हिंदी को अगर लोकभोग्य,देश और दुनिया में स्वीकृत बनाना है तो हिंदी के शब्दकोश को वृह्द बनाना पड़ेगा- अमित शाह

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समग्र समाचार सेवा
गुजरात, 14सितंबर। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज गुजरात के सूरत में हिंदी दिवस समारोह-2022 एवं द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को संबोधित किया। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र पटेल, केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्री अजय कुमार मिश्रा, केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्री निशिथ प्रमाणिक, रेल राज्यमंत्री श्रीमती दर्शना जरदोश, शिक्षा राज्यमंत्री श्री राजकुमार रंजन सिंह और राजभाषा विभाग की सचिव सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने आह्वान किया है कि अमृत काल में देशवासियों को संकल्प लेना चाहिए कि आने वाले 25 सालों में हमारा देश किसी भी भाषाई लघुताग्रंथि से मुक्त होकर स्वभाषा का विकास करेगा और देश को दुनिया में सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाएगा। उन्होने कहा कि हमारी राजभाषा और स्थानीय भाषाएं विश्व की सबसे समृद्ध भाषाओं में शामिल हैं और जब तक हम इस बात का संकल्प नहीं करते कि हमारा शासन,प्रशासन,ज्ञान, विज्ञान और अनुसंधान हमारी भाषाओं और राजभाषा में हो तब तक हम इस देश की क्षमताओं का उपयोग नहीं कर सकते।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि सूरत वीर नर्मद की भूमि है और शायद उन्होंने ही देश में सबसे पहले अपनी भाषाओं के महत्व को उजागर किया था। वीर नर्मद ने ही सबसे पहले गुजराती लोगों को गर्वी गुजरात का स्वप्न दिया और सबसे पहले अंग्रेज़ों से कहा था कि इस देश का शासन और व्यवहार हिन्दी में चलना चाहिए। शाह ने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि राजभाषा हिन्दी के बिना ये राष्ट्र गूंगा है। हमारी राजभाषा के गौरव को महात्मा गांधी ने एक ही वाक्य से पूरे विश्व के सामने रखने का काम किया। उन्होंने कहा कि हिन्दी हमारे मन, राष्ट्रप्रेम और जन जन की भाषा है और हमें इसे आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से देश में स्वभाषा में शिक्षा का बीज बोया है और देश जब आजादी की शताब्दी मनाएगा तब यह बीज वटवृक्ष बनकर देश की सभी भाषाओं को पल्लवित कर भारत को भाषा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का काम करेगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सबसे ज़्यादा ज़ोर इस बात पर दिया गया है कि प्राथमिक और उससे आगे की शिक्षा स्वभाषा में और अनुसंधान, कोर्ट, मेडिकल, विज्ञान, तकनीक और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम स्वभाषा में रुपांतरित हों।

अमित शाह ने कहा कि स्थानीय भाषाएं और हिन्दी हमारी सांस्कृतिक धाराप्रवाह का प्राण है। हमारी संस्कृति, इतिहास और अनेक पीढ़ियों द्वारा किए गए साहित्य सृजन की आत्मा को समझने के लिए राजभाषा को सीखना ही होगा। उन्होने कहा कि राजभाषा और स्थानीय भाषाओं द्वारा मिलकर पूरे देश में से भाषाई लघुता की भावना को उखाड़कर फेंकने का समय आ गया है। श्री शाह ने कहा कि लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी की स्वराज की कल्पना में सिर्फ़ शासन में परिवर्तन नहीं था बल्कि उन्होंने स्वभाषा, स्वधर्म और स्वसंस्कृति के लिए भी आवाज़ उठाई थी। उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में देश जिस रास्ते पर चल रहा है उस पर चलकर हम लोकमान्य तिलक के स्वराज की कल्पना को साकार करेंगे।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने देश के युवाओं से कहा कि भाषा क्षमता की परिचायक नहीं है बल्कि भाषा अभिव्यक्ति है। आपकी क्षमता का परिचय किसी भाषा का मोहताज नहीं है और देश के युवाओं को भाषा की इस लघुता ग्रंथि से निकलकर अपनी स्वभाषा को स्वीकार कर इसे आगे ले जाने का काम करना चाहिए। जब तक देश का युवा अपनी क्षमताओं के आधार पर अपनी भाषा में मौलिक चिंतन की अभिव्यक्ति नहीं करेगा, वो कभी भी अपनी क्षमताओं को पूर्णतया समाज के सामने नहीं रख सकता क्योंकि मौलिक चिंतन की अभिव्यक्ति स्वभाषा से अच्छी किसी भी अन्य भाषा में नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने हर वैश्विक मंच पर गौरव के साथ हिंदी में पूरे विश्व को संबोधित किया है और वैश्विक मंच पर सबसे ज़्यादा अगर किसी को सुना गया है तो हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को सुना गया है। मोदी जी ने अपनी भाषा में अपनी बात रखी,उनकी अभिव्यक्ति सटीक होती है और मन की गहराइयों से आती है इसलिए इसकी स्वीकृति भी ज्यादा है।

अमित शाह ने अभिभावकों का आह्वान किया कि वे अपने घर में बच्चों से अपनी भाषा में बातचीत करें। एक बार बच्चों को उनके सुनहरे भविष्य के लिए अपनी भाषा जरूर सिखाएँ क्योंकि जब तक बच्चा स्वभाषा नहीं सीखता है तब तक वह देश की संस्कृति से नहीं जुड़ सकता, देश के इतिहास को नहीं समझ सकता और देश से नहीं जुड़ सकता। श्री शाह ने कहा कि आज यहां एक हिंदी से हिंदी वृहद शब्दकोश ‘हिंदी शब्द सिंधु’के पहले संस्करण का लोकार्पण किया गया है। उन्होंने कहा कि हिंदी को अगर लोकभोग्य, देश और दुनिया में स्वीकृत बनाना है तो हिंदी के शब्दकोश को वृह्द बनाना पड़ेगा। कोई भी भाषा दूसरी भाषा के शब्द लेने से लघु नहीं होती बल्कि वह गुरु और बड़ी होती है और हमें भी हिंदी को लचीला व स्वीकृत बनाना पड़ेगा और अनेक भाषाओं से जो शब्द इसमें लिए गए हैं उन्हें हिंदी में भी स्वीकारना होगा।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने स्थानीय भाषाओं के शब्दकोश बनाने वालों से निवेदन करते हुए कहा कि अगर हम चाहते हैं कि अदालत और कानून की भाषा गुजराती, मराठी, बांग्ला या कोई अन्य स्थानीय भाषा हो तो इनके कुछ शब्दों को स्वीकार कर हमें इसे वृह्द बनाना पड़ेगा। इस शब्दकोश को हमने पूर्णतया डिजिटल और खोजपरक बनाने का काम किया है। जनसंचार, मेडिकल साइंस, खेलकूद, अंतरिक्ष विज्ञान, भौतिकी, रसायन और गणित के विषय में बहुत सारी शब्दावली को इसमें समाहित किया गया है। उन्होंने कहा कि इसरो ने अपनी पूरी यशगाथा को काव्यगाथा के रूप में राजभाषा में प्रकाशित कर एक बहुत बड़ा काम किया है। यह काव्यगाथा इसरो की उपलब्धियों को जन जन तक पहुंचाने का जरिया बनने वाली है। उन्होने कहा कि आज कंठस्थ 2.0 का भी विमोचन हुआ है जो आने वाले दिनों में हिंदी बोलना सिखाने का एक बहुत बड़ा साधन बनेगा।

अमित शाह ने कहा कि हमारा देश भाषाई रूप से बहुत समृद्ध है। यहां अनेक बोलियां और भाषाएं हैं तथा हर भाषा अपने आप में समृद्ध है और हमारे देश की बहुत बड़ी ताकत है। हमारी संस्कृति, परंपरा और साहित्य को इन भाषाओं ने संभाल कर रखा है और इन भाषाओं के माध्यम से हमारे देश के लोगों को राष्ट्र के साथ जोड़ने का काम किया है। उन्होने कहा कि जो लोग ये अपप्रचार करते है कि हिंदी स्थानीय भाषाओं की प्रतिस्पर्धी भाषा है, मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि हिंदी प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है। हिंदी के समृद्ध होने से इस देश की सारी भाषाएं समृद्ध होंगी और देश की सारी भाषाओं के समृद्ध होने से ही हिंदी समृद्ध होगी, सभी लोगों को इस बात को स्वीकार करना चाहिए और समझना चाहिए। जब तक हम भाषाओं के सहअस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं तब तक अपनी भाषा में अपना देश चले, हम इसको सिद्ध नहीं कर सकते हैं। हर भाषा, बोली को जिंदा रखना और उन्हे समृद्ध करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। अगर हमारे आजादी के आंदोलन में नेताओं ने राजभाषा और स्वभाषा का उपयोग नहीं किया होता तो आजादी के आंदोलन का इतना विस्तार कभी न होता।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे नेताओं का मत था कि स्वदेशी और स्वभाषा के बिना स्वराज की कोई सार्थकता नहीं है। विनोबा भावे और काका साहेब कालेलकर जैसे लोगों ने अपना सारा जीवन हिन्दी और स्वभाषाओं पर न्योछावर कर दिया। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने पहले सार्वजनिक गणेश उत्सव में कहा था कि भाषा की समृद्धि स्वतंत्रता का बीज है और हमें अपनी भाषाओं में बोलने के लिए डटकर आगे बढ़ना चाहिए। श्री शाह ने कहा कि हिन्दी हमेशा समावेशी भाषा रही है और इसीलिए चाहे सुभद्रा कुमारी चौहान की झाँसी की रानी कविता हो या माखनलाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा उनका मलयालम, असमिया और तमिल सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उन्होंने कहा कि आज़ादी के आंदोलन का इतिहास देखने से पता चलता है कि मुंशी प्रेमचंद के कहानी संग्रह सोज़े वतन समेत अंग्रेजों को हमारी राजभाषा और स्वभाषाओं की कई कविताओं और साहित्य पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था। यह बताता है कि राजभाषा और स्वभाषाओं ने आज़ादी के आंदोलन को कितना अधिक बल दिया था।

अमित शाह ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में अन्य भाषा भाषी नेताओं ने समय समय पर राजभाषा के महत्व को इंगित किया, उसका उद्घोष और प्रसार भी किया क्योंकि वे सब जानते थे कि अगर हम देश की भाषा नहीं बदलते तो देश का शासन बदलने की हमारी कल्पना अधूरी रह जाएगी। गृह मंत्री ने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती मानते थे कि वेदों के ज्ञान और उनके द्वारा सभी धर्मों पर किये गये विश्लेषण को केवल हिंदी भाषा के माध्यम से ही पूरे देश की जनता तक सरलता से पहुँचाया जा सकता है, इसलिए उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश को हिंदी में लिखने का काम किया। गाँधी जी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अगर मुझे खाली समय मिलेगा तो मैं वो समय सूत कातने के साथ राजभाषा हिंदी को सीखने व उसे समृद्ध बनाने में व्यतीत करूंगा, गाँधी जी ने रोजगार व स्वभाषा से देश को राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के दूरदर्शी संकल्प को आगे बढ़ाने का मार्ग दिखाया।

गृह मंत्री ने कहा कि भारत का रथ भाषाओं का रथ है और हमें हिन्दी को साथ में रखकर अपनी स्वभाषाओं को मज़बूत करना पड़ेगा। हमें विदेशी भाषाओं से उत्पन्न होने वाली विदेशी सोच की जगह स्वभाषा से उत्पन्न होने वाली स्वदेशी सोच के आधार पर अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को बनाना पड़ेगा और देश को आगे बढ़ाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने कहा था कि मातृभाषा की उन्नति के बिना राजभाषा की प्रगति संभव नहीं है। श्री शाह ने कहा कि वे सभी हिन्दी प्रेमियों को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग पूरी तत्परता और तन्मयता के साथ हिन्दी को मज़बूत करने के लिए काम कर रहा है। अनेकविध कार्य शुरू हुए हैं, हालाँकि कोरोना की वजह से उनकी गति थोड़ी मंद हो गई थी परंतु अब इनमें गति आ गई है। अगले दो साल में आपको इसमें बहुत सारे नए नए प्रयोग और फ़ैसले दिखाई देंगे और आप स्वभाषा के साथ राजभाषा को मज़बूत करने के स्वप्न को पूरा होते देखेंगे।

अमित शाह ने सम्मेलन में देशभर से आए हिन्दी विद्वानों से अनुरोध करते हुए कहा कि वे बिना किसी संकोच धड़ल्ले के साथ स्वभाषा के उपयोग और स्वीकृति, ख़ासकर युवाओं में इसे स्वीकार कराने के लिय काम करें। उन्होंने कहा कि जब तक हम भाषा की हीनभावना को नहीं छोड़ देते तब तक इस देश की क्षमता का उपयोग नहीं हो सकता। गृह मंत्री ने कहा कि देश के 6 प्रतिशत बच्चे अंग्रेज़ी में पढ़ते हैं, बाकी के बच्चों में क्षमता की कोई कमी नहीं है लेकिन जब वे फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी नहीं बोल पाते तो उनको राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मंच नहीं मिलता। श्री शाह ने कहा कि अगर हम स्वभाषा और राजभाषा को ऐसे बच्चों को एक मंच देने का माध्यम बनाते हैं तो देश की शत प्रतिशत क्षमता का उपयोग होगा। श्री अमित शाह ने कहा कि सिर्फ़ 6 प्रतिशत क्षमता के उपयोग से देश इस स्थान पर पहुँचा है और जब शत प्रतिशत क्षमता का उपयोग होगा तब देश विश्व में सर्वप्रथम होगा और महान भारत की रचना का हमारा स्वप्न भी पूरा होगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के संकल्प से सिद्धी के इस अमृतकाल में आज का दिन इसे पूरा करने के संकल्प लेने का दिन है।

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