गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- हमारे माननीय साथी रणबीर सिंह फौगाट के सौजन्य से

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गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: पवन कुमार बंसल।
पॉलिटिकल बिहेवियर ऑफ़ सिटींग एम. एल. ऐज़. और इनके एन्टीसीडेंट्स चेक होने चाहियें जब भी इनके बारे में कोई टिप्पणी करने की जरूरत महसूस हो. यही अध्ययन कभी भी, कोई नहीं करता इसलिए अधिकतर टिप्पणियां एक ‘पॉलिटिकल वेंडेटा’ बनकर रह जाती हैं. एक नेता आरोप की ताकत से नहीं बल्कि फैक्ट्स और विचार की ताकत के आगे ही पस्त हो सकता है. अगर एम. एल. ए. सरकार में एक मंत्री है या मुख्य मंत्री, तो इनकी पॉलिटिकल गवर्नेंस का मॉडल और कार्य पद्धति का रिकॉर्ड बनाना चाहिए ताकि इनके बारे में तथ्य इकट्ठा हो सकें. अनेक अधिनियम और शासकीय रूल्स से इनकी वाकफियत नहीं होती. गवर्नेंस को ये लोग पॉलिटिक्स समझते हैं और पॉलिटिक्स ऑफ़ गवर्नेंस से ये अनभिज्ञ ही रहते हैं. ये लोग इन दोनों को कभी अलग नहीं समझते क्योंकि इन्हें न तो गवर्नेंस आती है और न ही एडमिनिस्ट्रेशन चलाना आता है.
भारत में लोकतंत्र की स्थापना के समय से ही गवर्नेंस ख़त्म हो गयी. गवर्नेंस चलती है सिविल सर्वेन्ट्स के जरिये, जिनको नेताओं ने अपने पॉलिटिकल एजेंडा को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया है. भूपी, खट्टर और विज जैसे लोगों का अकादमीय अध्ययन न्यूनतम स्तर का है और ये बाईचांस ही पॉलिटिक्स में हैं. वैसे करियर पॉलिटिशियन ये नहीं हैं जैसे कि शुरू के दिनों में –सन १९५२-१९६७ तक रहे. नेहरु और सरदार पटेल ही सही माने में पॉलिटिक्स के जरिये से गवर्नेंस करना जानते थे जिनके समय में ओछी बात नहीं हुयी. अभी जितने भी लोग हरयाणा में राजनीति करते हैं और सक्रिय हैं इनमें से दो-चार को छोड़कर किसी को भी राज चलाने की तमीज नहीं है. अपने वोटर्स को ये लोग गुलाम से अधिक नहीं मानते और खुद को राजनैतिक-सामंतशाही के चिरायु दावेदार. ऐसा दिखाते हैं जैसे इनका कोई विकल्प नहीं है. इन्होंनें पूरे संस्थागत माहौल कि दूषित कर दिया है और हरेक व्यक्ति को खुद पर और राजनैतिक जोड़-तोड़ पर आश्रित कर लिया है. आज के दिन हरयाणा में आप कितना भी शानदार पॉलिटिकल एनालिसिस कर लें, इनकी ओछी सोच कभी सुधरेगी नहीं. इसका नतीजा हमारे सामने है: हरयाणा के निवासियों किसी भी आकस्मिक बड़े संकट का सामना करने में अक्षम हो गए हैं. सबके हौसले पस्त हैं. घरों से खुशहाली गायब है. न शासकीय स्तर पर और न ही व्यक्तिगत प्रयास से युवाओं के पास जॉब है. जॉब मार्किट अब राजनैतिक हो गयी है और हर घर इनकी दया पर आश्रित. मेरे हिसाब से हरयाणा में सदा के लिए राष्ट्रपति शासन लगा देना ही उचित होगा. नेताओं की इस बड़ी भीड़ और इनकी ओछी बातों से पिंड छूटेगा. वास्तव में स्कॉलरली माइंडस का मानना है कि स्टेट्स में राजनैतिक सरकार की जरूरत ही नहीं. सिर्फ ब्यूरोक्रेसी ही काफी है. आप इन नेताओं से कहें कि के.सी.भट्टाचार्य, जे.एन. मोहंती, बिमल कृष्ण मतिलाल और जोनार्दन गनेरी को ये पहले जरूर पढ़ लें ताकि पॉलिटिकल फिलोसोफी को भी ये जान लें. ये लोग नाकामयाब वकील, प्रॉपर्टी डीलर, असफल व्यापारी या छोटे दूकानदार, कलर्की के इम्तिहान में फेल लोग, असफल किसान और अयोग्य मास्टर हैं

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