कोरे कागज पर रंग भरतीं स्त्रियां

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*संजय स्वतंत्र
भारतीय स्त्रियों ने सदियों से पीड़ा झेली है। उनके संघर्ष की अनंत गाथा है। पुरुषों की आधी दुनिया है वह। फिर भी वह हाशिए पर है, तो इसके लिए जिम्मेदार पुरुष है। पितृसत्ता ने स्त्रियों के जीवन को कोरा कागज बना दिया है। नतीजा अब उस खाली कागज में वे अपना नीला आसमान ढूंढती हैं। उस पर कामयाबी का परचम लहराती हैं। आज भी पुरुष सत्तात्मक छाया से भारतीय स्त्रियां क्यों नहीं निकल पाई, इसका पोस्टमार्टम कहानीकार अपराजिता अनामिका बखूबी करती हैं। वह कौन सी वजह है? क्या है इसके पीछे का स्त्री मनोविज्ञान? इसके लिए आपको इनका सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह ‘नमकीन चेहरे वाली औरत’ पढ़ना पड़ेगा।
अक्सर कुछ स्त्रियों को पुरुष नमकीन कह देते हैं। क्या है उनका नमकीनपना। उनके चेहरे पर यह नमक आता कहां से है? अनामिका जी की कहानियों को पढ़ने के बाद पता चलता है किसी स्त्री विशेष ने खुद को कितना तपाया है। कितना संघर्ष किया है जीवन में। एक कठिन यात्रा के बाद उसके चेहरे का नमक कम नहीं होता, तो इसकी वजह उसकी गहरी आंखों से निकले वो आंसू हैं जो बह कर उसे नया हौसला देते हैं। इस लिहाज से प्रताड़ना और उपेक्षा से पीड़ित होकर भी उस स्त्री को नमकीन चेहरे वाली औरत कहा जाए तो गलत नहीं। अनामिका जी यही कहना चाहती होंगी।
इस कहानी संग्रह में दस कहानियां हैं। एक बार जो पढ़ने बैठे तो फिर खत्म करके ही मानेंगे। पहली कहानी ‘इश्क मलंग’ की नायिका उन्हीं स्त्रियों में से एक है जिसे पति सजावटी समान समझता है। जीवन के कठिन पड़ावों को पार कर के भी नायिका मृणाल के चेहरे का नमक कम नहीं हुआ तो ये उसका हौसला है। यह आत्मविश्वास ही उसके चेहरे पर नमक लाता है। एक अनोखी प्रेम कहानी जिसमें प्रेम किसी बंधन का मोहताज नहीं। पच्चीस साल के नौजवान और चालीस साल की प्रौढ़ नायिका की अलहदा प्रेम कहानी। यह क्या कुछ कहती है, इसके लिए इसे पढ़ना पड़ेगा।
‘पगली’ शीर्षक कहानी में एक ऐसी पत्नी का जिक्र है जिसे पति ने हमेशा दोयम दर्जे का ही माना। दिन में जो उपेक्षित है रात में बिस्तर पर वह अनिवार्य है। पुरुषों के दो चेहरे की परत खोलती यह कहानी स्त्री के आत्मसम्मान और उसके भीतर के नमक यानी ईमानदारी का मान भी रखती है। इसी तरह ‘कचनार के फूल’ बेहद मासूम सी प्रेम कहानी है। संध्या और सूरज का प्रेम दो परिवारों के बीच मान-सम्मान की भेंट चढ़ जता है। अंतत: संध्या की दूसरी जगह शादी हो जाती है। बीस साल बाद जब शेखर फोन करता है, तो संध्या को महसूस होता है कि इस तरह के रिश्ते का कोई औचित्य नहीं। प्रेम का तिलिस्म इसी तरह टूटता है।
इस संग्रह की केंद्रीय कहानी है- ‘नमकीन चेहरे वाली औरत’। भारतीय परिवारों में स्त्रियां किस कदर जिल्लत झेल रही हैं, यह कहानी बताती है। नायिका अवि के खूबसूरत चेहरे और बड़ी-बड़ी आंखों के पीछे स्याह रातों को किसी ने नहीं देखा। अवि को वक्त और किस्मत की ठोकरों ने उसे परत-दर-परत कठोर बना दिया। ऐसी औरतों के चेहरे देख कर ही लोग कहते हैं, बहुत नमक है आपके चेहरे पर। ऐसे में कोई स्त्री मुस्कुरा भर देती है और अपनी आंखों के काजल में स्याह पीड़ा छुपा लेती है। यही है नमकीन चेहरे वाली औरत।
यही अवि जब कहानी ‘परावर्तन’ में रिया के रूप में अपना वजूद तलाशती सामने आती है, तो उसे पता चलता है कि जीवन के कैनवास पर उसका अस्तित्व कितना बड़ा है। फिर भी उसने पुरुष के मुखौटे को उतारना सीख लिया है। यही स्त्री जब कहानी ‘सनशाइन’ में आती है तो पति से उपेक्षित होने पर भी अपना व्यक्तित्व डॉ. विशाल की सहायता से गढ़ती है। इसमें वह सफल भी होती है।
कहानी ‘दमित’ में प्रिया और सुगंधा के माध्यम से स्त्रियों की दमित भावनाओं का मनोवैज्ञानिक पोस्टमॉटम किया है कहानीकार ने। सच है कि भारतीय स्त्रियां अपनी दमित इच्छाओं की गठरी ढो रही है। निराशा और अकेलेपन से उबरने के लिए धर्म का मार्ग अपना रही हैं। जबकि वे संगीत, किताबों और क्यारियों से या किसी की मदद कर उनकी मुस्कान लौटा कर अपने जीवन को सुवासित कर सकती हैं। कहानी ‘बूमरैंग’ भी उच्च वर्ग की उपेक्षित शिक्षित स्त्री के विद्रोह को चित्रित करती है।
अंतिम कहानी ‘देवत्व’ बताती है कि किसी भी स्त्री पुरुष के बीच एक भावनात्मक रिश्ता एक तरह से देवत्व का रूप होता है। यह महसूस करने की बात है। कहानी यह भी बताती है कि स्त्री ठान ले तो वह अपने सपने साकार कर सकती है। नीरजा ऐसी ही शिक्षित नायिका है जो आइएएस अफसर सुशांत के सहयोग से समाज में बदलाव लाती है। दोनों के बीच एक अबूझ स्नेह है जो एक स्नेहिल हृदय ही समझ सकता है।
कहानी संग्रह की भाषा सहज तो है ही, ठेठपन की ठसक भी है। यही भाषा का सौंदर्य है। इसमें हर स्त्री कोरे कागज में रंग भरने की कोशिश करती मिलेंगी।
संग्रह 231 पेज का है, जिसे छापा है वाराणसी के मणिकर्णिका प्रकाशन ने। युवा प्रकाशक राज्यवर्धन सिंह ‘सोच’ ने इसके कागज और छपाई का खास ध्यान रखा है। संग्रह का आवरण कई दिनों से चर्चा में है। लेखिका को शुभकामनाएं।
संजय स्वतंत्र,

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