गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल।

राहुल गांधी से सवाल, " क्या ये सीएम-इन-वेटिंग, भाजपा की शतरंजी चाल का मुकाबला कर पाएंगे"

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गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल।

हरियाणा की जनता, भाजपा की जनविरोधी नीतियों से परेशान- राहुल गांधी से सवाल क्या सी एम इन वेटिंग, हुडा, शैलजा और सुरजेवाला,  भाजपा की शतरंजी चालो का मुकाबला कर पाएंगे?

हमारा विश्लेषण: भाग एक।

आज देश में चुनावी बिगुल बज चुका है। हरियाणा में कांग्रेस की सियासत को समझने के लिए उनके विभिन्न पहलुओं पर दृष्टिपात करना अत्यंत आवश्यक है। यह जानना ज़रूरी है कि हरियाणा में पार्टी की संगठनात्मक स्थिति क्या है, नेतृत्व किस दिशा में जा रहा है, वोट बैंक की स्थिति क्या है, जनता की माँग और अपेक्षाएं क्या हैं, कार्यक्रम और योजनाएं कांग्रेस पार्टी की क्या हैं?

इन पहलुओं के माध्यम से हरियाणा की राजनीति को समझने का प्रयास किया जा रहा है। यदि हरियाणा में कांग्रेस की सियासी पकड़ का आंकलन किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि जड़ विहीन नेताओं हुडा, शैलजा, रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी, कुलदीप शर्मा एवं उदयभान का कोई ख़ास जनाधार नहीं बचा है। इन सब राजनीतिक परिवारों के इलावा सभी प्रदेश स्तरीय नेता, कार्यकर्ता, और हरियाणा की जनता वास्तव में भाजपा की कार्यप्रणाली एवं जन विरोधी नीतियों से तंग आ चुकी है। आज उपरोक्त राजनीतिक परिवारों के अलावा कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं द्वारा केंद्रीय नेतृत्व एवं राहुल गांधी से एक ही सवाल पूछा जा रहा हैं, कि क्या ये दिग्गज राजनीतिक परिवार इस वक़्त कांग्रेस के संगठन में जान फूंकने की स्थिति में है, क्या कांग्रेस नेतृत्व जनता को साथ जोड़ने में सक्षम है कि क्या कोई ऐसा नेता है जो कांग्रेस को दोबारा सशक्त स्थिति में पहुँचा सके। इसके लिए हमें इतिहास और वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों का आकलन करना होगा।

पिछले लंबे समय से भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष उदयभान आपस में भी मिलकर कांग्रेस पार्टी को अपने ही तरीक़े से चला रहे हैं। पार्टी में गुटबाज़ी को हवा दी जाती है। भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली और नीतियों की आलोचना केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित। आत्ममुग्ध, अहम और वहम में कांग्रेसी नेता यह समझते हैं कि हमने जनता का विश्वास जीत लिया है और महाभारत की जंग भी जीत ली है। हुडा, उनका बेटा, दीपेंद्र शैलजा और सुरजेवाला तो नींद में भी सीएम- सीएम करते रहते हैं । आज कांग्रेस पार्टी हरियाणा में दो गुटों में बंटी पड़ी है। एक गुट का संचालन भूपेंद्र हुड्डा करते हैं,  तो दूसरे गुट का संचालन तिकड़ी अर्थात एस आर के ग्रुप करता है। जिसके परिणामस्वरूप पार्टी के कार्यकर्ता एवं अनुयायी अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और पार्टी को बहुत ही नुक़सान हो रहा है।

कांग्रेस पार्टी की कार्यप्रणाली पर सबसे पहले भूपेंद्र हुड्डा की भूमिका का आकलन करेंगे। यदि हम इतिहास के पन्नों बार नज़र डालें तो 2005 के चुनाव में 67 विधायक चुने गए थे। पार्टी के विधायकों का समर्थन न होने के बावजूद भी भजनलाल के दावे को दरकिनार करते हुए केंद्रीय नेतृत्व द्वारा भूपेंद्र हु्डा को मुख्यमंत्री का पद सौंप दिया गया था, जबकि पार्टी में अधिकांश विधायक भजनलाल को समर्थन दे रहे थे। क्योंकि सोनिया गांधी जी भजनलाल से कई कारणों से ख़फ़ा थीं, जिसका फ़ायदा केंद्रीय नेता अहमद पटेल ने उठाया और उन्होंने अपने मित्र मुकेश अंबानी की मदद से भूपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाने में सहायता की। भूपेंद्र हुड्डा ने सीएम बनने के बाद मुकेश अंबानी के अहसान का बदला चुकाया। मुख्यमंत्री बनते ही भूपेंद्र हुड्डा ने रोहतक लोक सभा सीट से त्यागपत्र दिया और उन्होंने अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को विदेश से बुला लोक सभा का चुनाव लड़वाया और वो सांसद चुने गए| भूपेंद्र हुड्डा एवं समाज की मांग पर श्रीकृष्ण हुड्डा ने विधान सभा सीट से त्याग पत्र दिया । भूपेंद्र हुड्डा उपचुनाव में विधायक चुने गए। भूपेंद्र हुड्डा ने जन सेवा करने की बजाए अपनी कार्यप्रणाली से पार्टी अध्यक्ष एवं नेताओं का सहयोग न देकर बल्कि उनके लिए रुकावटें पैदा करना शुरू कर दिया जिसके कारण ज़मीन विस्तार एवं प्रदेश स्तर पर संगठन एवं सरकार पर नियंत्रण कम होता गयाI भूपेंद्र हुड्डा ने अपने सिपहसालारों के माध्यम से सरकार चलाना प्रारंभ किया और अपने विरोधियों को तथा पार्टी के नेताओं को अनदेखा करना प्रारंभ कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि विभिन्न जातियों एवं वर्गों के नेताओं में एस संतोष एवं विरोध से पनपता प्रारंभ हो गया।

2009 के चुनाव में कांग्रेस का परंपरागत वोट टूटने लगा कांग्रेस पार्टी के विधायकों की संख्या 67 से अब घटकर 40  रह गई। केंद्रीय नेतृत्व एवं बिल्डर लॉबी के द्वारा हरियाणा जनहित कांग्रेस के पाँच विधायकों को दलबदल करवाकर भूपेंद्र हुड्डा ने बहुमत हासिल कर लिया और मुख्यमंत्री दुबारा बन गए। भूपेंद्र हुड्डा के पास जो सलाहकार थे उन्होने सरकार को चलाने के लिए सही दिशा ना देकर बल्कि पार्टी के अंदर दमदार नेताओं को ठिकाने लगाने के लिए प्रोत्साहित करते रहें जिसके फलस्वरूप अपनी पार्टी के नेताओं के साथ प्रदेशाध्यक्ष एवं मंत्रियों के साथ विधायकों के साथ कार्यकर्ताओं के साथ ठीक से व्यवहार नाइक नहीं किया। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष फूलचंद मुलाना और अशोक तंवर के साथ भी टकराव रहा और अनदेखी का यही कारण रहा कि कांग्रेस पार्टी से बड़े बड़े क़द्दावर नेता भजनलाल,  राव इंद्रजीत,  डॉo अरविंद शर्मा, विनोद शर्मा, बीरेंद्र सिंह, कुलदीप बिश्नोई एवं कई अन्य नेता कांग्रेस पार्टी छोड़ गए।

मुख्यमंत्री के तौर पर 10 वर्षों के कार्यकाल में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जितनी चली उसने पार्टी के अंदर रहे हुए जनाधार वाले नेताओं की जड़ों को काटा, जो कि कांग्रेस के लिए बहुत फ़ायदेमंद हो सकते थे।

यही कारण रहा कि 2014 के लोक सभा चुनावों में 10 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस नो सीटें चुनाव हार गई। केवल मुख्य मंत्री महोदय हुडा अपने हल्के में रोहतक लोक सभा सीट बचाने में सफल रहे, लेकिन वोट बैंक घटा। भूपेंद्र हुड्डा केवल अपने क्षेत्र के नेता बनकर रह गये, जिससे पार्टी को बहुत नुक़सान हुआ और 2014 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी की हार हुई और कांग्रेस पार्टी केवल 15 विधानसभा सीटों तक सिमट कर रह गई। आंतरिक गुटबाज़ी, राजनीतिक वर्चस्व, अहम और वहम के चलते भूपेंद्र हुड्डा प्रदेश में अपनी संकीर्ण सोच ,कार्यप्रणाली के कारण सभी जातियों और वर्गों से कट गए और देश के लगभग सभी जातियों और समुदायों के नेताओं के साथ टकराव के कारण अलग थलग पड़ते गए। हरियाणा में इनका जनाधार धीरे धीरे खिसकने लगा। इनके कार्यकाल के दौरान इनके सारे घोटाले जनता के सामने आए की इनकी छवि को धक्का लगा।

फिर 2019 के चुनाव आते हैं। भूपेंद्र हुड्डा ने सोनीपत से लोक सभा चुनाव लड़ा और दीपेंद्र हुड्डा ने रोहतक से लोक सभा का चुनाव लड़ा। दीपेंद्र हुड्डा रोहतक लोक सभा का चुनाव हार गए जबकि वे भूपेंद्र हुड्डा भी सोनीपत से 1,64,000- से अधिक वोटों से हार गए। कांग्रेस पार्टी की यह सच्चाई है कि के समर्थन में सभी उच्च पदों पर और आना चाहते हैं। लोक सभा का चुनाव लड़ने में सुख नहीं हैं और राज्य सभा में सांसद बनकर जाना चाहते हैं। जनता से संपर्क नहीं रखना चाहते संवाद नहीं करना चाहते जोड़ तोड़ की राजनीति दलबदल की राजनीति को प्रोत्साहन देते हैं। अपने-अपने गुट बनाकर अपना स्थित बनाए रखना चाहते हैं। ये नेता बग़ावती तेवर एवं सार्वजनिक मंचों के द्वारा पार्टी के नेताओं पर सवाल उठाते हैं। यदि यह असल में कांग्रेसी हैं और विचारधारा के साथ जुड़ाव है तो उन्हें अनुशासन में रहकर अपनी बात रखनी चाहिए।

2019 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी की पराजय हुई इसके इसके कारण सभी जानते हैं, समझते हैं। लेकिन कांग्रेस 31 विधानसभा सीटें जीत पाई। इसके पश्चात हरियाणा में ऐलनाबाद, आदमपुर एवं बड़ौदा में उपचुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा ने विपक्ष के नेता होने के बावजूद भी अपनी की सकारात्मक भूमिका अदा नहीं कर पाए और जनता का सहयोग नहीं प्राप्त कर पाए जिसके कारण दो उप चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हार मिली। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि केंद्रीय हाई कमान के द्वारा जब राज्यसभा में 3 सीटों के लिए जिन उम्मीदवारों को टिकट दी उनमे से दो उम्मीदवार अधिकृत उम्मीदवार आर के आनंद और अजय माकन को हरवा दिया। दबाव की राजनीति का प्रयोग करते हुए अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को राज्यसभा की टिकट दिलवाई। फिर शैलजा की छुट्टी करवाई । यदि आज की राजनीतिक परिस्थितियों पर नज़र डाली जाए तो ये कहा जा सकता है इन राजनीतिक परिवारों और दिग्गजों के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है तो कांग्रेस की हार की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत यदि उनके स्थान पर सामूहिक नेतृत्व और यह सर्वमान्य नेता पार्टी की कमान संभालता और केंद्रीय नेतृत्व अपना सहयोग और आशीर्वाद देता है तो हरियाणा प्रदेश में राजनीतिक दल कांग्रेस का मुक़ाबला करने की स्थिति में नहीं है।

पार्टी को रसातल में ले जाने के लिए पूर्ण रूप से भूपेंद्र हुड्डा ज़िम्मेवार है क्योंकि इनकी कार्यप्रणाली केवल व्यक्तिगत स्वार्थों एवं परिवार तक ही सीमित है। 2005 से लेकर 2024 तक जितने भी प्रदेशाध्यक्ष हुए हैं, उन्हें अपना सहयोग एवं समर्थन भूपेंद्र हुड्डा ने नहीं दिया है। अब तक जितने भी केंद्रीय स्तर के नेता प्रदेश के प्रभारी रहे हैं, उनके काम में भी रोड़ा अटकाते रहे हैं। प्रदेश के नेता और केंद्रीय नेतृत्व अपने आपको कमज़ोर क्यों समझते हैं। इसका उत्तर हमारे जागरूक पाठक ही दे सकते हैं? भूपेंद्र हुड्डा की कार्यप्रणाली को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी कुछ लोगों की बपौती बनकर रह गई है। सच्चे कांग्रेसियों को राहुल गांधी से प्रेरणा लेनी चाहिए कि नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोलनी चाहिए । जारी…

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