झारखंड के ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का निधन, 81 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस

झारखंड के जनक और आदिवासियों के मसीहा कहे जाने वाले शिबू सोरेन का सोमवार को निधन, राजनीतिक जगत में शोक की लहर।

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  • झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और JMM के संस्थापक शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
  • लंबे समय से बीमार चल रहे शिबू सोरेन ने दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस ली।
  • उनके निधन पर बेटे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भावुक होकर कहा, “आज मैं शून्य हो गया हूँ।”

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4 अगस्त, 2025: झारखंड की राजनीति के दिग्गज नेता, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, जिन्हें प्यार से ‘गुरुजी’ और ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता था, का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उन्होंने सोमवार को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले काफी समय से किडनी संबंधी समस्याओं और अन्य बीमारियों से जूझ रहे थे। उनके निधन की खबर से पूरे झारखंड समेत देश के राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक भावुक पोस्ट में लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूँ।”

लंबी बीमारी के बाद अस्पताल में हुआ निधन

शिबू सोरेन को जून के अंतिम सप्ताह में सांस लेने में तकलीफ होने के बाद दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बीते कुछ दिनों से उनकी हालत बेहद नाजुक बनी हुई थी और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। अस्पताल ने एक मेडिकल बुलेटिन जारी कर बताया कि उनका निधन सुबह 8.56 बजे हुआ। शिबू सोरेन के निधन की खबर सुनते ही झारखंड की राजनीति के एक युग का अंत हो गया है। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी समेत कई नेताओं ने शोक व्यक्त करते हुए उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं व्यक्त की हैं।

आदिवासियों के हक की लड़ाई और राजनीतिक सफर

शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष और समर्पण की कहानी है। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ के नेमरा गांव में हुआ था। बचपन में ही उनके पिता की हत्या महाजनों ने कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने आदिवासियों के शोषण के खिलाफ लड़ाई छेड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने ‘धनकटनी आंदोलन’ जैसे कई अभियान चलाए और सूदखोरों के चंगुल से आदिवासियों को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया। 4 फरवरी 1973 को, उन्होंने बिनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। इस संगठन ने अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन को गति दी। उनके अथक प्रयासों के बाद ही साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड एक नया राज्य बना।

तीन बार बने मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री का भी संभाला पद

अपने लंबे राजनीतिक करियर में शिबू सोरेन ने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला, हालांकि उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो सका। उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से कई बार चुनाव जीता और केंद्रीय राजनीति में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिबू सोरेन को उनके समर्थक और आदिवासी समाज के लोग उनके संघर्ष और समर्पण के कारण ‘गुरुजी’ और ‘दिशोम गुरु’ (दिशा दिखाने वाला) कहकर संबोधित करते थे।

एक युग का अंत, विरासत जारी

शिबू सोरेन का निधन झारखंड की राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने न केवल झारखंड राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि आदिवासियों को एकजुट कर उन्हें राजनीतिक और सामाजिक पहचान भी दिलाई। उनका राजनीतिक सफर कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनकी विरासत को अब उनके बेटे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आगे बढ़ा रहे हैं। शिबू सोरेन हमेशा अपने सरल स्वभाव और जनता के प्रति समर्पण के लिए याद किए जाएंगे।

 

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