क्या कांग्रेस की सारी पीड़ा हर लेंगे पीके

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त्रिदीब रमण
त्रिदीब रमण

 कितनी मुद्दत से सोए नहीं हो तुम सारा हम हिसाब छोड़ आए हैं

ज़िद करके हम भी तुम्हारी आंखों में चंद ख्वाब छोड़ आए हैं’

पिछले कुछ दिनों के अंतराल में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की गांधी परिवार और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से कम से कम तीन दौर की बातचीत हो चुकी है। बातचीत का यह सिलसिला बदस्तूर आगे भी जारी रहना था, पर यूं अचानक राहुल गांधी को विदेश जाना पड़ गया। अब सवाल उठता है कि आखिरकार पीके ने कांग्रेस को वे कौन से हसीन सपने दिखाए हैं कि सोनिया, राहुल व प्रियंका समेत पूरा गांधी परिवार उनके समक्ष नतमस्तक हो गया है। गांधी परिवार से जुड़े बेहद भरोसेमंद सूत्र खुलासा करते हैं कि पीके की ओर से गांधी परिवार को अहम चार बातों का आश्वासन मिला है। नंबर एक, पीके ने गांधी परिवार से वादा किया है कि वे प्रमुख विपक्षी पार्टियों से कांग्रेस के लिए साझेदारी में बड़ी सीटों का जुगाड़ कर सकते हैं। पीके का दावा है कि वे यूपी में अखिलेश से बात कर कांग्रेस के लिए 24 के चुनाव में एक दर्जन सीटें दिलवा सकते हैं। अगर गिनती की बात करें तो पीके का दावा है कि वे कांग्रेस के लिए ममता से 5, केसीआर से 5, नवीन पटनायक से 5 और स्टालिन से 8 सीटें दिलवा सकते हैं। अभी जिन राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकारें हैं यानी महाराष्ट्र और झारखंड में पीके उद्धव ठाकरे और हेमंत सोरेन से भी 24 के चुनावों में कांग्रेस के लिए अच्छी खासी सीटों का जुगाड़ कर सकते हैं। पर ऐसे में सवाल उठता है कि पीके चाहे जो भी दावे करें ममता, केसीआर या नवीन पटनायक अपने संबंधित राज्यों में क्या कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ने को तैयार हो सकते हैं, जबकि इन नेताओं को लगता है कि इनके गृह राज्यों में कांग्रेस मजबूती से लड़ाई में भी नहीं है।

कांग्रेस को चुनावी चंदा भी दिलवाएंगे

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता दबी जुबान में बताते हैं कि पीके ने गांधी परिवार को भरोसा दिया है कि 2024 के चुनाव में उन्हें चुनावी खर्चे की भी चिंता नहीं करनी है। चुनावी चंदे के लिए वे इलेक्ट्रॉल बांड की मदद लेंगे, सूत्र यह भी खुलासा करते हैं कि केवल इस बांड की मदद से पीके ने डेढ़ से दो हजार करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है। पीके ने बदले में गांधी परिवार से यह आश्वासन मांगा है कि कांग्रेस के लिए मीडिया प्रबंधन का सारा काम वही देखेंगे और वे इस बात का भी पूरा ध्यान रखेंगे कि गांधी परिवार और विशेष कर राहुल गांधी से जुड़ी कोई निगेटिव खबर मीडिया में न चले, पीके का दावा है कि देश-विदेश के मीडिया में उनका अच्छा खासा असर है। पीके ने गांधी परिवार के समक्ष यह भी साफ कर दिया है कि कांग्रेस में उन्हें किसी बड़े पद का प्रलोभन नहीं, पर चुनावी दौर में वित्तीय प्रबंधन उनके सुपुर्द होना चाहिए, ताकि वे एक व्यवस्थित और सुचारू तरीके से कांग्रेस के चुनाव प्रचार को धार दे सकें। सूत्रों की मानें तो अपने चौथे प्वाइंट के तौर पर पीके ने गांधी परिवार को यह सलाह दी है कि चार लोगों का एक व्हाट्सअप ग्रुप बने जिसमें सोनिया, राहुल, प्रियंका व स्वयं पीके शामिल रहें, और यह ग्रुप चौबीसो घंटे एक्टिव रहे। और पीके अगर किसी व्यक्ति को गांधी परिवार से मिलवाना चाहें तो उसका खुलेमन और खुलेदिल से स्वागत होना चाहिए। कांग्रेस का पूरा चुनावी कैंपेन पीके की टीम देखेगी और पार्टी के बड़े नेताओं का इसमें अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं होगा। अब पार्टी के बड़े नेताओं ने अभी से कहना शुरू कर दिया है कि ‘क्या कांग्रेस पार्टी पीके को लीज पर दे दी गई है?’

राष्ट्रपति चुनाव लड़ना चाहते हैं यशवंत सिन्हा

यशवंत सिन्हा भले ही 85 साल के हो चुके हैं पर उनकी उद्दात महत्वाकांक्षाएं आज भी उतनी ही हिलौरे मारती हैं। यशवंत सिन्हा फिलवक्त तो दीदी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में हैं, पर उन्हें वहां भी उनका मनचाहा नहीं मिल पाया है। हालांकि दीदी से अब भी सिन्हा के किंचित मधुर रिश्ते हैं। सूत्र बताते हैं कि सिन्हा ने दीदी को इस बात के लिए तैयार कर लिया है कि ममता यशवंत सिन्हा का नाम विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर चलवाएंगी। दीदी से हामी मिलने के तुरंत बाद समझा जाता है कि सिन्हा ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे से बात की। सूत्रों की मानें तो इन दोनों मुख्यमंत्रियों को सिन्हा के नाम पर कोई आपत्ति नहीं है। इसके बाद सिन्हा ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बात कर उनसे उनका समर्थन मांगा। कहते हैं सिन्हा के प्रस्ताव पर सोरेन ने सहर्ष सहमति देते हुए कहा कि ’यह झारखंड के लिए गौरव की बात होगी कि झारखंड का कोई व्यक्ति देश का राष्ट्रपति बने।’ जब इस सुगबुगाहट की आहट सोनिया गांधी को लगी तो उन्होंने सबसे पहले गुलाम नबी आजाद से बात की और उनसे जानना चाहा कि ’क्या वे राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं?’ तो गुलाम नबी ने यह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा कि ’वे महज़ हारने के लिए राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ना चाहते।’ समझा जाता है कि इसके बाद कांग्रेस भी सिन्हा के समर्थन में खड़ी हो सकती है।

क्या शशि थरूर रंग बदल सकते हैं

सियासी नेपथ्य की बतकहियों में पहले भी कई बार इस बात का जिक्र हो चुका है कि शशि थरूर का मन अब कांग्रेस में रम नहीं पा रहा। बीच में यह भी सुनने को मिला था कि थरूर तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी के निरंतर संपर्क में हैं। यह भी सुनने में आया था कि ममता के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी डेरेक ओ ब्रायन को साथ लेकर थरूर से मिलने पहुंचे थे। पर लगता है थरूर की उद्दात महत्वाकांक्षाएं टीएमसी के छोटे आंगन में समा नहीं पा रही। सो पिछले दिनों केरल भाजपा के एक प्रमुख नेता जो मोदी सरकार में पहले मंत्री भी रह चुके हैं, वे थरूर से मिलने पहुंचे और थरूर को भाजपा में शामिल होने का आमंत्रण दिया। यह कहते हुए कि ’तिरूवंतपुरम जहां से थरूर सांसद हैं, वहां भाजपा तेजी से अपना जनाधार बढ़ा रही है। पिछले चुनाव में भी भाजपा को यहां 3,16,142 वोट आए थे। सो, अगर 24 का चुनाव उन्हें तिरूवंतपुरम से ही जीतना है तो उनके समक्ष भाजपा से अच्छा और कोई विकल्प नहीं,’ पूर्व में भी कई मौकों पर थरूर पीएम मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ चुके हैं, जो इस धारणा को पुख्ता करता है कि थरूर को वैसे भी भाजपा से कोई एलर्जी नहीं। समझा जाता है कि भाजपा की ओर से थरूर को यह भी आश्वासन मिला है कि ’वे चाहें तो नई दिल्ली संसदीय सीट से भी चुनाव लड़ सकते हैं।’ जाहिर है इन दिनों थरूर का दिल भगवा-भगवा है।

सरहदें लांघती संघ की महत्वाकांक्षाएं

सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो शायद यह पहली बार है कि विदेश स्थित भारतीय दूतावासों में भारतीय राजनयिकों की नियुक्तियों के लिए संघ की ओर से कोई लिस्ट ऊपर भेजी गई है। वैसे तो संघ के इरादे अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में अपनी पसंद के राजनयिक भेजने का है, पर सूत्रों की मानें तो संघ नेतृत्व से कहा गया है कि वह शुरूआत छोटे राष्ट्रों से करें और वहां अपनी पसंद के राजनयिकों की लिस्ट दें। कई दूतावासों में सीधे राजनैतिक नियुक्तियां होती है, संघ को कहीं शिद्दत से इस बात का इल्म है। संघ चाहता है कि भारतीयता, राष्ट्र प्रेम जैसी भावनाओं को विदेशों में भारी संख्या में बसे अप्रवासी भारतीयों के मन में अंकुरित किया जा सके। हालांकि विदेशों में संघ की मान्यताओं के प्रचार-प्रसार के लिए पहले से संघ का एक अनुशांगिक संगठन सक्रिय है। पर अब संघ खुल कर अपनी भावनाओं का विस्तार चाहता है, सो मुमकिन है कि आने वाले दिनों में इस आशय के नए बीज पल्लवित पुष्पित हों।

क्या केजरीवाल को मान की इतनी फिक्र है

आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को अपने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की इस कदर फिक्र है कि वे मान की इमेज को सदैव झाड़-पोछ कर चमकाते रहते हैं। अब जैसे केजरीवाल ने मान को यह टिप दी है कि वे पंजाब में उद्योगपतियों और थैलीशाहों से मिलने से परहेज करें। ऐसे लोगों को मिलने के लिए वे सीधे राघव चड्ढा के पास भेज दें, चड्ढा उन्हें हेंडल कर लेंगे। क्या यह बात मान को नागवार गुजर रही है? इसकी मिसाल देखिए, पंजाब में इंडस्ट्रियल पॉलिसी पर एक मीटिंग होनी थी, ऐसे में सीएम मान से उनके एक मुंहलगे ब्यूरोक्रेट ने पूछ लिया कि इस मीटिंग में शामिल होने के लिए दिल्ली से कौन-कौन आ रहा है? इस पर मान ने बेहद हाजिर जवाबी से कहा-’जब दिल्ली की इंडस्ट्रियल पॉलिसी की मीटिंग होगी तो उसमें दिल्ली से लोग आएंगे, जब पंजाब की इंडस्ट्रियल पॉलिसी पर बात होनी है तो इसे पूरी तरह हमारी ही रहने दो।’

 

 

येचुरी भी कांग्रेस से नाराज़

सीताराम येचुरी के हमेशा से सोनिया गांधी से किंचित बहुत मधुर संबंध रहे हैं, भले ही सीपीएम ने येचुरी को तीसरे टर्म के लिए अपना महासचिव चुन लिया हो, पर वामपंथी नेता यदाकदा येचुरी की आलोचना करते रहे हैं कि वे आंख मूंद कर कांग्रेस के पीछे चलने में यकीन रखते हैं। पार्टी फोरम पर भी इस बात को लेकर कई दफे येचुरी की घोर आलोचना हो चुकी है। सो पिछले दिनों जब सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी सोनिया गांधी से मिलने उनके घर पहुंचे तो उनकी पेशानियों पर खासे बल दिखे। कहते हैं येचुरी ने खुल कर सोनिया से कह दिया-’मैडम आपने तो कांग्रेस पार्टी का स्टीयरिंग ही पीके के हाथों में सौंप दिया है, हम आगे कैसे साथ चल पाएंगे।’ सनद रहे कि पूर्व में लालू यादव की पार्टी राजद और स्टालिन की पार्टी डीएमके से कांग्रेस का गठबंधन कराने में येचुरी की एक महती भूमिका रही थी।

और अंत में

राहुल के विदेश यात्रा पर रवाना होने से पूर्व उनसे मिलने सचिन पायलट पहुंचे, राहुल के साथ प्रियंका भी इस मीटिंग में मौजूद थीं। सचिन ने राहुल से उनका वादा याद कराते हुए कहा कि ’अब वक्त आ गया है कि आप अशोक गहलोत जी को दिल्ली बुलाएं और मुझे राजस्थान सौंप कर अपना वादा पूरा करें।’ राहुल ने कहा कि ’वे सचिन को फिर से राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं और चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस राजस्थान में फिर से सत्ता में वापसी करें।’ सचिन ने दो टूक कहा-’चमत्कार बार-बार नहीं होते।’ इस पर राहुल ने छूटते ही सचिन ने पूछ लिया-’अगर आप बीजेपी में चले गए होते तो क्या वे आपको सीएम बना देते?’ सचिन ने भी किंचित तल्खी से कहा-’अगर मुझे बीजेपी में ही जाना होता तो मैं आज यहां नहीं बैठा होता।’ जब यह खबर सोनिया को लगी तो उन्होंने मामले की नजाकत को भांपते फौरन सचिन को मिलने अपने पास बुला लिया, सचिन ने दिल खोल कर सोनिया के समक्ष अपनी बात रखी। अब अगली कॉल सोनिया की है।

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