लाचार बेबस मौनी नायक और खलनायक बनाम नायक की जंग में मनमोहन और बाल ठाकरे रूपहले पर्दे पर/ नयी दिल्ली। क्या इत्तफाक है कि लोकसभा चुनाव से ठीक तीन माह पहले फिल्मी पर्दे पर दो राजनैतिक फिल्में नए साल में रिलीज़ होने जा रही है। कांग्रेस के यूपीए शासन में दस साल तक प्रधानमंत्री रहने वाले कांग्रेस के इकलौते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर बनी फिल्म द एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर है, तो दूसरी फिल्म महाराष्ट्र के सबसे ताकतवर शिवसेना के संस्थापक नेता बाल ठाकरे के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म है ठाकरे। ठाकरे की भूमिका करने वाले बायोपिक स्पेशलिस्ट स्टार हैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी तो मनमोहन सिंह की भूमिका करने वाले कलाकार हैं मशहूर अभिनेत्री और भाजपा सांसद किरण खेर के पति भाजपा समर्थक नेता और विख्यात अभिनेता अनुपम खेर है। मनमोहन सिंह पर बनी फिल्म के बहाने भाजपा को कांग्रेस और गांधी परिवार पर हमला करके पूरे देश में फिर से बेनकाब करने का मौका मिल गया है। वही ठाकरे के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म के बहाने शिवसेना को अपने मराठी जनाधार पाने और खासकर युवा पीढ़ी के वोटरों को रिझाने लुभाने का नायाब मौका मिल है। जिसके चलते पूरे देश में शिवसेना को अपना पराक्रम और लीक से हटकर राजनैतिक मैसेज के प्रसारण का अवसर है। इन दोनों सिनेमा पर बात करने से पहले दोनों नेताओं पर एक एक कविता की कुछ पंक्तियां देना जरुरी लग रहा है। हिन्दी के मशहूर कवि और आधुनिक कबीर के रुप में विख्यात दिवंगत कवि बाबा नागार्जुन ने कोई 60- साल पहले महाराष्ट्र में उभरते हुए युवा बाल ठाकरे पर एक कविता लिखी थी। – बाल ठाकरे बाल ठाकरे बाल ठाकरे/ नोंच लेगा खाल ठाकरे खाल ठाकरे खाल ठाकरे ।। थर थर थर थर कांप रहे हैं महाराष्ट्र के लोग / और बाल ठाकरे है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रोग।।(नागार्जुन) इस कविता से बाल ठाकरे की शुरुआती भूमिका और छवि का अंदाजा लगता है। अलबत्ता यह भी एक अजीब विरोधाभाषी संयोग है कि बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद पूरे सूबे में शिवसेना सैनिकों ( कार्यकर्ताओं) की अपार जनसमूह से मुबंई महानगर तीन दिनों तक थम गया था। पूरे महाराष्ट्र में शोक की लहर दौड़ पड़ी थी और छोटे बड़े सभी शहरों में भी एक सप्ताह तक मातम का माहौल था। मुंबई में 50 लाख से भी अधिक की भीड और मातम जुलुस की तुलना लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद की भीड से करते हैं। खलनायक से जननायक बने बाल ठाकरे की अंतिम विदाई देने की जन आजाद भारत में बिरलों को नसीब होता है। दूसरी तरफ दस साल तक लगातार प्रधानमंत्री रहने वाले कांग्रेस समेत भारत के इकलौते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेबसी लाचारी अपमान और कठपुतली इमेज यानी सबकुछ बर्दाश्त करने की अबोल क्षमता वाले मनमोहन सिंह उर्फ मौनी बाबा की छवि को पुख्ता करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर फेसबुक की एक कविता है– अलीबाबा की बात हुई पुरानी/ अब तो नए जमाने की है नयी कहानी/ मॉल मोटर् मेट्रो मोबाइल मल्टीप्लेक्स और मल्टीनेशनल का मौज है / और देश के सबसे ईमानदार पीएम की टीम में 40 चोरों की फौज है।: भले ही यह एक तुकबंदिया चलताऊ पैरोडी हो मगर एक पीएम की करुण कथा को साफ साफ बयान करती हैं कि किस दवाब के दुर्दांत कथा के वे लाचार प्राणी थे। जिनका मौन अबोलपन ही आज़ उनकी बेबसी का जीवंत दस्तावेज है। एक परिवार के प्रेशर के बीच घुटते हुए भोले भाले सुकुमार कोमल मजबूर आदमी का चित्रण है जो सबकुछ सहन करने के बाद भी मौन ही रह जाता है। बेबसी के दस साल में राजनैतिक करप्शन उठा पटक के बीच एक परिवार के साम्राज्य की कहानी है। जिसमें कांग्रेस के 55 साल के शासन में एक परिवार के सता शासन तानाशाही स्वार्थ और सबसे बेहतर साबित करने की अदम्य इच्छा लालसा की महत्वकांक्षाओं का चित्रण प्रदर्शन है यह फिल्म द एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर।वहीं एक कार्टूनिस्ट पत्रकार के रुप में कैरियर आरंभ करने वाले नौजवान बाला साहेब ठाकरे उर्फ बाल ठाकरे एक पत्रकार के साथ साथ मुंबई के शिवाजी पार्क में टैक्सी वालों को हटाने के खिलाफ उनके समर्थन में खड़े हो गए औरत अपनी बुलंद आवाज में सरकार और मुंबई नगर निगम के खिलाफ जोरदार आंदोलन खड़ा करके टैक्सी वालों को हक दिलाया। इस तरह एक ही झटके में बाल ठाकरे मुंबई के टैक्सी यूनियन के साथ जबरन जोड़ लिए और दिए गए। अपनी तूफानी बुलंद आवाज और स्पष्ट नीतियों के चलते सरकारी नजर में चुभने लगे। मगर जनता की आवाज बनाकर उभरे बाल ठाकरे मुंबई की जनता जन संगठनों महिला अधिकारों के सबसे बड़े पैरोकार बन गए। बाल ठाकरे के साथ इतने लोग जुड़ते चले गए थे कि कोई भी सही मांगे केवल बाल ठाकरे के साथ खड़े होने भर से ही हो जाते थे। इसी लोकप्रियता को देखते हुए बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की और देखते ही देखते पूरे महाराष्ट्र में इनकी अन्याय असंतोष के खिलाफ एक समानांतर सरकार सी बन गयी। राजनैतिक दल की तरह ही शिवसेना और बाल ठाकरे महाराष्ट्र के पावर बैंक बन बैठे। बाल ठाकरे की ऐसी आन बान शान और मान कि वे अपने घर मातोश्री से बाहर कभी किसी से मिलने नहीं गए। चाहे कोई भी हस्ती हो बाल ठाकरे से मुलाकात करने के लिए उसे मातोश्री में ही आना पडा। सरकार की तारीफ हो या तीखी टिप्पणी प्रतिक्रिया बाल ठाकरे ने अपने दैनिक अखबार सामना में संपादकीय लिखकर ही जनता से लेकर सरकार को अपने अखबार से आगाह किया। इनकी टिप्पणी हमेशा मीडिया जगता की पहली ख़बर बनती बनाती रही। साफ़ और दो टूक बोलना इनकी फितरत थी, जिसे पूरा देश असहमति के बावजूद पसंद करता था। अयोध्या प्रकरण पर भी ठाकरे के तीखे बयान आज़ भी सुर्खियों में है। महाराष्ट्र के जननायक बनकर खुद को स्थापित किया। जीवन में इनके ढेरों चेहरे हैं, जिसे देखना बहुतों को रास आएगा। अलबत्ता बायोपिक स्टार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बाल ठाकरे की भूमिका में जान फूंक दी है। वही भाजपा समर्थक अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह की भूमिका में उनकी बेबसी दबबूपन को नया आयाम दिया है। मराठी और हिंदी भाषा में 23 जनवरी (25 जनवरी को बाल ठाकरे का जन्मदिन है) को रिलीज होगा और इसका चुनावी लाभ भी शिवसेना उठाएगी। शिवसेना सांसद संजय राउत इसके लेखक और निर्माता भी हैं। जबकि मनमोहन सिंह के दस साल तक मीडिया सलाहकार रहे संजय मारू की किताब पर आधारित फिल्म से कांग्रेस की तो छवि खराब होगी मगर चुनावी मौके पर भाजपा को लोगों को बताने के लिए ढेरों मसाला मिल जाएगा। जिसका मिनिस्टर। लाभ भाजपा उठाएगी। मनमोहन सिंह की फिल्म द एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर का ठीक चुनाव से पहले 11 जनवरी को रिलीज़ होगी। हालांकि दोनों फिल्म में संवाद को लेकर भी विवाद है । मगर लाभ घाटे के बीच इन फिल्मों को लेकर लोगों में उत्कंठा जरुर रहेगी।