समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 6दिसंबर। दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि असामान्य भ्रूण वाले मामलों में गर्भावस्था के बारे में अंतिम फैसला मां पर ही छोड़ना सही विकल्प है। न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि ऐसे मामलों में मेडिकल बोर्ड को गुणवत्तापूर्ण रिपोर्ट देनी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने 26 वर्ष की विवाहित महिला की याचिका पर यह व्यवस्था दी। इस महिला ने मस्तिष्क में गड़बड़ से पीडि़त 33 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने के लिए याचिका दायर की है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि मेडिकल बोर्ड को महिला की शारीरिक और मानसिक दशा का आकलन करने के लिए अनुकूल ढंग से बातचीत करनी चाहिए। बोर्ड की राय में यह संक्षिप्त उल्लेख होना चाहिए कि गर्भावस्था जारी रखने या गर्भपात कराने में महिला को क्या जोखिम हैं। यह अधिकार महिला को विकल्प उपलब्ध कराता है कि वह अपने पेट में पल रहे भ्रूण को जन्म देना चाहती है या उसे गिराना चाहती है।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, यह अधिकार एक महिला को अंतिम विकल्प देता है कि वह उस बच्चे को जन्म दे या नहीं, जिसे उसने गर्भ धारण किया है। भारत उन देशों में से है जो अपने कानून में महिला की पसंद को मान्यता देते हैं। अदालत ने कहा कि भ्रूण की असामान्यताओं से जुड़े मामले उस गंभीर दुविधा को उजागर करते हैं, जिससे महिलाएं गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्णय लेते समय गुजरती हैं।
अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तुरंत लोक नायक जय प्रकाश नारायण (LNJP) अस्पताल, या गुरु तेग बहादुर अस्पताल या अपनी पसंद के किसी अस्पताल में गर्भपात की अनुमति दी जाती है।