प्रधानमंत्री मोदी और टैक्स सुधार की “अंतरकथा”

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पूनम शर्मा
भारत की कर प्रणाली हमेशा से एक ऐसा जटिल जाल रही है जिसमें आम नागरिक अक्सर उलझ कर रह जाता था। टैक्स दरें इतनी असमान और उलझी हुई थीं कि साधारण इंसान को समझ ही नहीं आता था कि उसे कितना देना है और किस नियम के तहत देना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इस स्थिति को गहराई से समझा, तो उनके भीतर एक सवाल ने जन्म लिया—क्या टैक्स प्रणाली इतनी उलझी रहनी चाहिए कि आम आदमी को अपनी मेहनत की कमाई का हिसाब लगाने में भी तकलीफ़ उठानी पड़े?

मोदी का अनुभव और संवेदना

एक बार चर्चा के दौरान किसी ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि टैक्स नियम इतने कठिन हैं कि हर नागरिक के सामने आपत्ति और भ्रम खड़ा हो जाता है। साधारण करदाता अक्सर उलझन में पड़ जाता है कि सही कितना टैक्स देना है। इस पर मोदी जी ने हाथ जोड़कर गहरी गंभीरता से उत्तर दिया—

“  ऐसा होना चाहिए कि  लोग अपना कैलकुलेटर से कैलकुलेट कर लें, इतना हमारा टैक्स बनता है और वही टैक्स दें।”

इस कथन में केवल नीति की झलक नहीं थी, बल्कि उस आम भारतीय की पीड़ा का एहसास था जो हर साल अपने टैक्स का हिसाब लगाने में घंटों बिताता है, कभी अकाउंटेंट तो कभी वकील के दरवाजे खटखटाता है।

मोदी जी के लिए यह केवल आर्थिक सुधार नहीं था, बल्कि एक सामाजिक न्याय का प्रश्न था। उनके लिए यह ज़रूरी था कि करदाता को यह भरोसा दिलाया जाए कि उसकी मेहनत की कमाई का टैक्स न तो मनमानी से लिया जाएगा और न ही उसे उलझन में डालने वाला होगा।

अस्त्रों की तरह टैक्स सुधार

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में किए गए कर सुधार किसी साधारण कदम की तरह नहीं, बल्कि एक अस्त्र की तरह रहे हैं। जिस प्रकार महाभारत में अर्जुन का गांडीव निर्णायक क्षण में काम आता था, उसी तरह GST और नई इनकम टैक्स प्रणाली को भी मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नया रूप देने का निर्णायक अस्त्र बनाया।

GST (वस्तु एवं सेवा कर) एक ऐसा ब्रह्मास्त्र साबित हुआ जिसने दर्जनों टैक्सों को समाप्त कर “वन नेशन, वन टैक्स” का सपना साकार किया।

फेसलेस असेसमेंट और अपील प्रणाली उस अस्त्र की तरह है जिसने भ्रष्टाचार और मनमानी को समाप्त करने का काम किया।

नई कर व्यवस्था जिसमें सीधी और सरल दरें हैं, वह ढाल की तरह है जो आम आदमी को जटिलता और भ्रम से सुरक्षा देती है।

मोदी का भावनात्मक पक्ष

मोदी जी हमेशा कहते रहे हैं कि “सरकार का काम नागरिकों का जीवन आसान बनाना है, कठिन नहीं।” जब उन्होंने करदाताओं की समस्याएं सुनीं, तो उन्हें एहसास हुआ कि टैक्स केवल सरकार की आय का साधन नहीं है, बल्कि यह नागरिकों और राष्ट्र के बीच विश्वास का सेतु भी है।

अस्त्रशास्त्र की भाषा में कहें तो—

जटिल टैक्स व्यवस्था वह अंधकार था जिसमें जनता दिशाहीन थी।

मोदी का सरल टैक्स सुधार वह दीपक है जिसने राह को उज्ज्वल कर दिया।

अंतरकथा: प्रधानमंत्री का संकल्प

मोदी जी के शब्दों में छिपी यह भावना ही उनकी कर नीतियों का मूल आधार बनी। उनका संकल्प साफ था कि भारत का टैक्स ढांचा ऐसा बने कि कोई भी नागरिक केवल अपने कैलकुलेटर पर बटन दबाकर जान सके कि उसे कितना टैक्स देना है। न कोई विशेष प्रतिनिधि, न कोई मध्यस्थ—सिर्फ पारदर्शिता और सरलता।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर सुधार को केवल आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि एक आधुनिक यज्ञ के रूप में देखा—जहां हर करदाता अपनी आहुति (टैक्स) विश्वास और सरलता से देता है। उनकी दृष्टि में टैक्स संग्रह सरकार और जनता के बीच टकराव का कारण नहीं, बल्कि सहयोग का साधन होना चाहिए।

मोदी जी का यह कथन—

“लोग अपना कैलकुलेटर से कैलकुलेट कर लें, इतना हमारा टैक्स बनता है और वही टैक्स दें।”
आज भारतीय कर सुधार की आत्मा है।

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