अनामी शरण बबल
नयी दिल्ली। कांग्रेस को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए अध्यक्ष राहुल गांधी को दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री 80साल की बुजुर्ग शीला दीक्षित के प्रेम और नातेदारी से उबारना होगा। श्री मती शीला को स्पेयर पार्ट की तरह कभी उत्तरप्रदेश तों कभी दिल्ली में संकटमोचन की तरह लाकर सबके उपर थोपने की तानाशाही रवैया छोड़ कर ही कांग्रेस की बची खुची इज्जत रह पाएगी। शीला को फिर से दिल्ली में लाने की कोशिश के खिलाफ ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं में असंतोष है।–उल्लेखनीय है कि 2013 और 2017, में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा था। 2013, के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आप सरकार बहुमत से दूर रह गयी थी। कांग्रेस के समर्थन पर आप की सरकार 49 दिन तक सता से रही। 2015 में दोबारा विधानसभा चुनाव कराया, जिसमें कांग्रेस का शर्मनाक प्रदर्शन रहा। 70 विधायकों वाली दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। आप के 67 विधायक और भाजपा के तीन ही विधायक जीत हासिल कर सकें। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तक बुरी तरह पराजित हो गयी। इस शर्मनाक हार के बावजूद 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने सबों को दरकिनार करके श्री मती शीला दीक्षित को यूपी की कमान दे दी। पहले से सक्रिय तेजतर्रार राज बब्बर के उत्साह सहित बडी मेहनत से तैयार लामबंद युवा पीढ़ी टीम के झटका लगा। शीला दीक्षित की मौजूदगी में कांग्रेस का यूपी में सूफडा साफ हो गया।,,—– राहुल गांधी से उपेक्षित चल रहे दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने सेहत का हवाला देकर अपना पद छोड़ दिया।। सज्जन कुमार को 1984 मामले में आजीवन कारावास की सजा मिली है। कांग्रेस के पास जनाधार वाला कोई दबंग नेता नही है और जो हैं तो उनको मौका नहीं मिल पा रहा है। माकन के इस्तीफे के बाद दिल्ली के नेताओं से सलाह मशविरा किए बगैर ही राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की दूर की रिश्ते में बहन और अपनी बुआ को एकबार फिर दिल्ली की कुर्सी थमा दी। 80 वर्षीया शीला दीक्षित भी आज़ पूरी तरह सक्रिय दिखी। अपने मंत्रीमंडल में रहे हारुन यूसुफ सहित कईयों के लेकर टीम बना दी है। मगर दिल्ली में शीला दीक्षित को फिर से लाने की खबर से पार्टी में कोई उत्साह नहीं है। दिल्ली में कांग्रेस एकदम सूख गयी है। पार्टी के भीतर युवाओं की उपेक्षा से भी ज्यादातर कांग्रेसी नेता उदासीन है। कांग्रेस के ज्यादातर कार्यकर्ता आप में शामिल हो गए हैं। और आप में मान सम्मान उत्साहित माहौल के चलते कांग्रेसी खेमा विरान पडा है।—लोकसभा चुनाव सिर पर होने के बाद भी चुनाव लडने वाले नेताओ की कमी है। खासकर आप और भाजपा में चुनावी सक्रियता आरंभ हो चुका है। हालांकि आप के सात सीटों के तालमेल की बाते उट रही है। आप दिल्ली की पांच सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। कांग्रेस के लिए केवल दो सीटें ही बचती है। मगर कांग्रेस विधानसभा चुनाव में आप के साथ मिलकर मैदान मारना चाहती है। बेशक आप का ही कोई मुख्यमंत्री रहे पर सहयोगी बनकर ही सही कांग्रेस अपने जनाधार वापस पाने की कोशिश में लगी है।–दिल्ली के तीनों मगर निगमों पर भी भाजपा का शासन है। शीला दीक्षित ने कहा कि 2020 लोकसभा और 20 मेह विधानसभा चुनाव के अलावा दिल्ली के तीनों नगर निगमों का चुनाव होना है। कांग्रेस के लिए फिर सेह अपने लोगों समर्थकों और योग्य युवाओं को आगे बढ़ाने लाने का मौका है। उन्होंने कहा कि वर्तमान हाल में बेहतर परिणाम की उम्मीद नहीं है,मगर पार्टी के फिर से जिंदा करने का यही मौका है। बकौल शीला सबों के घर घर में जाकर सबों को खड़ा करने की कोशिश करनी है।—-बदले हालात में देखना है कि कितने लोग फिर से कांग्रेस में आक्सीजन भरने की कोशिश में लगते हैं। शीला दीक्षित की कोशिशों का क्या अंजाम होगा,इस पर अभी कुछ भी कहना खतरनाक है। पूर्व मंत्री रहे हारुन यूसुफ ने कहा कि आप और बीजेपी से निराश लोगों का रुझान फिर कांग्रेस में होगी। देखना है ज़ोर शीला दीक्षित के प्रयासों के बावजूद कितने लोग क्या कईंज से जुड़कर पार्टी के साथ लगते हैं। तभी कॉमा में बेसुध कांग्रेस के गुनहगार फिर सकते हैं। फिलहाल 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला से कोई कमाल या करामात की उम्मीद कोई भी नही कर रहा है।