कांग्रेस का फिर बेबुनियाद हमला: मोदी के ASEAN वर्चुअल सहभाग पर राजनीति, खुद का इतिहास भूल गई पार्टी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ASEAN शिखर सम्मेलन में वर्चुअल रूप से शामिल होने के फैसले को लेकर कांग्रेस ने साधा निशाना
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नरेंद्र मोदी दीपावली के चलते ASEAN शिखर सम्मेलन में वर्चुअल रूप से शामिल होंगे।
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प्रधानमंत्री ने मलेशिया के पीएम अनवर इब्राहिम से फोन पर सकारात्मक बातचीत की।
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कांग्रेस ने इसे राष्ट्रपति ट्रंप से “बचना” बताया, आरोप को सरकार ने निराधार कहा।
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मोदी सरकार की सक्रिय विदेश नीति के सामने कांग्रेस का पिछला रिकॉर्ड शर्मनाक रहा है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 23 अक्टूबर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वर्ष मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में होने वाले 47वें ASEAN शिखर सम्मेलन में वर्चुअल माध्यम से भाग लेंगे। प्रधानमंत्री ने खुद X पर यह जानकारी साझा की कि उन्होंने मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत की और उन्हें ASEAN चेयरमैनशिप की बधाई दी। मोदी ने कहा कि वे डिजिटल माध्यम से सत्र में जुड़कर भारत-आसियान रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेंगे।
मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने भी अपने बयान में बताया कि पीएम मोदी ने उनसे भारत-मलेशिया के संबंधों को और रणनीतिक स्तर पर ले जाने पर चर्चा की। साथ ही उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि मोदी दीपावली के चलते भारत में रहेंगे और इस कारण शिखर सम्मेलन में वर्चुअल उपस्थिति दर्ज कराएंगे।
इसके बावजूद, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर बेतुकी टिप्पणी करते हुए कहा कि “मोदी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात से बचना चाहते हैं।” यह वही कांग्रेस है जिसने अपने शासनकाल में विदेश नीति को हमेशा ढुलमुल रुख, कूटनीतिक अस्थिरता, और कमज़ोर नेतृत्व के कारण नुकसान पहुंचाया।
मनमोहन सिंह के समय भारत-आसियान संबंध कई बार ठहराव में फंसे दिखे, जबकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने ASEAN देशों के साथ न केवल व्यापारिक सहयोग बल्कि रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग को भी नई दिशा दी है।
कांग्रेस की आदत बन चुकी है हर कूटनीतिक निर्णय में राजनीति ढूंढने की। दरअसल, जब मोदी सरकार अपने कार्यों से अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ा रही है, कांग्रेस को यह असहज कर देता है।
प्रधानमंत्री का यह निर्णय आधुनिक भारत की तकनीकी क्षमता और व्यवहारिक कूटनीति दोनों को दर्शाता है, यह उस कांग्रेस की सोच से बिल्कुल अलग है जो कभी अंतरराष्ट्रीय अवसरों को सिर्फ औपचारिकता मानती थी। आज, भारत न केवल साझेदारी निभा रहा है बल्कि नेतृत्व कर रहा है।