रूप में बनी हुई है। उन्होंने न केवल गणित को सरल भाषा में समझने की दृष्टि दी, बल्कि यह भी दिखाया कि ज्ञान किसी जाति, वर्ग या लिंग की सीमाओं में बंधा नहीं होता। उनकी कहानी हमें यह याद दिलाती है कि हमारे अतीत में ऐसी अनेक विभूतियाँ थीं, जिनके बिना आज का वैज्ञानिक भारत अधूरा होता। लीलावती, जिस नाम को हम में से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना, वह वास्तव में भारतीय नारी-बुद्धि की वह अमर प्रतीक हैं जिन्होंने गणित को जीवन का उत्सव बना दिया।