प्रधानमंत्री ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ India@75 के पूर्वावलोकन कार्यकलापों का किया उद्घाटन

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समग्र समाचार सेवा
अहमदाबाद, 12 मार्च।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से ‘पदयात्रा’ (फ्रीडम मार्च) को झंडी दिखाई तथा ‘आजादी का अमृत महोत्सव’India@75 के पूर्वावलोकन कार्यकलापों का उद्घाटन किया। उन्होंने India@75 समारोहों के लिए अन्य विभिन्न सांस्कृतिक और डिजिटल पहलों को भी लांच किया।

इस अवसर पर गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत, केन्द्रीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रहलाद सिंह पटेल तथा गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी भी उपस्थित थे।

आजादी का अमृत महोत्सव भारत की स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए भारत सरकार द्वारा आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों की एक श्रृंखला है। यह महोत्सव जनभागीदारी की भावना में एक जन-उत्सव के रूप में मनाया जाएगा।

साबरमती आश्रम में जनसमूह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2022 से 75 सप्ताह पूर्व “आजादी का अमृत महोत्सव” आरंभ किए जाने की चर्चा की जो 15 अगस्त 2023 तक चलेगा। उन्होंने महात्मा गांधी और महान व्यक्तित्वों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी।
The Prime Minister, Shri Narendra Modi flagged off the 'Padayatra' (Freedom March) from the Sabarmati Ashram in Ahmedabad and inaugurated the preview activities of the 'Independence of Amrit Festival' India @ 75. He also launched various other cultural and digital initiatives for India @ 75 celebrations.
प्रधानमंत्री ने पांच स्तंभों अर्थात स्वतंत्रता संग्राम, 75 पर विचार, 75 पर उपलब्धियां, 75 पर कार्रवाइयां तथा 75 पर संकल्प को प्रेरणा मानते हुए सपनों और दायित्वों को बनाए रखने तथा आगे बढ़ने के मार्गदर्शी बल के रूप में दोहराया।

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि आजादी अमृत महोत्सव का अर्थ स्वतंत्रता की ऊर्जा का अमृत है। इसका अर्थ हुआ स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की प्रेरणाओं का अमृत; नए विचारों और संकल्पों का अमृत और आत्मनिर्भरता का अमृत।

नमक के प्रतीक की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि केवल लागत के आधार पर नमक का मूल्य कभी भी नहीं आंका गया। भारतीयों के लिए नमक का अर्थ ईमानदारी, भरोसा, वफादारी, श्रम, समानता और आत्मनिर्भरता है।
उन्होंने कहा कि उस समय नमक भारत की आत्मनिर्भरता का एक प्रतीक था। ब्रिटिश सरकार ने भारत के मूल्यों के साथ-साथ इस आत्मनिर्भरता को भी क्षति पहुंचाई। भारत के लोगों को इंग्लैंड से आने वाले नमक पर निर्भर रहना पड़ता था। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने देश के इस पुराने दर्द को समझा, लोगों की धड़कन को समझा तथा उसे एक आंदोलन में तब्दील कर दिया।

प्रधानमंत्री ने 1857 में भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध, विदेश से महात्मा गांधी के लौटने, सत्याग्रह की शक्ति का राष्ट्र को स्मरण कराने, लोकमान्य तिलक द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता का आह्वान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का दिल्ली मार्च तथा दिल्ली चलो के नारे जैसे स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण क्षणों को याद किया।

उन्होंने यह भी कहा कि स्वाधीनता आंदोलन के इस अलख को निरंतर जगाए रखने का काम प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक दिशा में देश के कोने-कोने में हमारे आचार्यों, संतों तथा शिक्षकों द्वारा किया गया था। उन्होंने कहा कि इस प्रकार भक्ति आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता आंदोलन के लिए मंच तैयार किया। चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, श्रीमंत शंकर देव ने एक राष्ट्रव्यापी स्वतंत्रता संग्राम की आधारशिला का निर्माण किया। इसी प्रकार, देश के सभी क्षेत्रों के संतों ने राष्ट्र की चेतना और स्वाधीनता संग्राम में योगदान दिया। देश भर के ऐसे कई दलित, आदिवासी, महिलाएं और युवक थे जिन्होंने अनगिनत कुर्बानियां दी हैं। उन्होंने तमिलनाडु के 32 वर्षीय कोडी कठा कुमारन जैसे अज्ञात नायकों की कुर्बानियों को याद किया जिसने ब्रिटिश सेना द्वारा सर में गोली लगने के बावजूद देश के झंडे को जमीन पर नहीं गिरने दिया। तमिलनाडु की वेलु नचियार पहली महारानी थी जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ीं।

प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि हमारे देश के जनजातीय समाज ने विदेशी शासन को झुकाने के लिए निरंतर बहादुरी और हिम्मत के साथ लड़ाई लड़ी। झारखंड में, बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों को चुनौती दी तथा मुर्मु बंधुओं ने संथाल आंदोलन का नेतृत्व किया। ओडिशा में, चकरा बिसोई ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ीं तथा लक्ष्मण नायक ने गांधीवादी सिद्धांतों के जरिए जागरूकता फैलाई। उन्होंने आंध प्रदेश में मन्याम विरुडु अलुरी सिराराम राजू, जिसने राम्पा आंदोलन का नेतृत्व किया तथा पसाल्था खुंगचेरा जिसने मिजोरम की पहाड़ियों में अंग्रेजों का सामना किया, जैसे अन्य अज्ञात जनजातीय नायकों का भी नाम लिया, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

उन्होंने गोमधर कोन्वार, लक्षित बोरफुकन तथा सेरात सिंह जैसे असम तथा पूर्वोत्तर के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों का भी उल्लेख किया जिन्होंने देश की आजादी में योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि देश हमेशा गुजरात के जम्बुघोडा में नायक जनजातीयों के बलिदान तथा मानगाध में सैंकड़ों आदिवासियों के नरसंहार को याद रखेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश प्रत्येक राज्य तथा प्रत्येक क्षेत्र में इसके इतिहास को संरक्षित करने के लिए पिछले छह वर्षों से सजग प्रयास करता रहा है। दांडी यात्रा के साथ जुड़े स्थल का पुनरुत्थान दो वर्ष पहले किया गया। उस स्थान का भी पुनरुत्थान किया जा रहा है जहां देश की प्रथम स्वतंत्र सरकार के निर्माण के बाद नेताजी सुभाष ने अंडमान में तिरंगा फहराया था। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब के साथ जुड़े स्थानों को पंचतीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है, जालियांवाला बाग में स्मारक तथा पैका आंदोलन के स्मारक का भी विकास किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने भारत तथा विदेश दोनों ही जगहों पर अपनी कड़ी मेहनत के साथ खुद को साबित किया है। हम अपने संस्थान और लोकतांत्रिक परंपराओं पर गर्व करते हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की जननी भारत अभी भी लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाते हुए आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की उपलब्धियां समस्त मानवता को भरोसा दे रही है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की विकास यात्रा आत्मनिर्भरता से भरी हुई है और यह पूरी दुनिया की विकास यात्रा को गति दे रही है।

प्रधानमंत्री ने युवाओं और विद्वानों से हमारे स्वाधीनता सेनानियों के इतिहास के दस्तावेजीकरण के द्वारा देश के प्रयासों को पूरा करने की जिम्मेदारी लेने का आग्रह किया। उन्होंने उनसे स्वतंत्रता आंदोलन की उपलब्धियों को विश्व के सामने प्रदर्शित करने का अनुरोध किया। उन्होंने कला, साहित्य, थियेटर की दुनिया, फिल्म उद्योग तथा डिजिटल मनोरंजन से जुड़े लोगों से उन अनूठी कहानियों, जो हमारे अतीत में बिखरी हुई हैं, की खोज करने और उनमें नया जीवन डालने का आग्रह किया।

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