खबरों के साथ हादसे… कब तक ?

Accident with news ... How long?

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मैं महसूस कर रहा हूं कि कुछ न्यूज चैनल गंभीरता खोकर धीरे धीरे कॉमेडी चैनल बनते जा रहे हैं। पाकिस्तान में इलैक्ट्रोनिक मीडिया की हद ही खत्म हुई पड़ी है। लेकिन हमारी इस मीडिया को भी बदलते महसूस किया जा सकता है। इस मीडिया की विशेषता किसी चर्चा या बहस के दौरान खूब देखने को मिलती है। कल तो एक नामी चैनल के सहयोगी संस्करण में इमरान खान और यूएनओ से जुड़ी खबरों की समीक्षा सुनकर मैं हैरान रह गया। स्पष्ट रूप से मुझे उसमें पाकिस्तान के प्रमुख चैनल के अंदाज की छवि मिली।

यहां की तुलना करें तो इलैक्ट्रोनिक मीडिया में काफी कुछ नया करने के लिए
अर्नब गोस्वामी का नाम ले सकते हैं।
यह अंदाज टीआरपी बढ़ाने या चर्चा में रहने के लिए भी किया जा सकता है, लेकिन एक वर्ग है जो अर्नब का अंदाज पसंद कर रहा है, दर्शक उसकी बॉडी लैंग्वेज के कारण पसंद कर रहे हैं या बेबाकी और निडरता से बात रखने के अंदाज पर फिदा हैं। यह आप तय कीजिए।

कभी इलैक्ट्रोनिक मीडिया के एंकर को धारदार बनाने और विषय के अनुकूल गंभीरता बनाए रखने के तेवर एसपी सिंह ने दिए थे। समाचार की गंभीरता बनाए रखने के इस प्रयोग का असर संबंधित सरकारी महकमों,
मंत्रियों, मंत्रालयों पर उसी गंभीरता से होता भी था।

उनके इस प्रयोग को तमाम चैनलों ने लंबे समय तक फॉलो किया, कमोबेश आज भी काफी चैनल हैं जिन्होंने एसपी सिंह के बोलने के अंदाज को जीवित रखा हुआ है। मीडिया इंस्टीट्यूट्स में ट्रेनिंग की शुरुआत और अंत इसी पर तय होता था, लेकिन अब बदलाव स्पष्ट दिख रहा है। बदलाव होना चाहिए लेकिन बदलाव के दौरान किसी समाचार के वजूद को महत्व को बनाए रखना जरूरी है वरना जिस तरीक़े से आपने उसे पेश किया। उसी तरीके से स्वीकार भी किया जाएगा।

वर्तमान मीडिया में इस तरह के हादसे होते ही रहते हैं। जब हम किसी गंभीर समाचार को मीडिया की देहरी पर दम तोड़ते देखते हैं…लेकिन वे इलैक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार बधाई के पात्र हैं जिन्होंने एसपी सिंह से भी आगे बढ़कर नया वातावरण दिया है.. चैनल और समाचार, दोनों की गंभीरता भी बनाए रखी है।
प्रकाश अस्थाना

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