गुस्ताखी माफ़ हरियाणा।
पवन कुमार बंसल।
गुरुग्राम नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर विजयपाल मुअत्तल – आर टी टी आई के तहत सूचना देने में लापरवाही का आरोप।
पर्दे के पीछे की असलियत कुछ और है -‘गुस्ताखी माफ़ हरियाणा ‘ की जाँच रिपोर्ट।
आज के अखबारों में उकत खबर पढ़ी तो खोजी पत्रकार के नाते कान अल्सेशियन कुते की तरह खड़े हो गए। भाई, आर टी आई के तहत मांगी जानकारी नहीं देने पर मुअत्तल की बात समझ नहीं आई। उसकी तो सूचना आयोग के पास अपील होती है और फिर हाई कोर्ट में। सरकार का तो यह मामला ही नहीं है।
अगर सरकार सूचना के अधिकार कानून के प्रति इतनी ही सवेंदशील है तो हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के अफसर को मुअत्तल करे क्योंकि उन्होंने मेरे द्वारा मांगी जानकारी नहीं दी।
अब जो जाँच की तो चौकाने वाले तत्थ्य सामने आये। सूचना नहीं देना तो बहाना था, असलियत तो आने वाले असेंबली चुनाव में कोसली हलके की राजनीती से जुड़ी है। कोसली से भाजपा टिकट पर चीफ मिनिस्टर ऑफिस का एक अधिकारी भाजपा टिकट पर चुनावी दंगल में उतरने के लिए लंगोट कस रहा है।
इधर विजय पल के परिवार का भी वहा असर है। बस कहानी यही से शुरू हुई।
कोर्ट से न केवल बहाल होगा बल्कि सरकार के खिलाफ स्ट्रिक्टचर भी पास हो सकते है क्योंकि सस्पेंशन के कारन में कोई दम नहीं है।
किसी शेखर ने सूचना के अधिकार के तहत प्रथम सूचना अधिकारी से जानकरी मांगी जिसके जवाब से वो संतुस्ट नहीं हुआ और विजय पाल यादव के पास अपीलेंट ऑथ्रोटी के नाते अपील की और उन्होंने जनाकारी देने के निर्देश दे दिए। शेखर ने लोकल बॉडीज के निदेशक को भी शिकायत की ओर उन्होंने वो भी नगर निगम गुरग्राम को मार्क कर दी। पत्रकारों को कहकर खबर लगवाई गयी की सूचना देने में लापरवाही बरतने के आरोप में मुअत्तल। यह है मनोहर सरकार का गुड गवर्नेंस।
लेखक ने २००९ में ‘खोजी पत्रकारित्रा क्यों और कैसे” किताब लिखी थी जिसमे खोजी पत्रकारिता के नुक्शे बताये गए है?किताब की समीक्षा करते हुए ‘दैनिक ट्रिब्यून अख़बार ने लिखा था की खोजी पत्रकारिता की जो जानकारी सीधी और स्पॉट शैली में इस किताब में सिखाई गयी है वो किसी भी पत्रकारिता की यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़ाई जाती।