सम्पूर्ण हिन्दू समाज की संगठित शक्ति ही भारत की गारंटी: डॉ. मोहन भागवत

RSS के शताब्दी वर्ष पर नागपुर में विजयादशमी उत्सव; पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि

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  • गठन का मूल मंत्र: सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठित स्वरूप ही भारत की एकता, विकास और सुरक्षा की एकमात्र गारंटी है।
  • कोविंद की श्रद्धांजलि: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने डॉ. हेडगेवार और डॉ. आम्बेडकर को अपने जीवन निर्माण का प्रेरणास्रोत बताया, और संघ के शतकपूर्ति दिवस को ऐतिहासिक बताया।
  • वैश्विक चुनौतियाँ और समाधान: भागवत जी ने स्वदेशी, पर्यावरणीय असंतुलन, पड़ोसी देशों की अराजकता और नक्सली समस्याओं पर चिंता व्यक्त करते हुए भारत की सांस्कृतिक दृष्टि से समाधान की अपेक्षा पर बल दिया।

समग्र समाचार सेवा
नागपुर, 7 अक्टूबर 2025: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में, नागपुर के ऐतिहासिक रेशिमबाग मैदान में आयोजित विजयादशमी उत्सव में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का उद्बोधन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ‘सम्पूर्ण हिन्दू समाज का बल सम्पन्न, शील सम्पन्न संगठित स्वरूप ही इस देश के एकता, एकात्मता, विकास व सुरक्षा की गारंटी है।’

सरसंघचालक ने जोर देकर कहा कि हिंदू समाज स्वभाव से ही अलगाव की मानसिकता से मुक्त है और सर्वसमावेशक है। यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की उदार विचारधारा का न केवल पुरस्कर्ता है, बल्कि संरक्षक भी है। इसी मूल विचार के कारण संघ सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठन का कार्य कर रहा है, क्योंकि ‘संगठित समाज अपने सब कर्तव्य स्वयं के बलबूते पूरे कर लेता है।’

डॉ. भागवत ने इस अवसर पर भारतवर्ष को वैभवशाली और सम्पूर्ण विश्व के लिए अपेक्षित योगदान देने वाला देश बनाने के कर्तव्य पर बल दिया, जिसे उन्होंने हिन्दू समाज का प्रमुख दायित्व बताया।

वैश्विक परिदृश्य और आत्मनिर्भरता का मंत्र

अपने विस्तृत उद्बोधन में, डॉ. भागवत ने वर्तमान वैश्विक और राष्ट्रीय चुनौतियों पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया। उन्होंने अमेरिका की आयात शुल्क नीति का हवाला देते हुए कहा कि अपने देश के हित को आधार बनाकर चलाई गई ऐसी नीतियों के कारण भारत को भी अपनी आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ेगा। उन्होंने वैश्विक परस्पर निर्भरता को स्वीकार किया, लेकिन साथ ही आगाह भी किया कि यह निर्भरता हमारी मजबूरी नहीं बननी चाहिए। इस अनिवार्यता से बचने के लिए, स्वदेशी तथा स्वावलम्बन का कोई विकल्प या पर्याय नहीं है। यह एक ऐसा मंत्र है जो संकट के समय राष्ट्र की आत्मरक्षा और प्रगति के लिए अपरिहार्य है।

पर्यावरण संकट और जड़वादी जीवनशैली

सरसंघचालक ने विश्व के जड़वादी व उपभोगवादी नीति के परिणामस्वरूप हो रहे पर्यावरणीय असंतुलन पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत में भी इसी नीति के चलते गत तीन-चार वर्षों में वर्षा की अनियमितता, भूस्खलन, और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं तेजी से बढ़ी हैं। उन्होंने दक्षिण एशिया के जलस्रोत हिमालय में हो रही दुर्घटनाओं को भारत और पड़ोसी देशों के लिए खतरे की घंटी माना और इस ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता बताई। यह चिंतन भारतीय जीवन शैली की प्राचीन जड़ों की ओर लौटने का स्पष्ट संकेत था, जहाँ प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का भाव सर्वोपरि रहा है।

पड़ोसी देशों की उथल-पुथल और उपद्रवी शक्तियाँ

डॉ. भागवत ने भारत के पड़ोस में मची अराजक स्थिति का उल्लेख किया। उन्होंने श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हाल ही में हुए जन-आक्रोश और हिंसक सत्ता परिवर्तन को चिंता का विषय बताया। उन्होंने आगाह किया कि विश्व में और अपने देश के भीतर भी ऐसी उपद्रवी शक्तियां सक्रिय हैं, जो भारत में भी इसी प्रकार की उथल-पुथल पैदा करना चाहती हैं।

सरसंघचालक ने हिंसक उद्दाम और सामाजिक असंतोष के कारणों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि शासन-प्रशासन का समाज से टूटा हुआ सम्बन्ध, तथा चुस्त व लोकाभिमुख प्रशासनिक क्रियाकलापों का अभाव असंतोष के तात्कालिक कारण होते हैं। हालांकि, उन्होंने जोर दिया कि हिंसक उद्रेक में वांछित परिवर्तन लाने की शक्ति नहीं होती है; इसके लिए प्रजातांत्रिक मार्गों से ही आमूलाग्र परिवर्तन लाया जा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी हिंसक घटनाओं में विश्व की वर्चस्ववादी ताकतें अपना खेल खेलने के अवसर ढूंढ़ लेती हैं।

भागवत जी ने पड़ोसी देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक और नित्य सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए उन्हें ‘परिवार’ की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि इन देशों में शांति, स्थिरता, उन्नति, सुख और सुविधा हो, यह भारत के लिए भी आवश्यक है।

वर्तमान आशाएं, चुनौतियाँ और सुरक्षा नीति

डॉ. भागवत ने वर्तमान कालावधि को ‘विश्वास और आशा’ को बलवान बनाने वाला, लेकिन साथ ही पुरानी व नयी चुनौतियों को स्पष्ट करने वाला बताया। उन्होंने दो प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया:

प्रयागराज महाकुम्भ (2025): इसे उन्होंने श्रद्धालुओं की संख्या और उत्तम व्यवस्थापन के कीर्तिमान तोड़कर स्थापित एक जागतिक विक्रम बताया, जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण भारत में श्रद्धा व एकता की प्रचण्ड लहर महसूस की गई।

पहलगाम आतंकी हमला (22 अप्रैल, 2025): सीमापार से आए आतंकियों द्वारा हिन्दू धर्म पूछकर 26 भारतीय यात्रियों की हत्या किए जाने की इस नृशंस घटना पर उन्होंने दुःख और क्रोध की ज्वाला भड़कने की बात कही। उन्होंने भारत सरकार की योजनाबद्ध कार्रवाई (मई मास) और देश के नेतृत्व की दृढ़ता, सेना के पराक्रम, तथा समाज की दृढ़ता व एकता के सुखद दृश्य की सराहना की।

सरसंघचालक ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर बल देते हुए कहा कि अन्य देशों से मित्रता का भाव रखते हुए भी हमें अपने सुरक्षा के विषय में अधिकाधिक सजग रहने और सामर्थ्य बढ़ाते रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नीतिगत क्रियाकलापों से विश्व में हमारे मित्र कौन और कहाँ तक हैं, इसकी परीक्षा भी हो गई है।

नक्सलवाद और विकास का अभाव

देश के अंदर उग्रवादी नक्सली आन्दोलन पर शासन-प्रशासन की दृढ़ कार्रवाई से आए नियंत्रण को स्वीकार करते हुए, डॉ. भागवत ने इस समस्या के मूल कारणों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शोषण व अन्याय, विकास का अभाव, तथा शासन-प्रशासन में संवेदना का अभाव ही इन क्षेत्रों में नक्सलियों के पनपने का मूल कारण रहा है। उन्होंने जोर दिया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में न्याय, विकास, सद्भावना, संवेदना तथा सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक व्यापक योजना बनाने की आवश्यकता है।

विज्ञान की प्रगति और सामाजिक टूटन

डॉ. भागवत ने विज्ञान और तकनीकी की तेज प्रगति तथा मनुष्यों की उनसे तालमेल बनाने की धीमी गति के कारण उत्पन्न सामाजिक समस्याओं पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सर्वत्र चल रहे युद्ध, पर्यावरण का क्षरण, समाजों तथा परिवारों में आयी हुई टूटन, और नागरिक जीवन में बढ़ता अनाचार व अत्याचार जैसी समस्याएँ साथ-साथ चल रही हैं। उन्होंने कहा कि इन समस्याओं के समाधान के लिए अब सारा विश्व भारत की दृष्टि से निकले चिन्तन में से उपाय की अपेक्षा कर रहा है। यह एक ऐसा क्षण है जब भारत को विश्वगुरु की भूमिका निभानी है।

रामनाथ कोविंद का उद्बोधन: संविधान और संगठन का समागम

समारोह के अध्यक्ष और भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी का उद्बोधन भी संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर ऐतिहासिक रहा। उन्होंने इस दिन को ‘संघ का शतकपूर्ति दिवस’ बताते हुए इसे ‘विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति का संवाहक करनेवाली आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था का शताब्दी समारोह’ कहा।

कोविंद जी ने नागपुर की धरती को आधुनिक भारत के विलक्षण निर्माताओं की पावन स्मृति से जुड़ी हुई बताया। उन्होंने दो महान विभूतियों—डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर—को अपने जीवन निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला बताया।

पूर्व राष्ट्रपति ने भावुक होकर कहा कि बाबासाहब आम्बेडकर के संविधान में निहित सामाजिक न्याय की व्यवस्था के बल पर ही मेरी तरह का आर्थिक व सामाजिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति, देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुँच सका। उन्होंने स्वीकार किया कि डॉ. हेडगेवार के गहन विचारों से समाज और राष्ट्र को समझने का उनका दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ। उन्होंने इन दोनों विभूतियों द्वारा निरूपित राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता के आदर्शों से अपनी जनसेवा की भावना को अनुप्राणित बताया।

श्री कोविंद जी ने संघ की अविरत राष्ट्रसेवा, राष्ट्रभक्ति और समर्पण के उदात्त आदर्शों को अनुकरणीय बताया। उन्होंने बल दिया कि सच्चे अर्थों में मनुष्य कैसे बनें, जीवन कैसे जिएँ, इसका मार्गदर्शन हमें महापुरुषों से प्राप्त होता है। आज भारतीयों के लिए व्यक्तिगत व राष्ट्रीय चारित्र्य से समृद्ध जीवनमार्ग की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारा सनातन, आध्यात्मिक और समग्र दृष्टिकोण ही मानवता के मन, बुद्धि और अध्यात्म का विकास करता है।

कोविंद जी ने सामाजिक व्यवहार में बदलाव लाने के लिए व्यापक प्रबोधन की आवश्यकता बताई। उन्होंने भी इस बात पर जोर दिया कि विविधता होते हुए भी, हम सब एक बड़े समाज का अंग हैं और यह बड़ी पहचान हमारे लिए सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि विचार, शब्द और कृति से किसी भी समुदाय के श्रद्धा या आस्था का अनादर न हो। साथ ही, उन्होंने जो लोग विकास यात्रा में पीछे छूट गए, उनका हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ ले चलना को राष्ट्रीय कर्तव्य बताया।

संघ का संकल्प: पंच परिवर्तन और सामाजिक समरसता

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने अपने उद्बोधन के अंतिम चरण में सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि किसी भी देश के उत्थान में उस देश के समाज की एकता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। उन्होंने डॉ. आम्बेडकर साहब द्वारा प्रतिपादित ‘Inherent cultural unity’ (अन्तर्निहित सांस्कृतिक एकता) को हमारी एकता का आधार बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति प्राचीन समय से चलती आई हुई भारत की विशेषता है और यह सर्व समावेशक है।

डॉ. भागवत ने अराजकता का व्याकरण रोकने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि छोटी-बड़ी बातों पर कानून हाथ में लेकर रास्तों पर निकल आना, गुंडागर्दी, हिंसा करने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को योजनापूर्वक कराया जाता है और उनके चंगुल में फंसने का परिणाम तात्कालिक और दीर्घकालिक, दोनों दृष्टि से ठीक नहीं है। उन्होंने शासन-प्रशासन को बिना पक्षपात और दबाव के नियम के अनुसार काम करने की सलाह दी, साथ ही समाज की सज्जन शक्ति व तरुण पीढ़ी को भी सजग व संगठित होकर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता बताई।

शताब्दी वर्ष के संकल्प के रूप में, संघ ने ‘पंच परिवर्तन’ कार्यक्रम को समाजव्यापी बनाने का प्रयास शुरू किया है। ये पंच परिवर्तन हैं:

सामाजिक समरसता

कुटुम्ब प्रबोधन

पर्यावरण संरक्षण

स्व-बोध तथा स्वदेशी

नागरिक अनुशासन व संविधान का पालन

सरसंघचालक ने कहा कि ये कार्यक्रम स्वयंसेवकों के आचरण के उदाहरण से समाजव्यापी बनेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ के स्वयंसेवक समाज में अन्य संगठनों और व्यक्तियों द्वारा चलाए जा रहे इसी तरह के कार्यक्रमों के साथ सहयोग व समन्वय साध रहे हैं।

दलाई लामा का संदेश और अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति

इस अवसर पर, पूजनीय बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का संदेश भी पढ़ा गया, जिसने कार्यक्रम को एक अंतर्राष्ट्रीय आयाम दिया। दलाई लामा ने कहा कि पुनर्जागरण की इस व्यापक धारा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया है। उन्होंने संगठन की स्थापना को निःस्वार्थ भाव पर आधारित बताते हुए कहा कि संघ से जुड़ने वाला प्रत्येक स्वयंसेवक मन की पवित्रता और साधनों की पावनता पर आधारित जीवन जीना सीखता है। उन्होंने संघ की सौ वर्षीय यात्रा को समर्पण और सेवा का दुर्लभ तथा अनुपम उदाहरण बताया, जिसने भारत को भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से सशक्त बनाया है।

कार्यक्रम में देश-विदेश के अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। इनमें मुख्य रूप से:

लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता (सेवानिवृत्त)

के. वी. कार्तिक (प्रबंध निदेशक, डेक्कन इंडस्ट्रीज)

संजीव बजाज (अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, बजाज फिनसर्व)

इसके अलावा, घाना, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, यूके और यूएसए से भी अतिथियों की उपस्थिति ने संघ के वैश्विक प्रभाव को दर्शाया।

कार्यक्रम का समापन ध्वजावतरण के साथ हुआ, जिसमें शस्त्रपूजन, ध्वजारोहण, नियुद्ध एवम् घोष का प्रात्यक्षिक, और सांघिक योगासन जैसे पारंपरिक कार्यक्रम शामिल थे।

 

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