पूनम शर्मा
उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र ने सीनियर भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई के लिए एक नई बेंच गठित की है। इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस सुभाष उपाध्याय शामिल होंगे और 30 अक्टूबर को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) व उसकी रजिस्ट्री के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुनवाई करेंगे।
यह मामला इसलिए भी खास है क्योंकि अब तक कुल 16 जज संजीव चतुर्वेदी से जुड़े मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर चुके हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड माना जा रहा है।
कौन हैं संजीव चतुर्वेदी?
संजीव चतुर्वेदी 2002 बैच के भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी हैं, जिन्होंने अपना करियर हरियाणा कैडर से शुरू किया था। वह पिछले दो दशकों से भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ लगातार लड़ते आ रहे हैं।
उन्होंने अपनी शुरुआती पोस्टिंग के दौरान अवैध पेड़ कटाई, शिकार और वृक्षारोपण योजनाओं में वित्तीय अनियमितताओं को उजागर कर सुर्खियां बटोरीं। राजनीतिक दबाव के बावजूद उन्हें राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी की छह विशेष हस्तक्षेपों के ज़रिए सेवा में सुरक्षा मिली।
AIIMS में भ्रष्टाचार का भंडाफोड़
संजीव चतुर्वेदी को असली राष्ट्रीय पहचान तब मिली जब उन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में मुख्य सतर्कता अधिकारी (CVO) के तौर पर बड़े घोटालों का पर्दाफाश किया।
उन्होंने कई वरिष्ठ अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की पहल की। इसके बाद उन्होंने कई सरकारी एजेंसियों के खिलाफ कानूनी लड़ाइयाँ भी लड़ीं — जिनमें से कई में उन्हें न्यायिक अस्वीकृति का सामना करना पड़ा।
उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण और पारदर्शिता की लड़ाई
AIIMS के बाद चतुर्वेदी को उत्तराखंड कैडर में भेजा गया, जहां उन्होंने हिमालयी जैव विविधता की रक्षा, पारदर्शिता और जलवायु परिवर्तन पर AI आधारित रिसर्च को बढ़ावा दिया। इसी दौरान उन्होंने मसूरी फॉरेस्ट डिवीजन में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण से जुड़े घोटाले को उजागर किया।
16 जजों की ‘रिक़्यूज़ल’ — एक अनोखा रिकॉर्ड
संजीव चतुर्वेदी के मामलों में अब तक 16 न्यायाधीश खुद को सुनवाई से अलग कर चुके हैं।
उत्तराखंड हाई कोर्ट के जजों में जस्टिस वर्मा, जस्टिस रविन्द्र मैठानी, जस्टिस राकेश थपलियाल और जस्टिस मनोज कुमार तिवारी ने केस से खुद को अलग किया।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यू.यू. ललित और जस्टिस रंजन गोगोई समेत 12 अन्य जजों ने भी सुनवाई से इंकार किया।
नैनीताल की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने भी आपराधिक मामले में खुद को अलग कर लिया।
CAT की डिवीजन बेंच — जस्टिस हरविंदर कौर ओबेरॉय और बी आनंद — ने भी सुनवाई से दूरी बना ली।
चतुर्वेदी के अनुसार, “यह देश में पहली बार हुआ है जब किसी एक व्यक्ति के मामले में 16 जजों ने खुद को सुनवाई से अलग किया हो।”
इससे पहले माफिया अतीक अहमद के केस में 10 जजों ने रिक़्यूज़ल किया था।
क्यों महत्वपूर्ण है यह मामला?
संजीव चतुर्वेदी का मामला केवल एक अफसर की व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है, बल्कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था, प्रशासनिक पारदर्शिता और व्हिसलब्लोअर सुरक्षा से जुड़े बड़े सवाल भी खड़े करता है।
उनकी लड़ाई ने कई बार यह दिखाया है कि भ्रष्टाचार और सत्ता के विरुद्ध लड़ने वालों के लिए रास्ता कितना कठिन होता है।