चीनी प्रभाव में अयोध्यावासी श्रीराम के प्रति अटपटे बयान से उलझे नेपाली प्रधानमंत्री श्री ओली साहेब !!

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कुमार राकेश  : सर्वज्ञ,शांतिप्रिय,विश्व गौरव अयोध्यावासी श्री राम की महिमा अपरम्पार है.श्रीराम की जन्म भूमि है ,अयोध्या.अयोध्या के बारे में पूरा विश्व जानता है ,मानता है ,समझता है और उस पर भरोसा करता है .नेपाल भी जानता था,जानता है और समझता हैं ,लेकिन चीन के आंतरिक दबाव और अपने निहित स्वार्थों की वजह से नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली शायद पूर्ण सत्य से विश्व का  ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं ,लेकिन क्या वह इस धरती के सबसे बड़े सत्य को महज़ कुछ निहित स्वार्थ की वजह से झुठला पाएंगे,कतई नहीं.श्री ओली ने कहा था-भारत की अयोध्या नकली है.श्रीराम अयोध्या के नहीं नेपाल के थे.बाल्मीकि आश्रम भी नेपाल में है.श्रीराम का ससुराल जनकपुर भी नेपाल में है.

श्रीराम और अयोध्या सम्बन्धी विवादास्पद बयान से नेपाली प्रधानमंत्री श्री ओली खुद ही अपने बुने जाल में उलझ गए.इससे भारत सहित नेपाल में भी हंगामा हुआ.नेपाली लोगो ने भी व्यापक विरोध जाहिर किया.विश्वव्यापी प्रतिक्रियाएं हुयी तो नेपाली विदेश मंत्रालय ने चीनी शैली में अपनी सफाई पेश की कि नेपाली प्रधानमंत्री का किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाने का कोई मकसद नहीं था.नहीं था ? फिर ऐसा बोला क्यों? उसका कोई जवाब नहीं.उन्हें व्यापक विरोध के कारण नेपाल ने क्षमा-अहसास का  कूटनीतिक नाटक किया.वैसे इसके पीछे चीन के फैलाया हुआ जाल हैं ,जिसमे नेपाल में बुरी तरह से उलझा हुआ है.

अब जो भी हो प्रधानमंत्री ओली साहेब की  कुर्सी पर खतरे के बादल मडरा रहे  हैं .वे अपनी कुर्सी बचाने के लिए चीन की उँगलियों पर चलने को मजबूर बताये जा रहे हैं.नेपाल भारत का पुरातन मित्र है.भाई-भाई  है.एक जान दो शरीर जैसी स्थिति रही है.आने वाले दिनों में भी वही पुरानी स्थिति आने वाली है.क्योकि चीन, नेपाल व वहां के निवासियों की नज़र में बुरी तरह से एक्सपोज़ होने लगा है.विश्व जानता है चीन की विश्वसनीयता शून्य के बराबर है.पूरे विश्व को कोरोना रोग देने वाला चीन के बुरे दिन शुरू हो गए है ,

रही बात श्रीराम की.ये तो श्री ओली साहेब को भी पता है.पता था कि श्रीराम अयोध्या के थे,हैं और सदैव रहेंगे.श्रीराम जन्म भूमि को लेकर भारत के दुश्मनों ने कई प्रकार षड्यंत्र किये.छल प्रपंच किये.श्रीराम जन्म भूमि को लेकर भारत में 492 वर्षो तक मुकदमा चला.अंततः श्रीराम की महिमा भौतिक व नैतिक रूप से पुनःस्थापित हुयी.अब उस अयोध्या में जल्द ही भव्य व विशाल श्रीराम मंदिर बनेगा. श्रीराम भारत के अयोध्या के ही थे.उनकी प्राणप्रिय सीता जी जनकपुर की थी.श्रीराम के साथ विवाह के बाद अयोध्या आई.मेरे को लगता है कि प्रधानमन्त्री श्री ओली सीता जी की चर्चा करना चाहते होंगे श्रीराम का नाम बोल गए.परन्तु ये भी श्रीराम का चमत्कार ही कहा जायेगा जब एक घोर वामपंथी व्यक्ति किसी देवता का नाम और जन्म स्थान  के बारे सार्वजनिक मंच से चर्चा कर रहा हो .उसमे भी श्री राम की महिमा निहित है.

सच कहते हैं श्रीराम की महिमा अपरम्पार है .कहते है एक नास्तिक को राम नाम का जाप के लिए कहा गया था ,परन्तु वो आदतन नहीं बोला ,पर उपहास के तौर पर “मरा-मरा” बोलने लगा ,जो बाद में स्वाभाविक तौर पर सुर बदल गया .वो “राम-राम” हो गया.अंततः उसे पूर्ण मुक्ति मिली.उसकी आत्मा तृप्त हुयी .इसे कहते हैं श्रीराम की महिमा .श्रीलंका के लिए बनाये गए श्रीराम सेतु को लेकर भारत व विदेशो में हिन्दू धर्म व भारत के दुश्मनों द्वारा उसके अस्तित्व को नकारने कि पूरी कोशिशें की गयी थी.कई षड्यंत्र रचे गए थे.सब फेल हो गए.भारत में कांग्रेस पार्टी सरकार ने कई नाटक किये.श्रीराम सेतु को नकारने को लेकर कई ऐसे उपक्रम किये जो बाद असफल रहे.अमेरिका के वैज्ञानिक संसथान नासा ने जब श्रीराम सेतु का नक्शा व अवशेष का चित्र जारी किया तो सबकी बोलती बंद हो गयी.

भारत भक्ति व भक्तो की पुण्य भूमि हैं .नेपाल और भारत की संस्कृति एक हैं.सोच एक है.दिल एक है.उसे चीन क्या कोई भी ऐसी वैसी कथित  ताक़त आंतरिक रूप से कभी अलग नहीं कर सकता.कई मायनो में भारत व नेपाल एक ही हैं.एक दुसरे के सखा रहे हैं .भक्त रहे हैं .आगे भी रहेगे.कहते हैं लाली देखन मै चली ,मै भी हो गयी लाल..ज्यो ज्यो डूबे श्याम रंग,त्यों त्यों उज्जवल होए.

भक्ति का विशेष रंग है ,भक्ति सागर है ,भक्ति  रस है ,भक्ति भंग है . श्रीराम तो भारत ही नहीं विश्व धरा के कण-कण में हैं .जहाँ देखो वही है .आप महसूस करो.आपको महसूस होगा .श्रीराम की भक्ति में जो शक्ति है वो आपको कही नहीं मिलेगी .भक्ति आप किसी की भी करे ,शक्ति तो मिलती ही है .भक्ति आप ईश्वर की करे या किसी अन्य की.उसका फल तो आपको मिलता ही है .ये ध्रुव सत्य है.अनुभव जन्य सत्य है .इसे कोई भी नकार नहीं सकता ,चाहे वो आस्तिक हो या नास्तिक .वैसे मैं आस्तिक हूँ परन्तु नास्तिक शब्द को नहीं मानता .क्योकि इस संसार में कोई भी नास्तिक नहीं .जो स्वयं को घोषित करता है ,वो भी नहीं.जीवन है तो आस्था है .आस्था से आस्तिकता है.जो विश्वास का ही प्रतिरूप है.जीवन व भावना एक दुसरे के पूरक है.भावना के बिना व्यक्ति नहीं ,न ही ईश्वर.जिसमे भावना है,वही आस्थावादी है.इसलिए ये भी चिंतन की बात है कि इन तमाम वजह से कोई नास्तिक कैसे हो सकता हैं.

इसलिए मेरा मानना है ,जो भी इस धरती पर अनिश्वरवाद की तथाकथित वकालत करते हैं वो हर वक़्त किसी न किसी प्रकार से मानसिक चिंता या विकार से ग्रसित रहते हैं .ये एक मनोवैज्ञानिक सत्य है.इसलिए दुनिया के सभी चिकित्सक चाहे वो किसी भी विधा से क्यों न जुड़े हो ,सभी की नसीहतो में एक बात समान होती है ,स्वयं  के प्रति आस्था.आस्था नहीं तो जीवन अनर्थ माना जाता है .यदि आपका अस्तित्व है तो आस्था है ,आस्था है तो ईश्वर है .

कुछ वर्ष पहले नेपाल विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र कहा जाता था .नेपाल स्थित पशुपति नाथ जी का मंदिर नेपाल ही नहीं विश्व का गौरवशाली स्थान है .विश्व का हर हिन्दू ,यहाँ तक कि कई दुसरे धर्मों के आम जन ,नेता भी उस मंदिर में  जाकर बाबा पशुपति नाथ का आशीर्वाद लेते हैं .क्या चीन या ओली साहेब  में हिम्मत है कि बाबा पशुपति नाथ मंदिर के बारे ऐसी बाते कर सकते हैं ?क्या चीन अपने बौद्ध विहारों को समाप्त कर सकता है? फिर वामपंथ का क्या मतलब.क्या अर्थ? जो नीतियां आम  जन के खिलाफ हो,उसे अस्तित्व में  रहने का कोई हक नहीं है .

भारत नेपाल के सम्बन्धो में राजीव गाँधी काल में कुछ गड़बड़ियाँ हुयी थी,जो मोदी काल में भी उसे जड़ से समाप्त नहीं किया जा सका है ,जिसके लिए मोदी सरकार के कुछ मंत्री व राजनयिक भी जिम्मेदार बताये जाते हैं.अब स्थिति बिगड़ने पर रिश्तो को मज़बूत करने के तमाम उपायों पर काम शुरू हो गया है,परन्तु नेपाल को चीन के प्रभामंडल से बाहर निकालना मुश्किल तो नहीं आसान भी नहीं दिख रहा है.

आज की बदली हुयी स्थिति में नेपाल जाने-अनजाने विश्व के विस्तारवाद के महान खलनायक चीन के साथ खड़े हो गया हैं .शायद उनको पता है या नहीं, चीन ने नेपाल को कथित मदद के नाम पर कितने बड़े भूभाग पर कब्ज़ा कर लिया है ,जो चीन का चिर परिचित स्वाभाव है चीन से नेपाल ही नहीं अव पाकिस्तान,भूटान ,म्यामार के अलावा 23 देशो के प्रमुख व आम जनता त्रस्त हो चुकी हैं .वो सब अब भारत के साथ हैं .चीन के विस्तारवाद की निहित स्वार्थ वाली भावनाओ के तहत विश्व के ज्यादातर विकसित देश भारत के साथ खड़े हो गए हैं .

विश्व को समझ में आ चुका है कि चीन और भारत की तुलना में भारत ज्यादा संस्कारी,नैतिक  व विश्वनीय देश हैं.चीन के घोर अमानवीय कोरोना आक्रमण की वजह से अमेरिका ,जापान ,ऑस्ट्रेलिया ,इटली ,फ़्रांस ,कनाडा ,रूस सहित कई देश चीन के घोर भारत के साथ खड़े हो गए हैं.चीन विस्तारवाद के आरोपों से तिलमिलाया है .जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने चीन के खिलाफ विस्तारवादी होने का आरोप लगाया तो चीन ने फौरी तौर पर उसका खंडन किया,लेकिन अपनी ओछी हरकतों से बाज़ नहीं आया.इसलिए चीन भारत के पडोसी देशो को भारत के खिलाफ भडकाना शुरू किया है ,लेकिन शायद चीन फिर से एक साथ कई गलतियाँ कर रहा है .चीन ने इरान को भी भड़काने की कोशिशे की हैं .भारत सरकार ने चीन को जहाँ हजारो करोड़ के प्रोजेक्ट से बाहर का रास्ता दिखाया है तो चीन ने भी इरान के चाबहार प्रोजेक्ट से बाहर करने पर काम कर रहा है.

कहते हैं चोर चोरी से जाये ,परन्तु हेरा फेरी से न जाये ,वही हाल चीन का हैं.लेकिब अब चीन कुछ भी कर ले ,वो अब चारो  तरफ से घिर चुका है .चाहे वो प्रधानमंत्री श्री ओली जैसे कमजोर नेता को भारत के खिलाफ उकसाने की कोशिश करे या पाकिस्तान जैसे नापाक इमरान खान को,फिर भी भारत अब आगे बढ़ता ही रहेगा,क्योकि भारत का मूलभूत नीति व सिद्धांत है –सत्य,अहिंसा और परस्पर भाई चारा के साथ वसुधैव कुटुम्बकम!!

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