रामनवमी पर “मुस्लिम एरिया” में शोभायात्रा “उकसाना है!”, परन्तु हिन्दू गरबा में “मुस्लिम” आदमियों को आना धर्मनिरपेक्षता है: लिब्रल्स की यह कैसी थेथरई है?

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भारत में हर हिन्दू पर्व को जानबूझकर कथित रूप से धर्मनिरपेक्षता के झुनझुने में कैद करने का कुप्रयास किया गया है। यह देखना बहुत ही दुखद है कि हर पर्व पर हिन्दू मुस्लिम होने लगता है। मजे की बात यह है कि यह लिब्रल्स का अजीब तर्क है कि वह हिन्दुओं के पर्वों तक को सेक्युलर बनाना चाहते हैं, मगर मुस्लिमों के क्षेत्र ऐसा बनाना चाहते हैं, जहाँ से हिन्दुओं की धार्मिक शोभायात्रा नहीं निकाल सकते हैं, क्योंकि उनकी भावनाएं आहत हो जाती हैं।

हाल ही में हमने रामनवमी पर पूरे भारत में कई स्थानों पर शोभायात्राओ पर पथराव एवं उसके बाद आगजनी की घटनाएं देखी थीं, और जिसके बचाव में लिब्रल्स का एक बड़ा वर्ग इस थेथरई पर उतर आया था कि आखिर मुस्लिम बहुल इलाकों में जाना ही क्यों था? क्यों मुस्लिम बहुल इलाकों को “संवेदनशील” क्षेत्र बना दिया गया है? और उन क्षेत्रों में ऐसा क्या होता है कि हिन्दू अपने आराध्यों के लिए शोभायात्रा नहीं निकाल सकता? क्यों मार्ग बदलने की जिद्द होती है?

यह एक प्रश्न बार बार लिबरल करते हैं कि हिन्दू धर्म दरअसल धर्म से अधिक संस्कृति है, और उसमें हर कोई भाग ले सकता है तो फिर रामनवमी पर ऐसा क्या हुआ था कि “सम्वेदनशील” या मुस्लिम इलाकों में “सांस्कृतिक” शोभायात्राओं पर हमला हो गया था?

जबकि यह जांच में निकलकर आया था कि इन “संवेदनशील” इलाकों में जो कुछ भी हुआ था, उसके लिए तैयारी पहले से की थी

इस विषय पर काफी बातें हुई थीं और “जय श्री राम” के नारे को जैसे भड़काऊ कहकर यह सही प्रमाणित करने का प्रयास किया गया था कि “मुस्लिम समुदाय” को उकसाया गया! वहीं हिन्दू बहुल भारत में मंदिरों के सामने से हरे झंडे में नारे लगाते हुए निकला जा सकता है, तब वह किसी को नहीं उकसाते हैं?

यह सब बातें क्यों आज आवश्यक हैं करना, क्योंकि लिब्रल्स को आज यह समस्या हो रही है कि गरबा में मुस्लिमों को क्यों नहीं आने दिया जा रहा है? यह बहुत हास्यास्पद है कि एक ओर तो लिबरल इस धर्मनिरपेक्ष भारत में मुस्लिम इलाके बनाकर यह निर्धारित करते हैं कि हिन्दू धर्म की शोभायात्रा नहीं निकल सकती है? यहाँ तक कि कांवड़ भी नहीं ला सकते हैं, और दुर्गापूजा के विसर्जन के मार्ग भी बदल दिए जाते हैं, गणेश चतुर्थी पर भी हमले होते हैं,

फिर ऐसा क्या है कि गरबा पर मुस्लिम युवकों का आना आवश्यक है? जबकि गरबा पूरी तरह से हिन्दुओं का पर्व है, जिसमें कलश स्थापना के साथ माता की आराधना की जाती है

हम यह नहीं कह रहे कि सभी मुस्लिम युवक गलत मंशा से ही गरबा में आते हैं, परन्तु जब मुनव्वर फारुकी जैसे हिन्दू घृणा करने वाले लोग गरबा में जाते हैं, तो हिन्दुओं में क्रोध फूटता है क्योंकि वह प्रभु श्री राम एवं माता सीता पर अश्लील टिप्पणी करने के साथ ही हिन्दुओं के साथ हुए गोधरा काण्ड पर हंस चुका है। उसकी वह हंसी हर हिन्दू के दिल में फांस बनकर चुभनी चाहिए, परन्तु फिर भी एक बड़ा हिन्नुओं का वर्ग है, जिसे अंतर नहीं पड़ता है! जिन्हें पड़ता है, वह प्रश्न करते हैं।

ऐसे ही एजेंडा पत्रकार आरफा खानम शेरवानी, जो खुले आम यह कहते हुए पाई गयी थीं कि मुस्लिमों को रणनीति बदलने की आवश्यकता है और वह हिन्दुओं से अपनी घृणा को शायद ही छिपाने का प्रयास करती हों, जब वह लोग गरबे में जाकर मुस्लिमों को गरबा खेलने के लिए प्रोत्साहित करने की बात करती हैं, तो दुःख होता है, क्योंकि ऐसे लोग उन मुस्लिमों के पक्ष में नहीं आते हैं, जिन्हें हिन्दू आराध्यों की पूजा करने को लेकर इस्लामी कट्टरपंथी धमकाते हैं,

आरफा खानम गरबा खेलती हुई भी पाई गयी थीं।

जब हिन्दुओं के गरबा आयोजन में मुस्लिम युवकों के आने की या फिर उनकी प्रतिभागिता की बात होती है, तो ऐसे में हाल ही में गणेश चतुर्थी पर बंगलुरु में वक्फ बोर्ड के उस कदम की ओर ध्यान देना चाहिए, जिसके कारण गणेश पूजा नहीं हो पाई थी। वक्फ बोर्ड जब हिन्दुओं को उच्चतम न्यायालय में इस कारण घसीट रहा था कि उस मैदान में पूजा नहीं हो सकती, तो क्या एक भी मुस्लिम युवक की आवाज आई थी कि बोर्ड यह गलत कर रहा है?

इसी बात को यूजर भी कह रहे हैं

यह भी बहुत आवश्यक है कि जब भी ऐसी ऐसी कोई घटना होती है, जिसमें मुस्लिम कट्टरपंथी हिन्दुओं के प्रति अपराध करते हुए पाए जाते हैं, तो ऐसे में कितनी मुस्लिम आवाजें हैं, जो हिन्दुओं के पक्ष में आती हैं? जब मुस्लिम सब्जीवाला पेशाब से सब्जी धोता हुआ पाया जाता है, या फिर रोटी बनाते हुए थूकते हुए लोग दिखाई देते हैं, तो ऐसे में मुस्लिम ‘उदार पक्ष’ से भी यह आवाजें नहीं आती हैं, कि वह लोग गलत कर रहे हैं?

विश्वास बनाए रखने के लिए गरबे में जाने से कहीं अधिक आवश्यक है कि यह बात की जाए कि आखिर हिन्दू समुदाय के साथ इस प्रकार ही हरकतें कब तक होती रहेंगी और कब तक वह अपनी सुरक्षा के लिए मात्र प्रशासन पर निर्भर होगा और वह कुछ अपराध नहीं कर रहा है। हर समुदाय को यह अधिकार है कि वह अपने धार्मिक विश्वास की रक्षा के लिए, कदम उठा सके।

हिन्दू धर्म के पर्वों को ही धर्मनिरपेक्ष क्यों बनाया जा रहा है और यदि गरबा सांस्कृतिक है तो वह कही ही आयोजित किया जा सकता है, वह लोग अपने लोगों में आयोजित करके खेल लें! परन्तु ऐसा होता नहीं है,

वहीं एएनआई ने तीन ऐसे मुस्लिमों को हिरासत में लिया है, जो हिन्दुओं पर हमले की योजना बना रहे थे! अब ऐसे में आम हिन्दू को कैसे पता चलेगा कि कौन किस मंतव्य से उनके साथ घुलमिल रहा है?

आज आवश्यकता इस बात की है ही नहीं कि हिन्दुओं के राम, हिन्दुओं के गरबा आदि को धर्मनिरपेक्ष बनाया जाए, बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि जिन घटनाओं के चलते हिन्दू समुदाय का विश्वास हिल गया है, और जिन बातों के चलते वह अब अविश्वास की दृष्टि से देखने लगा है, उन पर उदार मुस्लिम वर्ग से ही आवाज आए कि वह घटनाएं गलत हैं और हिन्दू समुदाय के साथ ऐसी हरकतें न हों!

झारखंड की अंकिता को जिस प्रकार शाहरुख़ ने जलाया था, और फिर अंकिता के मरने के बाद जिस प्रकार एक विशेष वर्ग ने उसकी तस्वीरें साझा कीं, उस समय भी आवश्यकता थी विरोध की, परन्तु वह नहीं किया गया।

जब भारतीय जनता पार्टी की नेता रूबी खान को धमकियां मिल रही थीं, क्योंकि वह गणेश जी को घर लाई थीं, तब उदार स्वर उठने चाहिए थे, जो दुर्भाग्य से नहीं उठे

ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं। सेलेब्रिटीज में सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान तो आए दिन ऐसी कट्टरता का शिकार होती रहती है क्योंकि वह मंदिर जाकर तस्वीरें साझा करती हैं। अत: यह कतई नहीं कहा जा सकता है कि हिन्दू धर्म में असहिष्णुता है, परन्तु अब वह सहमा हुआ है, खुद पर लगातार होते हुए कई प्रकार के प्रहारों से, हिन्दू फोबिया से!

और यह मुस्लिम समुदाय पर ही निर्भर करता है कि इस अविश्वास की खाई को कैसे भरता है क्योंकि कर्नाटक में हिजाब के मामले में हिन्दू युवक की हत्या की जा चुकी है और नागरिकता संशोधन अधिनिंयम के विरोध में, जो इस्लामी मुल्को में पीड़ित हिन्दुओं, जैन, बौद्ध, एवं सिख समुदाय की नागरिकता के लिए था, हिन्दुओं के विरुद्ध नारों को हिन्दू समाज ने मात्र देखा ही नहीं है, बल्कि दंगों के रूप में उस घृणा को भोगा भी है।

इसलिए हिन्दू पर्वों को धर्मनिरपेक्षता की ओर धकेलने से बेहतर है आरफा खानम जैसे लोग अपने गिरेबान में झाँक कर देखें और भारत का कथित लिबरल वर्ग इस बात का उत्तर खोजे कि यदि उनके अनुसार मुस्लिम इलाके हो सकते हैं, तो हिन्दू पर्व धर्म निरपेक्ष कैसे हो सकते हैं?

 

साभार- https://hindupost.in/

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