आप और कुमार ने विश्वास ख़त्म, स्टार प्रचारकों की लिस्ट से कुमार विश्वास बाहर

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अनामी शरण बबल

नयी दिल्ली। लगता है कि सुपर स्टार कवि कुमार विश्वास से आप का नाता टूट गया है। कुमार विश्वास अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से उम्र में बड़े होने के कारण वे अपने आपको सबका या आप का ही बड़ा भाई मानते थे।  कुमार विश्वास का यहां पर काफी सम्मान भी था। यही वजह है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान इस बार आप के हिस्से में तीन सांसद बनाने भर विधायक बल था। आप ने संजय सिंह को सांसद बना दिया। दो राज्यसभा  सांसद मनोनीत करने की जिम्मेदारी अरविंद केजरीवाल पर थी। मगर नाम को सार्वजनिक करने से पहले ही कुमार विश्वास ने अपने आपको राज्य सभा का भावी सांसद घोषित कर दिया। और इसके कारण भी गिनाएं। मगर मुख्यमंत्री और आप के संरक्षक अरविंद केजरीवाल ने कुमार विश्वास को सांसद बनाने की बजाय दो गुप्ता को राज्य सभा भेज दिया। और कुमार विश्वास के साथ पत्रकार आशुतोष को बड़ी निराशा हुई। कुमार आशुतोष तो आप से अलग होकर पत्रकारिता में लौट गए। कुमार विश्वास भी कवि सम्मेलनों और टीवी कवि सम्मेलनों में कमाई करने लगे। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए आम आदमी पार्टी  ने स्‍टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। 14 लोगों की इस लिस्‍ट में आप मुखिया मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, गोपाल राय, राज्‍यसभा सांसद संजय सिंह, भगवंत मान, सत्‍येंद्र जैन, सौरभ भारद्वाज आदि शामिल हैं। लेकिन सबसे दिलचस्‍प बात है कि आप ने कुमार विश्‍वास को बाहर का रास्‍ता दिखा दिया है। और इस लिस्ट ने कुमार विश्वास को लेकर केजरीवाल और सिसौदिया के मोहभंग भी सार्वजनिक हो गया। या यों कहें कि कुमार विश्वास ने भी आप के अपने सभी छोटे भाईयों को अपने आप से दूर कर दिया। किसी समय आम आदमी पार्टी का प्रमुख अराजनीतिक चेहरा की तरह रहे और उभरे मंचीय कवि कुमार विश्वास को चुनाव प्रचार में नहीं लगाया गया है। यानी आप और कुमार के बीच विश्वास का रिश्ता समाप्त हो गया। 
 आम आदमी पार्टी ने सुशील गुप्‍ता, एनडी गुप्‍ता, शहनवाज हिन्‍दुस्‍तानी, राखी बिडलान, कैलाश गहलोत, इमरान हुसैन और राजेंद्र गौतम को स्‍टार प्रचारक बनाया है। खास बात है कि स्‍टार प्रचारकों में से अधिकांश नेता केजरीवाल के मंत्रीमंडल में मंत्री रहे हैं। अपने नेताओं और युवा चेहरों पर आप को अधिक विश्वास है। गठबंधन के किसी नेता पर भरोसा करना आप को गवारा नहीं है। यही वजह है कि अपने आपको किसी बंधन में बंधने की बजाय अकेले ही चुनाव लडना   ज्यादा  भाता है। इस बार आप यूपी से केवल तीन उम्मीदवारों को आप ने प्रत्याशी बनाया, मगर गाजियाबाद प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो गया। सहारनपुर से जाट प्रत्याशी योगेश दहिया ने युवाओं के बूते चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।  दलित मुस्लिम बहुल क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष मेह डेढ़ लाख पहली बार मतदान करने वाले यूथ सहित 25 से कम उम्र के पांच लाख मतदाताओं को भाजपा, कांग्रेस और सपा-बसपा की बजाय आप का तेवर ज्यादा सही और सच्चा प्रतीत होता है। अलीगढ़ में भी आप ने सबके संघर्ष सामना को कठिन कर दिया है। आप के प्रति यही झुकाव पंजाब दिल्ली यूपी आदि के उम्मीदवारों की सबसे बड़ी ताकत और संजीवनी है।  कांग्रेसी तालमेल का पिक्चर साफ नहीं है। पंजाब में भी आप के पते नही खुले हैं। कुल मिलाकर किसी के साथ ना होकर  अकेले चलने का समीकरण तय करेगा कि बहुकोणीय संघर्ष में आप के दावे का कोई दांवपेंच है या नहीं ?

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