त्रिदीब रमण
‘सिर्फ पंखों से कहां मुकम्मल होती है कोई उड़ान,
इसमें मिलाओ रंग हौसलों का और थोड़ा आसमान’
सियासत को तो यूं भी पंख फैला कर उड़ने की आदत होती है, ऐसे में जब बात हवाई अड्डों की हो तो सियासतदां भी आसमां से चुगली करने लग जाते हैं। एक बिचारे पटना एयरपोर्ट पर आफत आन पड़ी है, इस एयरपोर्ट की लोकेशन ही कुछ ऐसी है कि इसका और विस्तार मुमकिन नहीं, पटना हवाई अड्डे का रनवे भले ही 2.286 मीटर लंबा हो पर यहां जहाज उतारने वाले पायलट इसका मात्र 1.954 मीटर ही इस्तेमाल कर पाते हैं। सो, उन्हें यहां बेहद मुश्किल लैंडिंग करानी पड़ती है क्योंकि लैंडिंग करने वाले जहाज की राह में पटना विधानसभा भवन का क्लॉक टॉवर और दूसरी स्टेशन फूलवारी शरीफ का रेलवे स्टेशन आड़े आ जाता है, साथ ही पटना एयरपोर्ट पर विमान से पक्षी टकराने की आशंका भी सदैव बनी रहती है। डीजीसीए की हमेशा यहां फ्लाइट उतारने वाले पायलटों पर नज़र होती हैं, पटना से सटे बिहटा एयरपोर्ट के पास भी 2500 मीटर का रनवे है, पर यह भी ‘वाइड बॉडी एयरक्राफ्ट’ के उतरने के लिए नाकाफी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहटा एयरपोर्ट के लिए 126.41 एकड़ जमीन अधिग्रहण को मंजूरी प्रदान की थी, और अब एयरपोर्ट के टर्मिनल बिल्डिंग के लिए एयरपोर्ट ऑथिरिटी को 108 एकड़ भूमि ’फ्री ऑफ कॉस्ट’ दी गई है। यही वजह है कि पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री रूढ़ी इसे अपने संसदीय क्षेत्र सारण के अंतर्गत आने वाले सोनपुर ले जाना चाहते हैं। वहीं नीतीश कुमार चाहते हैं कि ’पटना के विकल्प के तौर पर नालंदा में एक बड़ा एयरपोर्ट बने जहां ’वाइड बॉडी एयरक्राप्ट’ (बड़े जहाज) भी उतर सकें।’ वहीं पटना से लगे बिहटा एयरपोर्ट का काम चल रहा है, वैसे भी नालंदा में एयरपोर्ट के लिए जमीन अधिग्रहण में ढेरों समस्याएं आ रही हैं। पर नीतीश कुमार के लिए एक अच्छी खबर यह है कि कभी उनके बेहद भरोसेमंद अधिकारी रहे चंचल कुमार नागरिक उड्डयन मंत्रालय में सचिव पद का जिम्मा संभालने जा रहे हैं। चंचल कुमार बिहार कैडर के 1992 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, जो आईआईटी कानपुर से पढ़े लिखे हैं। जब नीतीश केंद्र में मंत्री थे तब भी चंचल कुमार उनके साथ ही थे।
क्यों सुलग रहा है मणिपुर?
मणिपुर में राज्य हाई कोर्ट के 3 मई के उस फैसले के बाद वहां बवाल मचा हुआ है, जिस आदेश में राज्य की गैर जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी। मैतेई समुदाय का राज्य की कुल आबादी में 64 फीसदी की हिस्सेदारी है, राज्य के 60 में से 40 विधायक मैतई समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, मैतेई समुदाय का एक बड़ा हिस्सा हिंदू धर्मावलंबी है। जबकि राज्य की अन्य दोनों प्रमुख जनजातियां यानी कुकी और नगा ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री नोंगथोंबन बीरेन सिंह भी इसी बहुसंख्यक मैतेई जाति से आते हैं। मैतेई आम तौर पर घाटी में बसे हुए हैं और कुकी पहाड़ों पर। कुकी समुदाय बड़े पैमाने पर अफीम की खेती से भी जुड़े हैं। मैतेई के पास राज्य की केवल 8 फीसदी भूमि है और मौजूदा कानून के मुताबिक उन्हें पहाड़ों पर जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है, पर एक बार अगर वे जनजाति में शुमार हो जाते हैं तो वे भी आसानी से पहाड़ों पर जमीन खरीद पाएंगे। बदलते दौर के साथ मणिपुर ड्रग्स की स्मगलिंग के एक बड़े अड्डे के रूप में विकसित होता गया है, सूत्रों का दावा है कि यहां से ड्रग्स देशभर में सप्लाई होती है। मणिपुर पिछले दो महीनों से सुलग रहा है, ऐसे में यहां से बड़े पैमाने पर कुकी जनजाति का पलायन हुआ है, या तो वे पहाड़ों पर चले गए हैं, या फिर असम जैसे राज्यों में शिफ्ट हो गए हैं। गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बाद भी जब यहां के हालात नहीं सुधरे तो केंद्र सरकार ने अब यहां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल को सक्रिय कर दिया है, केंद्र को उम्मीद है कि डोवल यहां के हालात कुछ दिनों में सामान्य कर देने की क्षमता रखते हैं।
सचिन पायलट कैसे माने?
क्या कांग्रेस ने अपने राजस्थान का झगड़ा वाकई सुलझा लिया है? क्या राहुल के समझाने पर सचिन पायलट ने अपने हथियार डाल दिए हैं? अशोक गहलोत भले ही इस मीटिंग में अपने पैर की चोट का हवाला देकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए हों पर उनकी गैर मौजूदगी में राहुल का रूख पायलट के लिए किंचित बहुत सकारात्मक था। दिल्ली की इस मीटिंग में राहुल के अलावा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर रंधावा, गोविंद सिंह डोटासरा और वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अशोक गहलोत जुड़े थे। कहते हैं इस बैठक में दो महत्वपूर्ण फैसला लिए गए, एक तो पार्टी किसी को भी सीएम फेस बनाए बगैर मैदान में उतरेगी और पार्टी एक बार फिर से राजस्थान में विजयी रहती है तो भी गहलोत को दिल्ली आकर पार्टी के राष्ट्रीय संगठन में काम करना होगा। कहते हैं बैठक समाप्त होने के बाद सचिन ने अपनी ओर से 60 प्रत्याशियों की एक सूची भी खड़गे को सौंपी है, जिन्हें वे इस बार के चुनाव में टिकट दिलवाना चाहते हैं, सचिन को आश्वासन मिला है कि पार्टी उनके दिए गए नामों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी।
चाचा-भतीजा में कौन है सवा सेर?
महाराष्ट्र में इन दिनों चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार के बीच तलवारें कुछ इस कदर तनी हैं कि दोनों में से कोई भी इसे वापिस म्यान में रखने को राजी नहीं। इस द्वंद युद्ध की पटकथा मुंबई में उस वक्त लिख दी गई थी जब एनसीपी के 25वें स्थापना दिवस को लेकर शरद पवार के घर एक मीटिंग चल रही थी। दरअसल इस विवाद की शुरूआत तब हो गई थी जब भोपाल की एक जनसभा में पीएम मोदी ने बड़े पवार का नाम लेकर 70 हजार करोड़ के घोटाले का जिक्र अपने भाषण में किया था। पीएम का यह भाषण एनसीपी के शीर्ष नेताओं की नींद उड़ाने के लिए काफी था। इस 25वें स्थापना दिवस के मौके पर प्रफुल्ल पटेल ने महाराष्ट्र के अखबारों में एक पूरे पेज का विज्ञापन देकर उसमें शरद पवार के सानिध्य और मार्गदर्शन का बखान किया था। कहते हैं स्थापना दिवस की मीटिंग के ही रोज अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल ने शरद पवार के समक्ष अपना दुखड़ा रोया और कहा कि हमारी पार्टी के तीन बड़े नेता अनिल देशमुख, छगन भुजबल और नवाब मलिक पहले ही जेल जा चुके हैं, अब जेल जाने की हमारी बारी हो सकती है। फिर तय हुआ कि अगर एकनाथ शिंदे अपने अन्य 16 विधायकों के साथ अयोग्य घोषित किए जाते हैं तो बड़ी पार्टी होने के नाते सीएम पद पर एनसीपी का दावा हो सकता है और वह राज्य में भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना सकती है। कहते हैं इस मीटिंग में यह भी तय हुआ कि लोकसभा की महाराष्ट्र की 48 सीटों पर भाजपा व एनसीपी का दावा आधा-आधा होगा। इस फार्मूले में सुप्रिया सुले को केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बनाने की बात भी शामिल थी। सूत्र यह भी बताते हैं कि जब अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली तो 11 विधायक बड़े पवार से मिलने आए तो शरद ने उन्हें अजित के साथ जाने को कहा। सो, राजनैतिक पर्यवेक्षक हैरत में है कि ’चाचा-भतीजा की यह लड़ाई वाकई असली है या दोनों स्वांग रच रहे हैं।’
खड़गे कब करेंगे संगठन में फेरबदल
मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस पार्टी का कार्यभार संभाले 8 महीनों से ज्यादा का वक्त होने को आया है पर अभी तक वे पार्टी संगठन में कोई माकूल फेरबदल नहीं कर पाए हैं। सबसे अहम सवाल तो यह कि कांग्रेस में फेरबदल अहम कार्यनिर्धारक समिति सीडब्ल्यूसी यानी कांग्रेस वर्किंग कमेटी में फेरबदल क्या वे 2024 के आम चुनाव से पहले कर पाएंगे? कहते हैं सीडब्ल्यूसी में यथास्थिति बनाए रखने में गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले उन नेताओं की बड़ी भूमिका है जो 1998 के बाद से ही यानी सोनिया गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से ही इसमें कुंडली मारे बैठे हैं। खड़गे पुराने नेताओं को हटाने की बला अपने सिर नहीं लेना चाहते, आज तक वे राज्यसभा में भी अपनी जगह पार्टी का कोई नेता नहीं बना पाए हैं, वहां भी पार्टी अपने डिप्टी लीडर प्रमोद तिवारी से ही काम चला रही है। लोकसभा में भी अधीर रंजन चौधरी एक साथ दो-दो पदों पर बने हुए हैं, वे लोकसभा में नेता विपक्ष हैं और बंगाल कांग्रेस के मुखिया भी।
…और अंत में
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का अंदरूनी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। अभी पिछले दिनों पार्टी ने बाबा यानी टीएस सिंहदेव को राज्य का उप मुख्यमंत्री बना उनकी नाराज़गी दूर करने का प्रयास किया है। ऐसे में राज्य के एक पुराने ओबीसी नेता ताम्रध्वज साहू ने अपनी नाराज़गी सार्वजनिक कर पार्टी की पेशानियों पर बल ला दिए हैं। अब साहू भी बाबा के कदम पर चल कर राज्य के डिप्टी सीएम बनना चाहते हैं।
हाईकमान ने साहू से जब बात की तो कहते हैं साहू ने अपने कुछ पसंदीदा लोगों की एक लिस्ट उन्हें थमा दी है जिन्हें वे इस विधानसभा चुनाव में टिकट दिलवाना चाहते हैं। पार्टी शीर्ष ने उन्हें भरोसा दिया है कि उनके द्वारा सुझाए गए नामों पर भी गंभीरता से विचार होगा। (एनटीआई-gossipguru.in)