महिमा बाबा नीब करौरी जी की !!!!!!

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बात बहुत पुरानी है. अपनी मस्ती में एक #युवा #योगी लक्ष्मण दास हाथ में चिमटा और कमंडल लिये #फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) से टूण्डला जा रही रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में चढ़ गए. गाड़ी कुछ दूर ही चली थी कि एक ऐंग्लो इण्डियन टिकट निरीक्षक वहां आया. उसने बहुत कम कपड़े पहने, अस्त-व्यस्त बाल वाले बिना टिकट योगी को देखा, तो क्रोधित होकर अण्ट-सण्ट बकने लगा. योगी अपनी मस्ती में चूर था. अतः वह चुप रहा.

कुछ देर बाद गाड़ी #नीब #करौरी नामक छोटे स्टेशन पर रूकी. टिकट निरीक्षक ने उसे अपमानित करते हुए उतार दिया. योगी ने वहीं अपना चिमटा गाड़ दिया और शांत भाव से बैठ गया. गार्ड ने झण्डी हिलाई, पर गाड़ी बढ़ी ही नहीं. पूरी भाप देने पर पहिये अपने स्थान पर ही घूम गये. इज्जन की जांच की गयी, तो वह एकदम ठीक था. अब तो चालक, गार्ड और टिकट निरीक्षक के माथे पर पसीना पर आ गया. कुछ यात्रियों ने टिकट निरीक्षक से कहा कि बाबा को चढ़ा लो, तब शायद गाड़ी चल पड़े.
मरता क्या न करता, उसने बाबा से क्षमा मांगी और गाड़ी में बैठने का अनुरोध किया. बाबा बोले- चलो तुम कहते हो, तो बैठ जाते हैं. उनके बैठते ही गाड़ी चल दी. इस घटना से वह योगी और नीब करौरी गांव प्रसिद्ध हो गया. बाबा आगे चलकर कई साल तक उस गांव में रहे और फिर नीम करौरी बाबा या बाबा नीम करौली के नाम से विख्यात हुए. बाबा ने अपना मुख्य आश्रम नैनीताल (उत्तराखण्ड) की सुरम्य घाटी में कैंची ग्राम में बनाया. यहां बनी रामकुटी में वे प्रायः एक काला कम्बल ओढ़े भक्तों से मिलते थे.
बाबा ने देश भर में 12 प्रमुख मंदिर बनवाये. उनके देहांत के बाद भी भक्तों ने 9 मंदिर बनवाये हैं. इनमें मुख्यतः हनुमान जी के प्रतिमा है. बाबा चमत्कारी पुरुष थे. अचानक गायब या प्रकट होना, भक्तों की कठिनाई को भांप कर उसे समय से पहले ही ठीक कर देना, इच्छानुसार शरीर को मोटा या पतला करना, आद कई चमत्कारों की चर्चा उनके भक्त करते हैं. बाबा का प्रभाव इतना था कि जब वे कहीं मंदिर स्थापना या भंडारे आदि का आयोजन करते थे, तो न जाने कहां से दान और सहयोग देने वाले उमड़ पड़ते थे और वह कार्य भली भांति सम्पन्न हो जाता था.
जब बाबा को लगा कि उन्हें शरीर छोड़ देना चाहिए, तो उन्होंने भक्तों को इसका संकेत कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने समाधि स्थल का भी चयन कर लिया था. 9 सितम्बर, 1973 को वे आगरा के लिए चले. वे एक कापी पर हर दिन रामनाम लिखते थे. जाते समय उन्होंने वह कापी आश्रम की प्रमुख श्रीमां को सौंप दी और कहा कि अब तुम ही इसमें लिखना. उन्होंने अपना थर्मस भी रेल से बाहर फेंक दिया. गंगाजली यह कह कर रिक्शा वाले को दे दी कि किसी वस्तु से मोह नहीं करना चाहिए.
आगरा से बाबा मथुरा की गाड़ी में बैठे. मथुरा उतरते ही वे अचेत हो गये. लोगों ने शीघ्रता से उन्हें रामकृष्ण मिशन अस्पताल, वृन्दावन में पहुंचाया, जहां 10 सितम्बर, 1973 (अनन्त चतुर्दशी) की रात्रि में उन्होंने देह त्याग दी.
बाबा का मूल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था. उनका जन्म ग्राम अकबरपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. उनकी समाधि वृंदावन में तो है ही, पर कैंची, नीब करौरी, वीरापुरम (चेन्नई) और लखनऊ में भी उनके अस्थि कलशों को भू समाधि दी गयी. उनके लाखों देशी एवं विदेशी भक्त हर दिन इन मंदिरों एवं समाधि स्थलों पर जाकर बाबा का अदृश्य आशीर्वाद ग्रहण करते हैं.
उत्तराखंड के नैनीताल से 65 किलोमीटर दूर पंतनगर में नीम करौली नाम के एक संन्यासी का आश्रम है. बाबा का 1973 में निधन हो गया था. लेकिन आश्रम में अब भी विदेशी आते रहते हैं. यह आश्रम फिलहाल एक ट्रस्ट चलाता है. बताया जाता है कि सबसे ज्यादा अमेरिकी ही इस आश्रम में आते हैं. आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच है. यहां पांच देवी-देवताओं के मंदिर हैं. इनमें हनुमान जी का भी एक मंदिर है. भक्तों का मानना है कि बाबा खुद हनुमान जी के अवतार थे.
बाबा नीब किरोडी आश्रम कुछ हाई प्रोफाइल अमेरिकी लोगों के लिए काम करता रहा है. जूलिया रोबर्ट्स, आध्यात्मिक गुरू रामदास, स्टीव जॉब्स और मार्क जकरबर्ग ये कुछ बडी शख्यितों में से कुछ नाम हैं जिन्हें एक आम से दिखने वाले, कंबल ओढकर रहने वाले एक बाबा की चुंबकीय शख्यित ने बदल दिया. बाबा नीब किरोडी ने ही इन्हें कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित किया. बाबा से प्रेरणा लेने वाली हस्तियों में बेहद लोकप्रिय किताब इमोशन इंटेलिजेंस के लेखक डेनियल गोलमैन, पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरि, बिडला ग्रुप के जुगलकिशोर बिडला और यहां तक कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे.

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