नयी दिल्ली। समय बड़ा बलवान होता है। एक समय था कि साढ़े चार साल तक एनडीए सरकार में मंत्री रहने के बाद भी उपेक्षित रहे। अपने स्वभाव के विपरीत हाशिए पर चुपचाप पड़े रहो। अपनो और अपने कार्यकर्ताओं को हमेशा अपने मंत्रालय के बोर्ड निगमों आदि का सदस्य बनाकर अपना बनाए रखने वाले रामविलास पासवान इस बार लाचार रहे। मगर हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में एनडीए भाजपा की हार के साथ ही एनडीए बिखरने लगा तो कल तक रामविलास पासवान से दूर भागने वाले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पासवान को एनडीए में रोकने के लिए आगे पीछे घूमने लगे। और हर शर्त पर समर्पण करके लोजपा नेता को अपने साथ किसी तरह जोड़े रखा।प्रधानमंत्री श्री मती बेनजीर भुट्टो की पार्टी का नाम पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) है। भारतीय राजनीति में सदाबहार दलित नेता रामविलास पासवान की पार्टी का नाम लोक जनशक्ति पार्टी है, मगर इसका नाम बदलकर पासवान परिवार (शक्ति) पार्टी भी कर दिया या रख दिया जाए तो भी कोई हर्ज नहीं होगा। भारत की आज़ादी से एक साल पहले1946 में बिहार खगड़िया के एक दलित दुसाध परिवार में पैदा हुए रामविलास एक प्रतिभाशाली स्टूडेंट रहे। 1969 में पहली बार मात्र 23 साल की उम्र में सांसद बने। सबसे अधिक मतों से जीत हासिल करके रामविलास रातों-रात राजनीति में विख्यात हो गए। अब तक पांच प्रधानमंत्रियों के मंत्रीमंडल में कैबिनेट मंत्री रह चुके पासवान समय के सबसे बड़े पारखी हैं। राजनीति के मौसम को भांपने वाले सबसे बडे़ मौसम वैज्ञानिक भी है, जो चुनाव से पहले ही चुनावी तापमान को बूझ कर चाल बदल लेते हैं। दल-बदल करने का शाही अंदाज ऐसा कि जबतक जिसके साथ जुड़े तो आन बान और शान से साथ रहे। अलबत्ता आम नागरिकों में सबसे बड़े दलबदलु की तरह ही माने जाते हैं। दलितों पर जो पकड़ और अधिकार बसपा सुप्रीमो मायावती का प्रभाव है। इस मामले में रामविलास पासवान कहीं नहीं ठहरते हैं। इसके बावजूद पासवान परिवार का पावर बरकरार है। मोदी लहर के बीच 2014 के लोकसभा चुनाव में लोजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए छह सीटों में पांच सांसद विजयी होकर दिल्ली पहुंचे। लोजपा के विजयी पांच सांसदों में रामविलास पासवान के अलावा पुत्र चिराग पासवान भाई रामचंद्र पासवान के अलावा बाहुबली सूरजभान की पत्नी वीणा देवी और महबूब अली केसर ने जीत हासिल की। मगर इस बार रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा के संकोची बागी तेवर दिखाने शुरू नहीं किए कि एनडीए से कुशवाहा दूध में गिरे मक्खी की तरह निकाल बाहर कर दिए गए। जिसका लाभ भी पासवान एंड फैमिली को ही मिला। साथ में अपना भाव दिखाते हुए रामविलास पासवान ने अपने लिए राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव को भी मंजूर करवा लिया। जोड़तोड़ के साथ भाव दिखाने और मांगे मनवाने में भी रामविलास कामयाब रहे। जिसके आम जनता की शब्दावली में ब्लैकमेलिंग (भी) ही कहा जाता है। और इस तरह अपने लिए पिछवाड़े का रास्ता चुन कर एक तरफ से सात सीटों पर लोजपा के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरेंगे। एनडीए के अमित शाह के राज में एकल परिवार पार्टी का सात सीटें पा लेना सबको अचंभित करने वाला है। बिहार के 40 संसदीय सीटों के इस बार भाजपा को ढेरों समझौते करने पड़ रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के 22 सांसद विजयी हुए थे। वहीं एनडीए से तलाकशुदा होकर अकेले चुनाव लड़ते हुए केवल दो सीट पर ही जेडीयू के सांसद विजयी बने थे। मगर इस बार समझौते में 17 सीटें मिली, जबकि 22 सांसदों वाली भाजपा को पांच सांसदों को नाराज करके केवल 17 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। मगर पासवान एंड फैमिली को अपने साथ रखने के लिए भाजपा को यह गरल भी पीना पड़ रहा है। आमचुनाव से पहले टिकट से वंचित किए जाने वाले सांसदों के बागी तेवरों का रामलीला होना अभी बाकी है। अलबत्ता सुशासन कुमार अपने चहेतों को टिकट देकर बाग-बाग करेंगे। अलबत्ता लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान जिन छह उम्मीदवारों को मैदान में उतरेंगे उसमे जमुई सीट छोड़कर अपने बेटे चिराग पासवान को हाजीपुर से चुनाव में उतारेंगे। भाई रामचंद्र पासवान वीणा देवी, महबूब अली केसर के अलावा दो अन्य सीटों पर रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंसराज पासवान और लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान की पत्नी रीना पासवान को भी उम्मीदवार बनाकर चुनावी जंग में उतारने की चर्चा है। लोजपा सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ कोई मीठा रिश्ता नहीं रहा है। इसके बावजूद टिकट वितरण में लोजपा के हाथों खुद भाजपा को अपना बलिदान देना पडा है। तो यहां पावर है पासवान परिवार का। बिन विधायक बने अपने भाई पशुपति पासवान को बिहार में नीतीश कुमार मंत्रीमंडल में मत्स्य पालन मंत्री बनवाकर रामविलास पासवान हर किसी के विश्वास पर एक खास समय तक खरा उतरने के बाद भी हमेशा विश्वास में बने रहते हैं। चुनाव से पहले भले ही रामविलास पासवान अपनी राज्यसभा की उम्मीद वारी पक्की करा ली है। मगर जनता की कसौटी पर इस बार लोजपा के कितने परिजन दिल्ली का सफर करेंगे। यह एक जटिल सवाल है जिसका उतर पासवान के पास नहीं है। यही विवशता और यही खूबी है रामविलास पासवान और पासवान परिवार की। जिसके चलते ही लोक जनशक्ति पार्टी लोजपा को ज्यादातर लोग पासवान परिवार शक्ति पार्टी कहते हैं। लोजपा सहित रामविलास पासवान के साथ पिछ्ले 25 साल से भी अधिक समय तक साथ रहे दिल्ली प्रदेश लोजपा सचिव दर्शनलाल ने बताया कि वे हर आदमी के साथ परिजन अभिभावक की तरह जुडे हुए हैं। यही रामविलास पासवान की ताकत है कि वे जिस पार्टी में रहे उनके साथ उनके लोग हमेशा साथ रहते हैं।