समग्र समाचार सेवा
दिल्ली 3 मई 2025: बिहार की सियासत एक बार फिर गर्माने लगी है, और इस बार मोर्चा संभाला है AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने। सीमांचल की धरती से उठती सियासी सरगर्मी अब सीधे महागठबंधन की नींद उड़ाने लगी है। सवाल बड़ा है – क्या ओवैसी बिहार में महागठबंधन को बड़ा झटका देने की तैयारी में हैं?
ओवैसी ने सीमांचल को लंबे समय से अपनी सियासत का गढ़ बनाया हुआ है। किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में उनकी पार्टी AIMIM ने पहले ही सियासी मौजूदगी दर्ज कराई थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतकर ओवैसी ने यह साफ कर दिया था कि अब वे सिर्फ हैदराबाद तक सीमित नहीं रहेंगे।
अब खबरें यह आ रही हैं कि ओवैसी की नजर सिर्फ सीमांचल तक सीमित नहीं, बल्कि मिथिलांचल तक फैल चुकी है। मधुबनी, दरभंगा और सहरसा जैसे इलाकों में पार्टी संगठन को तेजी से खड़ा किया जा रहा है। AIMIM की रणनीति साफ है – मुस्लिम बहुल इलाकों में पैठ बनाकर महागठबंधन के परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी।
राजद, जदयू और कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन को यह डर सता रहा है कि अगर ओवैसी मुस्लिम वोटों में सेंध लगा लेते हैं, तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। सीमांचल में ओवैसी की बढ़ती लोकप्रियता और उनके आक्रामक भाषण महागठबंधन के नेताओं की पेशानी पर बल डाल चुके हैं।
आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अगर ओवैसी सीमांचल के साथ-साथ मिथिलांचल में भी पैठ बना लेते हैं, तो हमारे लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। हमें मुस्लिम समुदाय के बीच एकजुटता बनाए रखने की जरूरत है।”
सूत्रों की मानें तो AIMIM बिहार में बूथ स्तर तक का संगठन तैयार कर रही है। ओवैसी ने हाल ही में बिहार के कई जिलों का दौरा किया, जहां उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर रणनीति तैयार की। मुस्लिम युवाओं में AIMIM को लेकर उत्साह देखा जा रहा है, खासकर उन इलाकों में जहां परंपरागत दलों से नाराजगी है।
ओवैसी का कहना है कि बिहार के अल्पसंख्यकों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया है। उनका दावा है कि उनकी पार्टी “वास्तविक प्रतिनिधित्व” देने के लिए आई है। सीमांचल की बदहाली, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों को लेकर AIMIM ने स्थानीय लोगों से सीधा संवाद शुरू किया है।
बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन ओवैसी अभी से मोर्चा संभाल चुके हैं। उनके तेज दौरे, जनसभाएं और मीडिया में बनी सक्रियता इस बात का संकेत दे रही है कि AIMIM अब “किंगमेकर” की नहीं, सीधे “किंग” बनने की कोशिश में है।
ओवैसी की बिहार में बढ़ती सक्रियता ने महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सीमांचल से लेकर मिथिलांचल तक AIMIM का सियासी विस्तार यदि सफल होता है, तो राज्य की राजनीति में एक नया समीकरण बन सकता है। क्या ओवैसी महागठबंधन को वाकई बड़ा झटका देंगे? इसका जवाब तो वक्त देगा, लेकिन फिलहाल सियासी हलकों में हलचल तेज है।