पंचकोशी यात्रा की हुई शुरूआत, यहां जानें उज्जैन में ही क्यों होती है यह यात्रा?

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नितिनमोहन शर्मा
आपको पता है पानी कैसे बरसता है? बादल नमी खिंचते है, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर, चक्रवात, विक्षोभ आदि आदि। इन सबके तालमेल से पानी बरसता हैं। ये ही सार्वभौमिक सत्य है लेकिन हक़ीक़त उलट हैं। फिर कैसे बरसता के पानी? किसकी प्रार्थना से पसीजता है आसमान का कलेजा? क्या सिर्फ वैज्ञानिक कारण ही वर्षाकाल लेकर आते हैं? आग उगलती गर्मी के बाद, उसी आसमान से बारिश का होने की उम्मीद का आधार सिर्फ विज्ञान ही हैं? या कोई अन्य ताकत भी काम करती हैं?

जब सब तरफ आग उगलती गर्मी। पेड़ पौधे, जड़-चेतन तक सब त्राहिमाम कर उठते है। कुएं, सरोवर, ताल-तलैया के कंठ सुख जाते है। निर्मल नीर से भरी नदिया भी रीति हो जाती हैं। धरती का कलेजा भी फट जाता हैं। आसमान में दूर दूर तक उम्मीद का कोई बादल नजर नही आता। न कोई कल्पना कर सकता कि आग उगलता आसमान, नेह की झर झर बून्द भी बरसायेगा? विज्ञान जरूर ये ज्ञान देता है कि ये सब हालात बारिश पानी के लिए ही बनते है लेकिन ये तो विज्ञान के आगमन के बाद की बात है न? इसके पहले कैसे और किसे पता होता। था कि गर्मी के बाद पानी आएगा?

ये जो पानी बरसता है न, ये न विज्ञान के तकनीकी कारणों से न आप हमारे शहरी समुदाय के कारण बरसता हैं। आग उगलता आसमान रीझता है जमीन पर होने वाली प्रार्थनाओं से। निर्दोष प्रार्थना। अटूट आस्था के संग। चिलचिलाती धूप में भी आसमान से असीम उम्मीद का ये नाता कैसे उपजता है और कौन है इबादतगार? किनकी प्रार्थनाओं से आसमान का कलेजा पसीजता हैं और वह ऊष्मा रश्मियों की जगह नेह की बूंदे उड़ेलने लग जाता हैं?

जानना चाहते हो कौन है वे जिनकी प्रार्थनाओं से बारिश होती हैं? देखना चाहते हो उन लोगो को जिनकी आस्था-विश्वास-समर्पण के बल पर बून्द बून्द की तरसती वसुंधरा का आँचल तरबतर हो जाता हैं? ताल तलैया, कूप सरोवर, सरिताओं के सूखे कंठ की प्यास किन लोगों के कारण बुझती हैं? परिचित होना चाहेंगे ऐसे लोगो से? तो चले आईए राजा महाकाल की नगरी अवन्तिकापुरी यानी उज्जैन में। यहाँ आस्था चिलचिलाती धूप में नंगे पांव सड़को पर हिलोरें मार रही हैं। एक जनसमुद्र सा हिलोर ले रहा हैं। 40-42 डिग्री तापमान को ताक में रख हजारो हजार कदम उस नगरी, उस हरि-हर की परिक्रमा कर रहे हैं, जो उनके इष्ट हैं। जिनमे उनकी अटूट आस्था हैं। ये वे ही लोग है जो भीषण गर्मी को बगल में दबाकर पैदल पैदल मिलों का सफ़र कर रहें हैं।

लुगड़ा ओढे मातृशक्ति, साफे बांधे पुरुष, कुलांचे मारते बाल गोपालों की टोलियो का उत्साह देखने लायक है। ये है हमारे ग्रामीण अंचल के बन्धु बांधव। जो अपने अपने खेत हल से ” बखरकर” इस उम्मीद में अपने इष्ट की शरण मे आ गए कि बाबा बस अब पानी बरसाओ। ये गांव वालों की ही आस्था है जिनके दम पर ऋतु परिवर्तन होता हैं। उसी आसमान से अमृत रूपी जल बरसता है जहां से आग उगलती गर्मी बरस रही थी। क्या शहरी समुदाय वर्षा के लिये ऐसा कठोर तप करता है? वह बस पानी का लुत्फ उठाता है और वो भी मुफ्त। पानी के लिए प्रार्थना को शहरी समुदाय के कभी सामुदायिक रूप से हाथ उठते किसी से देखे? भला हो मेरे देश के गांवों का और ग्रामवासियों का जो समूहिक रूप से बारिश के लिये प्रार्थना करते हैं। ऐसे कठोर तप सँग। तब जाकर आसमान पसीजता है। ये विक्षोभ, चक्रवात, अरब सागर, नमी, बंगाल की खाड़ी वगैरह किताबी बाते है।

पंचकोशी यात्रा के लिए उज्जैन ही क्यों?

उज्जैन मे भगवान श्री महाकालेश्वर विराजमान हैं। अवंतिका नगरी चौकोर आकार में बसी है। अलग-अलग अंतर से शिव मंदिर स्थित हैं, जो द्वारपाल कहलाते हैं। इनमें पूर्व में पिंगलेश्वर, दक्षिण में कायावरोहणेश्वर, पश्चिम में बिल्वकेश्वर, उत्तर दिशा में दुर्देश्वर और नीलकंठेश्वर महादेव स्थित हैं। इन पांचों मंदिरों की दूरी करीब 118 किलोमीटर है। यात्रा के दौरान इन्हीं पांचों शिव मंदिरों की परिक्रमा कर क्षिप्रा नदी में स्नान करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यात्रा के दौरान 33 कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।

नागचंद्रेश्वर से बल लेकर शुरू होती है यात्रा

यात्रा की शुरुआत पटनी बाजार स्थित श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर से होती है। भगवान से उधार बल लेकर यात्रा को शुरू किया जाता है। मान्यता है कि यहां नारियल अर्पित करने से यात्रियों को घोड़े जैसा बल मिलता है। उज्जैन में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास है। मनुष्य के जीवन में संभव नहीं कि सभी के दर्शन कर लें। इस नगरी की परिक्रमा करने से सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद मिल जाता है। भीषण गर्मी में पैदल चलने से शारीरिक विकार भी दूर होते हैं। ये तप की यात्रा है। अमावस्या पर यात्रा पूर्ण होने के बाद श्रद्धालु पुन: भगवान के दर्शन करते हैं तथा उन्हें मिट्टी के घोड़े अर्पित कर बल लौटाते हैं और गंतव्य की ओर रवाना हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता अनुसार पंचकोशी यात्रा का शुभारंभ वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि शनिवार से होना था और यात्री पांच दिन में पिंग्लेश्वर महादेव, कायवरुणेश्वर महादेव, दुर्दुरेश्वर महादेव तथा बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना कर इसे अमावस्या तक पूर्ण करते है।

राजा विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है यात्रा

पंचकोशी यात्रा अनादिकाल से प्रचलित थी, जिसे राजा विक्रमादित्य ने प्रोत्साहित किया। स्कंदपुराण के अनुसार अनन्तकाल तक काशीवास की अपेक्षा वैशाख मास में मात्र पांच दिवस अवंतिवास का पुण्य फल अधिक है। वैशाख कृष्ण दशमी पर शिप्रा स्नान व नागचंद्रेश्वर पूजन के बाद यात्रा प्रारम्भ होती है, जो 118 किमी की परिक्रमा करने के बाद कर्क तीर्थवास में समाप्त होती है और तत्काल अष्टतीर्थ यात्रा आरंभ होकर वैशाखा कृष्ण अमावस्या को शिप्रा स्नान के बाद पंचकोशी यात्रा का समापन होता है।

उज्जैन का आकार चौकोर, महांकाल मध्य बिंदु

उज्जैन का आकार चौकोर है। क्षेत्र रक्षक देवता श्रीमहाकालेश्वर का स्थान मध्य बिन्दु में है। इस बिन्दु के अलग-अलग अन्तर से मन्दिर स्थित हैं, जो द्वारपाल कहलाते हैं। इनमें पूर्व में पिंगलेश्वर, दक्षिण में कायावरोहणेश्वर, पश्चिम में बिल्वकेश्वर तथा उत्तर में दुर्देश्वर महादेव जो चौरासी महादेव मन्दिर श्रृंखला के अन्तिम चार मन्दिर हैं।

 

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