समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 20 अक्टूबर। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिए हैं, जिसमें उन्होंने शीर्ष अदालत को ‘जनता की अदालत’ बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट लोगों का कोर्ट है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह संसद में विपक्ष की भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पिछले 75 सालों से न्याय तक पहुंचने की कोशिश में रही है और इसे बरकरार रखना चाहिए। हमारी अदालत जनता की अदालत है और इसे उसी रूप में देखा जाना चाहिए।”
दक्षिण गोवा में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी सम्मेलन में बोलते हुए, चीफ जस्टिस ने कहा कि जनता की अदालत होने का यह मतलब नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट संसद में विपक्ष के रूप में कार्य करता है। उन्होंने कहा, “लोगों की सोच में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को लेकर बड़ा फर्क है। जब अदालत किसी के पक्ष में फैसला सुनाती है, तो इसे सराहा जाता है, लेकिन जब फैसला उनके खिलाफ होता है तो लोग इसे बदनाम करने की कोशिश करते हैं। यह एक गलत प्रथा है, और ऐसा नहीं होना चाहिए।”
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के काम को नतीजों के आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “व्यक्तिगत मामलों के नतीजे किसी के पक्ष या खिलाफ हो सकते हैं, लेकिन जजों के पास स्वतंत्र अधिकार है कि वे मामलों के आधार पर निर्णय लें। इसलिए, नतीजों के आधार पर अदालत की आलोचना करना सही नहीं है। कानूनी सिद्धांत में किसी गलती के लिए अदालत की आलोचना हो सकती है और होनी भी चाहिए।”
इसके अलावा, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की लाइव-स्ट्रीमिंग को “गेम चेंजर” बताया। उनका मानना है कि इसने अदालत के कामकाज को लोगों के घरों और दिलों तक पहुंचाया है। उन्होंने कहा, “हमारी भाषा हमारे लोकाचार को प्रतिबिंबित करनी चाहिए और हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारी भाषा सटीक, सम्मानजनक और समावेशी हो।”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘न्याय की देवी’ की मूर्ति में हुए बदलाव का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कानून अंधा नहीं होता, बल्कि यह सभी को समान दृष्टि से देखता है। न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटाने का अर्थ निष्पक्षता से है।