यूपी में विवाह पंजीकरण का नया नियम: क्या प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों की मुश्किलें बढ़ेंगी?
परिवार की सहमति के बिना शादी करने पर अब धार्मिक अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य
समग्र समाचार सेवा
लखनऊ , 29 जून: उत्तर प्रदेश सरकार ने विवाह पंजीकरण नियमों में एक बड़ा बदलाव किया है, जिसका सीधा असर प्रेम विवाह और परिवार की मर्जी के बिना होने वाली शादियों पर पड़ सकता है। 2017 के ‘उत्तर प्रदेश अनिवार्य विवाह पंजीकरण नियम’ में किए गए इस संशोधन के बाद, अब उन जोड़ों को शादी का पंजीकरण कराना और भी मुश्किल हो सकता है, जिन्हें अपने परिवार से विरोध का सामना करना पड़ता है।
क्या है नया नियम?
संशोधित नियमों के अनुसार, अगर कोई विवाह परिवार की सहमति के बिना हुआ है, तो पंजीकरण के समय उस धार्मिक अधिकारी (जैसे पंडित, काज़ी या पादरी) की भौतिक उपस्थिति अनिवार्य होगी, जिसने विवाह संपन्न कराया है। पहले, सिर्फ दस्तावेज़ और दो गवाहों की मौजूदगी से भी पंजीकरण हो जाता था, लेकिन अब विरोध की स्थिति में यह तरीका काम नहीं करेगा। अब अधिकारियों को यह सत्यापित करना होगा कि विवाह धार्मिक या परंपरागत तरीके से संपन्न हुआ था या नहीं।
युवाओं के लिए बढ़ी चुनौती
यह नियम उन जोड़ों के लिए एक बड़ी बाधा बन सकता है जो अंतरधार्मिक या अंतरजातीय विवाह करते हैं और जिन्हें अक्सर अपने परिवार से विरोध का सामना करना पड़ता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने इस बदलाव पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह युवाओं की वैयक्तिक स्वतंत्रता और संविधान में दिए गए अधिकारों का हनन है।
सरकार का पक्ष
सरकार का कहना है कि इस नियम का मकसद किसी को शादी करने से रोकना नहीं है। बल्कि, इसका उद्देश्य उन मामलों में धोखाधड़ी या जबरदस्ती की संभावना को रोकना है, जहाँ विवाह के नाम पर धोखाधड़ी हो सकती है। सरकार इसे पारदर्शिता और सत्यापन की एक प्रक्रिया बता रही है ताकि विवाह की वैधता सुनिश्चित की जा सके।
आगे क्या होगा?
यह संशोधन प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों, खासकर युवतियों, के लिए मानसिक और सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नया नियम ज़मीन पर कैसे लागू होता है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है। क्या यह वास्तव में धोखाधड़ी को रोकेगा, या फिर यह उन युवाओं के लिए एक और बाधा बन जाएगा जो अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनना चाहते हैं?