पूनम शर्मा
थाईलैंड की राजनीति में शुक्रवार को एक बड़ा घटनाक्रम हुआ जब संसद ने बुमजैथाई पार्टी (Bhumjaithai Party) के नेता अनुतिन चार्नवीराकुल को देश का नया प्रधानमंत्री चुन लिया। यह फैसला न केवल तत्कालीन सत्ता पर बैठी फ्यू थाई पार्टी (Pheu Thai) के लिए झटका है, बल्कि पिछले दो दशकों से थाई राजनीति पर छाए रहे शिनावात्रा परिवार के प्रभाव को भी गहरी चोट पहुँचाने वाला है।
संसद में निर्णायक जीत
संसद के निचले सदन में हुए मतदान में अनुतिन ने प्रचंड बहुमत हासिल किया। कुल 492 सक्रिय सदस्यों में से बहुमत के लिए 247 वोटों की आवश्यकता थी, जबकि अनुतिन को 311 मत मिले। उनके प्रतिद्वंद्वी फ्यू थाई पार्टी के उम्मीदवार चैकासेम नितिसिरी को मात्र 152 वोट मिले, जबकि 27 सांसदों ने मतदान से दूरी बनाई।
इस जीत में अहम भूमिका निभाई लिबरल पीपुल्स पार्टी ने, जिसने सबसे बड़े दल होने के बावजूद अनुतिन का समर्थन किया। इसके बदले अनुतिन ने वादा किया है कि वे अगले चार महीनों के भीतर आम चुनाव कराएंगे।
शिनावात्रा परिवार को करारा झटका
थाई राजनीति में शिनावात्रा परिवार पिछले 20 वर्षों से प्रमुख शक्ति रहा है। थाकसिन शिनावात्रा और उनकी बहन यिंगलक शिनावात्रा दोनों प्रधानमंत्री रह चुके हैं। हाल के वर्षों में उनकी राजनीति लगातार कानूनी विवादों, न्यायालयीन फैसलों और विरोधी गठबंधनों से कमजोर होती चली गई।
अनुतिन की यह जीत शिनावात्रा परिवार के लिए एक और झटका साबित हुई है। उनकी बेटी और हाल ही में बर्खास्त की गई प्रधानमंत्री पेतोंगटार्न शिनावात्रा को संवैधानिक न्यायालय ने मंत्री पद की आचार संहिता का उल्लंघन करने का दोषी ठहराते हुए पद से हटा दिया था। वे महज़ एक साल तक सत्ता में रह पाईं।
उधर, इस फैसले के कुछ घंटे पहले ही थाकसिन शिनावात्रा देश छोड़कर दुबई रवाना हो गए। थाई सुप्रीम कोर्ट अगले सप्ताह उनके अस्पताल प्रवास से जुड़े मामले की सुनवाई करने वाला है। यदि अदालत उनके विरुद्ध फैसला सुनाती है, तो उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है।
राजनीतिक समीकरणों में बड़ा उलटफेर
अनुतिन चार्नवीराकुल, उम्र 58 वर्ष, थाई राजनीति के अनुभवी चेहरा माने जाते हैं। कभी उन्होंने फ्यू थाई के साथ गठबंधन किया था, लेकिन हाल ही में पेतोंगटार्न शिनावात्रा द्वारा कंबोडिया सीमा विवाद में अपनाए गए रवैये से नाराज़ होकर उन्होंने दूरी बना ली। यही दूरी आगे चलकर सत्ता परिवर्तन का कारण बनी।
उनके पक्ष में सबसे चौंकाने वाला समर्थन फ्यू थाई पार्टी के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री चालर्म युबामरुंग ने दिया, जिन्होंने मतदान के दौरान पार्टी लाइन तोड़ते हुए अनुतिन का साथ दिया।
संवैधानिक और राजशाही की भूमिका
पेतोंगटार्न को हटाए जाने के बाद फ्यू थाई पार्टी ने आखिरी कोशिश करते हुए शाही महल से संसद भंग करने का अनुरोध किया था, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया। कार्यवाहक प्रधानमंत्री फुमथाम वेचायाचाई ने बताया कि महल ने “कानूनी विवादित मुद्दों” का हवाला देते हुए यह मांग ठुकरा दी।
अब अगले कुछ दिनों में अनुतिन और उनकी नई सरकार को औपचारिक रूप से राजा महा वजिरालोंगकोर्न से नियुक्ति प्राप्त होगी। उसके बाद ही वे प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर कामकाज संभालेंगे।
फ्यू थाई का संकल्प
हालाँकि सत्ता से बाहर हुई फ्यू थाई पार्टी ने हार मानने से इंकार किया है। पार्टी ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा, “हम थाई जनता के अधूरे एजेंडे को पूरा करने के लिए फिर लौटेंगे। विपक्ष की भूमिका में भी हम संसद में मजबूती से खड़े रहेंगे।”
आगे की चुनौतियाँ
अनुतिन की जीत भले ही ऐतिहासिक कही जा रही हो, लेकिन उनके सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। चार महीनों के भीतर आम चुनाव कराने का वादा उनकी सरकार पर दबाव बनाए रखेगा। साथ ही, शिनावात्रा परिवार की राजनीतिक जड़ें ग्रामीण इलाकों और गरीब वर्गों में गहरी हैं, इसलिए नए प्रधानमंत्री को इस विरोध का सामना करना ही होगा।
थाई राजनीति में सेना और राजशाही की भूमिका भी हमेशा निर्णायक रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुतिन किस हद तक स्वतंत्र नीतियां बना पाते हैं और किस तरह से वे जनता और संस्थानों के बीच संतुलन साधते हैं।
निष्कर्ष
शुक्रवार का फैसला थाईलैंड के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ गया है। अनुतिन चार्नवीराकुल की जीत केवल एक व्यक्ति या पार्टी की जीत नहीं, बल्कि सत्ता समीकरणों और दशकों से चल रहे वंशवादी प्रभुत्व के खिलाफ जनता और प्रतिनिधियों की सोच का भी संकेत है। आने वाले महीनों में यह तय होगा कि यह बदलाव स्थायी साबित होगा या फिर शिनावात्रा परिवार किसी नई रणनीति के साथ वापसी करेगा।