कोरोना रोगियों को ठीक कर सकती है कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं-अमेरिकी वैज्ञानिक

कोलेस्ट्रॉल ड्रग का असर इंसान में पाए जाने वाले ACE2 रिसेप्टर पर होता है, जहां से कोरोना एंट्री करता है| 

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समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली , 6 अक्टूबर।

शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लेवल घटाने वाली दवा ‘स्टेटिन’ से कोरोना मरीजों में रिकवरी तेज की जा सकती है। यह दावा अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। शोधकर्ताओं का कहना है, इस दवा की मदद से कोरोना के गंभीर होने का खतरा भी घटाया जा सकता है। यानी मरीज की हालत नाजुक होने से रोका जा सकता है।

  • ऐसे असर करती है दवा
    अमेरिकन जर्नल ऑफ कार्डियोलॉजी में प्रकाशित रिसर्च कहती है, ‘स्टेटिन’ ग कोशिकाओं से कोलेस्ट्रॉल को घटाती है। ऐसा होने पर ये कोशिकाएं कोरोना को अंदर तक पहुंचने से रोकती हैं।
    रिसर्चर्स के मुताबिक, इंसान के शरीर में कोरोनावायरस को संक्रमण फैलाने में ACE2 रिसेप्टर मदद करता है। कोलेस्ट्रॉल की दवा स्टेटिंस का असर इन्हीं कोशिकाओं पर होता है और संक्रमण गंभीर होने का खतरा कम हो जाता है।
  • कोरोना के 170 मरीजों का मेडिकल रिकॉर्ड जांचा गया:
    कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने कोरोना से जूझने वाले 170 मरीजों का मेडिकल रिकॉर्ड जांचा। ये मरीज फरवरी से जून 2020 के बीच भर्ती हुए थे। इनमें से 27 फीसदी मरीज इलाज की शुरुआत से ही कोलेस्ट्रॉल की दवा ‘स्टेटिन’ ले रहे थे।
    जिन मरीजों को यह दवा दी गई उनमें कोरोना के गंभीर होने का खतरा 50 फीसदी तक कम हो गया। कोरोना के जो मरीज ये दवा नहीं ले रहे थे उनकी तुलना में इन मरीजों की रिकवरी में भी तेजी आई।
  • कोलेस्ट्रॉल हृदय रोगों का खतरा बढ़ाता है, इन 5 तरीकों से इसे घटा सकते हैं: 
  • सुबह की शुरुआत लहसुन से:
    लहसुन में ऐसे एंजाइम्स पाए जाते हैं, जो एलडीएल यानी खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार साबित होते हैं। एक रिसर्च के अनुसार लहसुन के नियमित सेवन से एलडीएल के स्तर में 9 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। रोजाना सुबह के समय खाली पेट लहसुन की दो कलियों को चबा-चबाकर खाना फायदेमंद होगा।
  • चाय पीने से पहले बादाम खाएं:
    बादाम में ओमेगा-3 फैटी एसिड होते हैं, जो बुरे कोलेस्ट्रॉल को घटाने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मददगार होते हैं। इन्हें एक रात पहले पानी में भिगोकर सुबह चाय से करीब 20 मिनट पहले खाना चाहिए। पानी में भिगोने से बादाम में फैटी तत्व कम हो जाता है। प्रतिदिन पांच से छह बादाम खाना भी पर्याप्त होगा। इसका एक माह का खर्च लगभग उतना ही होगा, जितना कोलेस्ट्रॉल होने पर उसे घटाने वाली दवाओं पर होता है। साथ ही अखरोट का सेवन भी करेंगे तो दोगुना फायदा होगा। काजू को अवॉइड करना चाहिए।
  • भोजन में अधिक से अधिक फाइबर हों :
    नाश्ते से लेकर डिनर तक, आप जब भी और जो भी खाएं, वह फाइबरयुक्त होना चाहिए। रोजाना अपने दोनों समय के भोजन में सलाद को जरूर शामिल करें। सलाद में शामिल तमाम तरह की चीजें जैसे प्याज, मूली, गाजर, चुकंदर आदि फाइबर्स से युक्त होती हैं। ओट्स, स्प्राउट्स और शकरकंद में भी काफी मात्रा में फाइबर्स होते हैं। इन्हें नाश्ते में लें। संतरे, नाशपाती, पपीते, चीकू जैसे फल भी फाइबर के अच्छे स्रोत होते हैं।
  • बाहर की तली हुई चीजों को ना कहें :
    ट्रांसफैट के लगातार सेवन से एलडीएल जैसा बुरा कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है, जबकि एचडीएल जैसे अच्छे कोलेस्ट्रॉल का लेवल 20 फीसदी तक घट जाता है। ट्रांसफैट मुख्य रूप से डीप फ्राइड, बेक्ड और क्रीम वाली चीजों में होता है। खासकर एक ही तेल को बार-बार गर्म करने से उसमें ट्रांसफैट की मात्रा बढ़ जाती है। बाहर के खाने में आमतौर पर इसी तरह के तेल का ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसलिए बाहर की डीप फ्राइड चीजें अवॉइड करनी चाहिए।
  • वानस्पतिक प्रोटीन का सेवन बढ़ाएं
    वानस्पतिक प्रोटीन से मतलब ऐसा प्रोटीन होता है जो वनस्पतियों यानी पेड़-पौधों से मिलता हो। यह प्रोटीन दालों, राजमा, चना, मूंगफली, सोयाबीन आदि के जरिए हासिल किया जा सकता है। इससे बैड कोलेस्ट्रॉल के लेवल को काफी तेजी से घटाने में मदद मिलती है और गुड कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ता है।

  • अंडा खाने से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ेगा, पर एक ही खाएं : रिसर्च
  • अब तक ऐसी धारणा रही है कि अंडों का सेवन बैड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। यह धारणा इसलिए बनी क्योंकि अंडे में डायटरी कोलेस्ट्रॉल होता है। लेकिन अब पॉपुलेशन हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीएचआरआई) तीन वैश्विक अध्ययनों के विश्लेषण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि सीमित मात्रा में अंडे खाने से न तो कोलेस्ट्रॉल के स्तर में बढ़ोतरी होती है और न ही दिल के लिए खतरा पैदा होता है।
  • रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार रोजाना एक अंडा कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की चिंता से मुक्त होकर खाया जा सकता है। पीएचआरआई ने जिन तीन अध्ययनों का विश्लेषण किया है, उनमें कुल मिलाकर 1 एक लाख 77 हजार लोग शामिल थे। ये लोग किसी एक देश में नहीं, बल्कि 55 देशों में फैले हुए थे। ये अध्ययन भी लंबी अवधि में किए गए। इसलिए इन अध्ययनों को पहले हुए अध्ययनों के मुकाबले कहीं अधिक विश्वसनीय माना जा रहा है।
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