जागरुकता आ रही है, धीरे धीरे ही सही…!!

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अचानक मुझे आदेशात्मक शब्द सुनाई दिए – “भैया सीट से हट जाओ…..मेरे पास बच्चे है..!!”

बुर्का ओढ़े महिला ने एक 24-25 साल के लड़के से कहा,
तो लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा कि आप महिला सीट पर जाओ…मै महिला सीट पर नहीं बैठा हूं.

तो वो बोली कि वहां सब लेडीज बैठी हैं…

तो लड़के ने अपने कान के हेडफोन को हटाते हुए कहा तो मैं क्या करूं?? मुझे भजनपुरा जाना है, जो अभी बहुत दूर है ,

तो वो अपने बच्चो की धौस दिखाने लगी कि मेरे पास छोटे छोटे ४ बच्चे हैं… आपको शर्म नही आती? आप जेंटस् हैं…आप सीट नही छोड़ सकते?

अब सभी सवारियां मौन तमाशा देखने लगी,
मामला गर्म होने की बजाय मसालेदार हो रहा था,

लड़के ने एक बड़ी अच्छी बात कही, आप लोगो का यही ड्रामा है! हर साल एक बच्चा जनना, और उसी के ऊपर कूदना। क्या आपने हमसे पूछकर कर पैदा किये थे बच्चे? अजीब बात है…. बच्चे पैदा तुम करो, सीट हम छोड़े? आपको बच्चो की इतनी ही फिक्र थी तो कैब करती या खाली बस में घुसती। अब तुम्हे फ्री सफर भी चाहिए….सीट भी चाहिये और दादागिरी भी चाहिए …. जाइए, मैं नही दे रहा सीट!

अब बस का कंडक्टर भी बोला कि दे दे भाई सीट,
लड़का बोला कि मैं किसी महिला रिज़र्व सीट पर नही हूँ, भाई तू अपने टिकट काट।

कंडक्टर शायद अरबी भेड़ था, कहने लगा लेडी है, लगता है पेट से भी है ..
तो मै क्या करूं…युवक ने कहा

कंडक्टर चुप होकर बस के बाहर देखने लगा।

इतने में मुझे ये तो यकीन हो गया लड़का जागरूक है…उसको बातों में धुनने को तैयार है,

वो बुर्के वाली अक्कड से युवक के पास वाली सीट के पास ही खड़ी रही !

लड़का भी बुदबुदाता रहा कि तुम बच्चे पैदा करते रहो, काफ़िर सीट देंगे? फिर तुम्हे अपना घर देंगे? और फिर पैदा करोगे वही कश्मीर वाले हालात?

उस महिला को आगे बैठै एक इन्सानियत के कर्मचारी ने अपनी सीट ऑफर कर दी,
वो बैठ धम्म से बैठ गयी …उसने दो शिशु शावक गोद मे बिठा दिए, परंतु दो शावकों को खडे रहना पडा… अब वो बगल वाले से अपने शावकों के लिए सीट मांगने लगी।

लड़के ने जोर से उस सेक्युलर को ताना मारा की भाई साहब घर भी दे दो न अपना, ये बच्चे वहां अच्छा जीवन जियेंगे।

इस दौरान कंडक्टर चिल्लाया की भाई जिसे अफ्सरा बॉर्डर उतरना हो उतर जाओ,

बात वहीं रुक गयी और लड़का शांत हो गया और वो शाईनबाग की शेरनी सीमापुरी उतर गई।

मात्र 10 मिनट के सफर के लिये उस बुर्के वाली ने ये सब नाटक किया,

ये घटना है, दिल्ली लोकल बस की। जो रूट no 33 नोएडा सेक्टर 37 से भजनपुरा की तरफ जाती है। रोज की तरह लोग इसमे घुसते है, और अधिका़श अपने आफिस और दूसरे काम के लिए निकलते है।
मैं महिला सीट पर बैठी ये सब नाटक देख रही थी। (दिल्ली एनसीआर की बसों में एक लाइन महिलाओ के लिए आरक्षित है)

मैं मन्द मन्द मुसकराई और सोचने लगी कि जागना जरूरी है, अरे ढेर सारे बच्चे पैदा वो करेंगे और survive हमें करना पड़ रहा है,
वर्षों से यही चल आ रहा है,
लेकिन ये अब आगे नही चलना चाहिए ,
शायद ही नहीं, बल्कि यकीनन अब लोगों में जागरूकता आ रही है जो अब हर शहर गांव व दूरदराज तक पहुँचनी चाहिए……

एक महिला पत्रकार की पोस्ट से 🙏

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