समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,14अगस्त। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन आएगा जब मुझे अपने ही शहर की सड़कों पर इतनी खौफनाक और दर्दनाक तस्वीरें देखने को मिलेंगी। उस दिन की शुरुआत एक आम दिन की तरह ही हुई थी। लेकिन जैसे-जैसे मैं अपने घर से बाहर निकला, माहौल में एक अजीब-सा तनाव महसूस हुआ।
सड़क के किनारे चलते हुए मैंने एक भीड़ देखी। उत्सुकता के मारे मैंने वहां जाकर देखा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। वहां एक आदमी का शव पड़ा हुआ था, जिसे छूरे से मारा गया था। उसकी लाश खून से लथपथ थी, और आसपास का नज़ारा बेहद डरावना था।
मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं ये सब देख रहा हूं। अभी मैं इस सदमे से उबर भी नहीं पाया था कि थोड़ी ही दूर पर एक और लाश देखी। जैसे ही मैंने उस लाश की ओर देखा, मेरी रूह कांप उठी। यह दूसरी लाश भी वैसी ही हालत में थी, खून से लथपथ और बेसहारा पड़ी हुई।
जब मैं थोड़ी दूर और आगे बढ़ा, तो वहां तीसरी लाश दिखाई दी। उस क्षण मेरी सांसें तेज हो गईं और मुझे समझ नहीं आया कि आखिर मेरे शहर में क्या हो रहा है। यह दृश्य मेरे लिए बेहद अजीब और तकलीफदेह था, क्योंकि मैंने अपने जीवन में कभी भी ऐसी खौफनाक और दर्दनाक स्थिति का सामना नहीं किया था।
हर कदम पर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरे दिल पर वार किया हो। मुझे समझ नहीं आया कि इन मासूम लोगों की जान किसने और क्यों ली।
मुझे लगा जैसे मेरी आंखों के सामने कोई बुरा सपना चल रहा हो, जिसे मैं जितनी जल्दी हो सके भूल जाना चाहता था। लेकिन ये सब वास्तविक था, और इस भयावह घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया।
इस घटना ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे समाज में इंसानियत कहां गायब हो गई है। क्या हम इतने निर्दयी हो चुके हैं कि हमें दूसरे की जान की कोई परवाह नहीं रही? यह अनुभव मेरे जीवन का सबसे भयानक और अविस्मरणीय क्षण रहेगा।
आज भी जब मैं उन दृश्यों के बारे में सोचता हूं, तो मेरी आंखों के सामने वही खौफनाक तस्वीरें तैरने लगती हैं और मेरे दिल में एक अजीब-सी बेचैनी भर जाती है।