अनामी शरण बबल।
नयी दिल्ली। लोकसभा चुनावी महासमर 2019 का कुरूक्षेत्र वाराणसी बनने जा रहा है। एनडीए प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी यहां से सांसद हैं। मोदी के खिलाफ सर्वदलीय समर्थन प्राप्त उम्मीदवार के रुप में कांग्रेस की सबसे बहुप्रतीक्षित प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लडेंगीं। प्रधानमंत्री को सांसत में डालने के लिए सभी दलों के दवाब के बाद प्रियंका गांधी इसके लिए राजी हुई हैं। प्रियंका के मनाने में राहुल गांधी से भी बड़ी भूमिका उनकी मां और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की रही है। पूर्वी उत्तरप्रदेश महासचिव के रुप में प्रियंका अगले सप्ताह से अगले सप्ताह से सक्रिय हो रही है। अगले माह फरवरी के अंत तक इनके नाम की विधिवत घोषणा कर दी जाएगी। उल्लेखनीय है कि वाराणसी जिसे बनारस और काशी भी कहा जाता है से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सही उम्मीदवार को लेकर विपक्षी दल परेशान थे। पिछले बार चुनाव लडने वाले आप मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस बार यहां से चुनाव लडने से इंकार कर दिया। गुजराती पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की अभी 25 साल के हुए हैं। मोदी के कद के सामने हार्दिक पटेल कहीं नहीं ठहरते। भाजपा के बागी सांसद और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा भी मोदी के आमने सामने टकराने के लेकर परहेज करते हुए नज़र आए। तभी कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में आयोजित सर्वदलीय विपक्षी जनसभा में नेशनल कांफ्रेंस नेता और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने मोदी के खिलाफ सर्वदलीय समर्थन प्रत्याशी के रूप में प्रियंका गांधी वाड्रा को उम्मीदवार बनाने का सुझाव रखा। जिसे सभी दलों के नेताओं ने एकमत से सहमति व्यक्त की। गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से प्रदेश यूपी अध्यक्ष राज बब्बर पिछले एक साल से मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारने का अनुरोध कर रहे थे, जिसे अमूमन अक्सर राहुल गांधी टाल जाते थे। कोलकाता में विपक्षी दलों की बैठक में फारूख अब्दुल्ला के जाने की खबर के बाद श्री बब्बर ने राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को फोन किया। बब्बर ने सचिन पर दवाब बनाया कि वे फारूख अब्दुल्ला से बात करके विपक्षी उम्मीदवार के रूप में प्रियंका गांधी वाड्रा के नाम को सुझाए। मालूम हो कि दिवंगत राजेश पायलट के सांसद पुत्र सचिन पायलट फारूख अब्दुल्ला के दामाद हैं। अपने दामाद सचिन के प्रस्ताव को बेहतर मानकर ही श्री अब्दुल्ला ने कोलकाता रैली में आए सभी नेताओं के सामने प्रियंका गांधी के नाम को रखा। जिसे पल भर में ही सभी नेताओं ने लपक लिया। कुछ विपक्षी नेताओं समेत फारुख अब्दुल्ला ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात करके यह प्रस्ताव रखा। सूत्रों के अनुसार मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के अनुरोध के कोई दो दिन के बाद श्री मती प्रियंका राजी हुई। जिसको एक धमाके की तरह पेश करने की बजाय शांति के साथ पूर्वी उत्तरप्रदेश महासचिव नियुक्त करने की जानकारी कल मीडिया को दी गयी।— बनारस में घर की बेटी और बाहरी गुजराती मोदी का जुमला उछाल कर यूपी की बेटी प्रियंका को मुख्य जुमला बनाकर मोदी की धार को कम करने की कोशिश है। प्रियंका गांधी के बहाने विपक्ष प्रधानमंत्री को बनारस में घेरने की रणनीति बनाएगी। मोदी बीजेपी के इकलौते स्टार इलेक्शन कम्पेनर है। सभी दलों को इसकी संभावना है कि ठीक से मुख्य—– : चुनावी घेराव किया जाएं तो प्रधानमंत्री के लिए देश भर में घूम घूम कर जनसभा करना कठिन हो जाएगा। बनारस से प्रियंका गांधी के खड़ा होते ही भाजपा और मोदी की योजनाओं पर पानी फिर सकता है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए बनारस के अलावा जगन्नाथ पुरी से चुनाव लडने की उम्मीदों पर भी विराम लग सकता है। पिछले बार की तरह वे गुजरात के वडोदरा या किसी जगह से भी चुनाव लड़ना इस बार सरल नहीं होगा। घर की बेटी या यूपी की पोती और बाहरी वाला गुजराती के जुमलों से इस बार भाजपा और प्रधानमंत्री के लिए पार पाना आसान नहीं होगा। विपक्षी दलों ने भी इसके लिए सामूहिक रणनीति बनाकर जुटने का भरोसा दिया है। गौरतलब है कि बनारस में अबतक 12 सांसद हुए हैं । केवल दो सांसदों को ही तीन तीन टर्म में सांसद बनने का मौका मिला है। इसके अलावा शेष दसों सांसद को दोबारा चुनाव लडने और जीतने का सौभाग्य नही मिला है। देखना है कि यदि 72 साल में वे फिर चुनाव लड़ेंगे तो क्या वे प्रियंका गांधी की चुनौती से पार पा सकते हैं। ।।