मोदी बहुत आगे की सोच रहे हैं

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त्रिदीब रमण
  त्रिदीब रमण

यह मेरा हुनर है जो जादू दिखाता हूं मैं, तेरे सपनों की ताबीज बनाता हूं मैं; 

मेरे हर खेल के शहमात पर तुम ही तुम हो, ऐसे ही नहीं बाजीगर कहलाता हूं मैं’

कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की नज़रें जहां आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर अटकी है, वहीं भारतीय राजनीति को एक नया चेहरा-मोहरा देने की जद्दोजहद में जुटे चतुर सुजान मोदी आने वाले तीन दशकों की राजनीति को ’शेप’ देने में जुटे हैं। इस बार यह सपनों का सौदागर अपने जादुई पिटारे में ’30 ट्रिलियन इकॉनोमी’ की मृगतृष्णा लेकर आया है। पीएम मोदी की एक  कोर टीम 2024 लोकसभा चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए एक ’पॉलिसी प्लेबुक’ तैयार करने में जुटी है, यह प्लेबुक यह कहने को तैयार है कि ’अगर भारत देश पीएम मोदी के विजन के अनुरूप चला तो आजादी के 100 वर्षों के सफर तक यानी आने वाले 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 30 ट्रिलियन का हो जाएगा।’ मोदी के कोर टीम के नेतृत्व में ’इंडिया @विजय 2047’ नामक श्वेत पत्र पर काम जारी है। सूत्र बताते हैं कि इस रोड मैप को तैयार करने का जिम्मा विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा को सौंपा गया है, बंगा की टीम में एप्पल कंपनी के मालिक टिम कुक और देश के एक नामचीन उद्योगपति भी शामिल हैं, इस पूरे कार्य को नीति आयोग के दिशा निर्देश में पूरा किया जा रहा है। अजय बंगा तो आपके जेहन में ताजा ही होंगे, उन्हें पीएम मोदी का बेहद करीबी माना जाता है, और भारत में हालिया दिनों संपन्न हुए जी20 शिखर सम्मेलन में उन्होंने अपनी खास उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस ’पॉलिसी प्लेबुक’ को दो अध्यायों में बांटा गया है, पहले अध्याय में 2030 तक की प्लॉनिंग है और इसके अगले अध्याय में आगे के 17 सालों की। इस पूरी कार्य योजना की बुनावट भारत के मिडिल क्लास को केंद्र में रख कर की गई है। और इसके उद्घोष में ’फार्म से फैक्ट्री’ तक की भावना निहित है यानी आने वाले 34 सालों में भारत सरकार का फोकस खेती-किसानी पर नहीं अपितु फैक्ट्री यानी मैनुफैक्चरिंग सेक्टर पर रहने वाला है। अब स्कूली बच्चों को भी एक नए सिरे से निबंध लिखने की प्रैक्टिस कर लेनी चाहिए कि ’भारत एक कृषि प्रधान देश ‘नहीं’ है।’ सब मोदी जी के विजन के अनुरूप चला तो आने वाले कुछ दशकों में भारत भी सिंगापुर जैसे देशों में कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ सकेगा।

इसीलिए अशोक व सुनील में पटी नहीं

आपको चुनाव विश्लेषक सुनील कानूगोलू याद हैं न? कभी ये प्रशांत किशोर के साथ हुआ करते थे, फिर उनसे टूट कर राहुल गांधी से सीधे जुड़ गए। कांग्रेस के कर्नाटक फतह में उनकी एक प्रमुख भूमिका बताई जाती है। कांग्रेस हाईकमान कानूगोलू के परफॉरमेंस से इतना खुश हुआ कि जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्हें वहां मंत्री का दर्जा मिल गया। इन पांच राज्यों के चुनावों में भी कांग्रेस शीर्ष ने कानूगोलू के ऊपर यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि ’वे कर्नाटक चुनाव के तर्ज पर इन राज्यों में भी जमीनी सर्वेक्षण कर प्रत्याशियों के चयन में पार्टी की मदद करें।’ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलांगना व मिजोरम में तो कानूगोलू की राय को तरजीह दी गई और प्रत्याशियों की घोषणा से पहले उनके लिस्ट से मिलान भी कर लिया गया। पर राजस्थान में कानूगोलू की एक न चली। सुनील की राय थी कि ’कर्नाटक की तर्ज पर ही राजस्थान में भी पचास फीसदी निवर्तमान विधायकों के टिकट काट दिए जाएं और उनकी जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा जाए।’ यहां तक तो कानूगोलू की बात ठीक थी, एक कदम आगे बढ़ कर कानूगोलू ने यह राय दे डाली कि ’अशोक गहलोत की जगह पार्टी को अपना कोई नया व फ्रेश सीएम फेस आगे करना चाहिए,’ जाहिर सी बात है कि सुनील की इस राय पर अशोक बेतरह उखड़ गए, इस मामले ने कुछ इस हद तक तूल पकड़ा कि कानूगोलू को जयपुर से बेंगलुरू की फ्लाइट लेनी पड़ गई। हाईकमान का कोई हस्तक्षेप भी काम नहीं आया, गहलोत ने किसी की एक न सुनी।

खड़गे की नज़र आखिर कहां हैं

कुछ अजीबोगरीब है सियासत की रवायत मगर, मेरी हस्ती है कि मैं धूल में भी चमक जाता हूं, कुछ ऐसे ही चमके थे कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी पिछली बार, जब बात उनकी रिटायरमेंट की हो रही थी तो अपने मित्र अशोक गहलोत की मदद से उन्होंने खेल का पांसा ही पलट दिया। गहलोत ने खुद के बदले अपने मित्र खड़गे को कांग्रेस की सबसे अहम कुर्सी दिलवा दी। खड़गे ने अब धीरे-धीरे कांग्रेस के अंदर अपने खास विश्वस्तों की एक फौज जुटा ली है, इंडिया गठबंधन के क्षत्रपों से भी उनके निजी ताल्लुकात प्रगाढ़ हुए हैं लालू, तेजस्वी, नीतीश जैसे नेताओं से अब रोज-बरोज की उनकी बातचीत है। सूत्रों की मानें तो ये क्षत्रप ही 2024 में एक दलित पीएम की बात उठा सकते हैं, खड़गे एक बड़ा दलित चेहरा हैं, कांग्रेस की कमान भी उनके पास है, सो वे समां तो बांध ही सकते हैं, राहुल सार्वजनिक मंचों से कई बार कह चुके हैं कि पीएम बनने में उनकी कोई खास रुचि नहीं, अलबत्ता यह बात भी खड़गे के हक में ही जाती है। पर पिछले दिनों इनके पुत्र प्रियांक खड़गे ने मैसूर में एक सार्वजनिक बयान देकर हड़कंप मचा दिया कि ’अगर कांग्रेस नेतृत्व चाहेगा तो वे सीएम बनने को तैयार हैं।’ फिर रणदीप सुरजेवाला की ओर से उन्हें डपट दिया गया। लगे हाथ प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. जी परमेश्वर ने भी सीएम बनने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी, इस कार्य में उन्हें राज्य के सहकारिता मंत्री के एन राजन्ना का पूरा साथ मिला। जाहिर इन ताजा घटनाक्रमों से खड़गे की पेशानियों पर बल पड़े हैं, उनकी उम्मीदों को किंचित झटका लगा है और उनके पुत्र प्रेम का मुजाहिरा भी हुआ है, जो 24 के उनके लक्ष्य के समक्ष कुछ बाधा उत्पन्न कर सकता है।

क्या हेमा की जगह कंगना?

भाजपा की 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप दिए जाने का कार्य जारी है। मथुरा संसदीय सीट की सांसद हेमा मालिनी पिछले दिनों 75 वर्ष की हो गई हैं और भाजपा की नीति है 75 पार के लोगों को सक्रिय राजनीति से रिटायर कर मार्गदर्शक मंडल में शामिल करने की, सो कयास लग रहे हैं कि इस बार मथुरा से हेमा मालिनी का टिकट कट सकता है। भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो 2024 के चुनाव में कंगना रनौत मथुरा से हेमा की जगह ले सकती हैं। भले ही कंगना ने अबतलक भाजपा ज्वॉइन न की हो पर वह हिंदुत्व के मुद्दे पर प्रखर रही हैं, संघ के लाइन को आगे रखती हैं और पीएम मोदी की अनन्य प्रशंसकों में से हैं। पिछले दिनों कंगना का वह बयान भी सुर्खियों की सवारी गांठता रहा, जब उन्होंने कहा कि-’भगवान श्रीकृष्ण की कृपा रही तो वह चुनाव जरूर लड़ेंगी।’ कुछ दिनों पहले वह योगी आदित्यनाथ व उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी को अपनी हालिया फिल्म ’तेजस’ दिखातीं नज़र आई थीं। भाजपा में उनके तेज के सब पहले से ही कायल हैं।

 

काक के बिना

अशोक गहलोत इस दफे के चुनाव में ज्यादा अपने मन की कर रहे हैं। पूर्व मंत्री बीना काक की टिकट के मसले पर वे हाईकमान से भिड़ गए हैं। यहां तक कि बीना काक के मुद्दे पर वह राहुल गांधी की राय की भी अनदेखी कर रहे हैं। दरअसल, बीना 2013 का चुनाव हार गई थीं, सो उन्हें 2018 के चुनाव में टिकट ही नहीं दिया गया। तो वह नाराज़ होकर सार्वजनिक रूप से गांधी परिवार पर ही बरस पड़ीं, गांधी परिवार खास कर राहुल गांधी इस बात को भूले नहीं हैं। पर गहलोत राजस्थान में अपने किस्म की राजनीति करना चाहते हैं।

 

 

कर्नाटक में भाजपा का धर्मसंकट

अगर कर्नाटक कांग्रेस में भीतर ही भीतर कोई आग सुलग रही है, तो वहां भाजपा में कहां सब चंगा है। प्रदेश भाजपा में बेतरह गुटबाजी है, इसके चलते ही कांग्रेस के हाथों भगवा पार्टी को शिकस्त झेलनी पड़ी। प्रदेश में पार्टी की गुटबाजी का कुछ ये हाल है कि अब तक वहां ‘लीडर ऑफ ऑपोजिशन’ यानी नेता प्रतिपक्ष व विधायक दल के नेता का चुनाव नहीं हो पाया है, भाजपा अपना नया प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बना पाई है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतील का कार्यकाल पिछले वर्ष ही समाप्त हो गया था, पार्टी में उनको लेकर भी खासा असंतोष है, बावजूद उन्हें तब तक पद पर बने रहने को कहा गया है जब तक कि पार्टी अपना नया अध्यक्ष नहीं ढूंढ लेती। नेता विधायक दल की रेस में बासव राज बोम्मई और आर अशोक के नाम शामिल हैं। वैसे भी ओबीसी उभार और जातीय जनगणना यहां भाजपा के गले की फांस बना हुआ है। सूत्र बताते हैं कि नेता विपक्ष की कुर्सी भाजपा अपने नए गठबंधन साथी एचडी कुमारस्वामी के लिए छोड़ने को तैयार है। इस बार जदएस के 19 और भाजपा के 66 विधायक चुन कर आए हैं। वहीं प्रदेश अध्यक्ष के लिए राज्य के कद्दावर नेता येदुरप्पा अपने बेटे विजयेंद्र का नाम आगे कर रहे हैं। अगर किसी प्रकार विजयेंद्र नहीं बन पाते हैं तो येदिुरप्पा की विश्वासपात्र रहीं शोभा करंदलजे का भी नंबर लग सकता है। शोभा वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं जो राजनैतिक रूप से बेहद प्रभावशाली जाति है, सीटी रवि भी प्रदेश अध्यक्ष बनने की रेस में शामिल हैं।

और अंत में

वे एक संपन्न प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री हैं, सो उनकी पत्नी भी नवविवाहिता सा सुलूक कर रही हैं, सीएम पत्नी के तौर पर कई आयोजनों में स्टेज लूट रही हैं, फैशन शोज में ‘शो स्टॉपर’ में शुमार हैं, ग्लैमर का उन्हें कुछ इस हद तक चस्का लगा है कि उन्होंने अपने एक पसंदीदा मेकअप आर्टिस्ट को अपने साथ ही रख लिया है, रोजाना के मेकअप के लिए। सूत्र बताते हैं कि इस नामचीन मेकअप आर्टिस्ट का रोज का मेहनताना ही तकरीबन तीस हजार रुपए है, राम जाने इसका बोझ किस आम आदमी की जेब पर पड़ रहा होगा।

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